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चैत्र नवरात्रि के छठवें दिन है कात्यायनी देवी और ललिता गौरी के दर्शन का विधान, मां के दर्शन से मिलती है कष्टों से मुक्ति

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वाराणसी। वासंतिक नवरात्र के छठवें दिन कत्यानी देवी के दर्शन का विधान है। संकठा घाट पर आत्माविश्वेश्वर मंदिर परिसर में माता मंदिर स्थित है। मां कात्यायनी देवी और गौरी स्वरूप में ललिता गौरी के दरबार में भोर से ही कतारबद्ध होकर श्रद्धालु देवी के दोनों स्वरूप के दर्शन कर रहे है। 

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मंदिर परिसर के बाहर भक्तों की लंबी लाइन लगी हुई है। मां कात्यानी और मां ललिता गौरी से श्रद्धालुओं ने सुख समृद्धि की कामना कर रहे हैं। वही लाल चुनरी, नारियल, लाल चूड़ी, व अन्य श्रृंगार के समान माता को चढ़ा रहे हैं। इस दौरान पूरा परिसर जय माता दी के जयकारों से गूंज रहा।

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बता दें कि मंगला आरती के पूर्वं मां को पंचामृत व गंगाजल से स्नान कराया गया। मंगला आरती के बाद माता के मंदिर का पट भक्तों के दर्शन के लिए खोल दिया गया। श्रद्धालुओं ने नारियल और चुनरी का प्रसाद चढ़ाकर माता से सौभाग्य की कामना कर रहे हैं।


मान्यता है कि देवताओं की कार्य सिद्धि के लिए भगवती महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुई थीं। महर्षि ने उन्हें कन्या का स्थान दिया, इसलिए देवी कात्यायनी के नाम से विख्यात हुईं। ‘देवानाम् कार्यसिद्धर्थ माविर्भवति सायदा’ अर्थात देवताओं का कार्य सिद्ध करने के उद्देश्य से भगवती समय-समय पर अनेक रूपों में अवतरित हुईं है। तीन नेत्रों से विभूषित माता के मुख पर सौम्यता है। इनका ध्यान करने से कष्टों से मुक्ति मिलती है। माता महाभय से भक्त की रक्षा करती हैं।

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मां ललिता गौरी की है ये मान्यता

नवगौरी के छठवें स्वरूप ललिता घाट स्थित मां ललिता गौरी भी देवताओं की मनोकामना पूर्ण करने के लिए प्रकट हुई। माता के इस अद्भुत रूप के दर्शन मात्र से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। ललिता गौरी, ललिता तीर्थ क्षेत्र की परम रक्षा करती हैं तथा श्रद्धालुओं के विघ्नों को हरती हैं। मान्यता है कि ललिता गौरी के आराधना से व्यक्ति को ललित कलाओं में विशेष उपलब्धि प्राप्त होती है। देवी को गुड़हल का फूल विशेष रूप से प्रिय है।

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