
Varanasi : मनफेर को नगर भ्रमण पर निकले शकुटुंब भगवान जगन्नाथ, कल से होगा तीन दिनी रथयात्रा मेले का आगाज...
काशी की गलियां नाथों के नाथ जगन्नाथ के जयघोष से गूंजती रही




पूर्व एमएलसी बृजेश सिंह ने सपरिवार डोली को दिया कांधा
भक्तों के प्रेम में अत्यधिक स्नान के बाद पड़ गए थे बीमार
15 दिन के अज्ञातवास के बाद भगवान का काशीवासियों से हुआ मिलन
लक्खा मेले में तीन दिनों तक भगवान देंगे दर्शन
वाराणसी,भदैनी मिरर। लक्खा मेले में शुमार रथयात्रा मेला कल यानी 27 जून से शुरू हो रहा है. वहीं भक्तों के प्रेम में अत्यधिक स्नान करने से बीमार होकर भगवान जगन्नाथ स्वस्थ्य होकर आज भाई-बहन के साथ डोली में विराजमान होकर नगर भ्रमण के लिए निकले है. प्रभु जगन्नाथ की डोली अस्सी जगन्नाथ मंदिर से निकली, इस दौरान डोली पर सवार विग्रह पर भक्त पूरे रास्ते पुष्प वर्षा करते रहे. इस आयोजन में पूर्व एमएलसी बृजेश सिंह उनकी MLC अन्नपूर्णा सिंह और पुत्र सिद्धार्थ सिंह ने भगवान जगन्नाथ की डोली को कंधे पर उठाकर नगर भ्रमण कराया।


काशी की गलियों में निकली भक्ति की बयार
जग के पालनहार पालकी पर सवार होकर मंदिर परिसर से होते हुए अस्सी चौराहा, पद्मश्री चौराहा, दुर्गाकुंड होते हुए नवाबगंज, खोजवां बाजार, शंकुलधारा पोखरा, बैजनत्था होते हुए रथयात्रा स्थित बेनीराम बाग पहुंचेंगे. इसी के साथ शुक्रवार की तड़के से विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा मेला का आगाज होगा.


अस्सी जगन्नाथ मंदिर के महंत पंडित राजेश पाण्डेय ने बताया कि ज्येष्ठ पूर्णिमा को स्नान करने के बाद भगवान जगन्नाथ अस्वस्थ हो गए थे, 15 दिनों तक वो अज्ञातवास में थे. इस दौरान काढ़े का भोग लगाया गया और भक्तों को प्रसाद स्वरुप बांटा गया. इसके अलावा परवल काा जूस और 56 प्रकार के भोग लगाएं गए. 15 दिनों के बाद भगवान आज स्वस्थ हो गए और डोली पर सवार होकर काशी भ्रमण को निकले है.

उन्होंने बताया कि भगवान जगन्नाथ स्वास्थ्य लाभ के बाद सैर के लिए अपनी मौसी के घर जाते हैं और काशी में उनका सैर-सपाटा ससुराल में होता है. इसी मान्यता के अनुसार आज भगवान की डोली यात्रा अस्सी स्थित जगन्नाथ मंदिर से विभिन्न मार्गों से होते हुए रथयात्रा स्थित शापुरी भवन पहुंची जहां उनके विग्रह को रथ में विराजमान कराया गया. इसी के साथ कल से मेले का आगाज होगा.
प्रभु जगन्नाथ के दर्शन से सभी मनोकामनाएं होती है पूरी
यह भी मान्यता है कि काशी में बाबा जगन्नाथ भगवान विष्णु के अवतार हैं. इनके दर्शन से मोक्ष मिलता है और सभी मनोरथ पूरे हो जाते हैं. यानी भगवान विष्णु के दर्शन के बराबर फल इनके दर्शन से मिलता है. यही वजह है कि जीवन की कामनाओं की पूर्ति के लिए देश के कोने-कोने से लोग इस मेले में खींचे चले आते हैं।वहीं प्रभु के रथ को पीली पताकाओं, लतरों, पीले फूलों से सजाया गया है.
तीन सदियों पुरानी परंपरा का गौरवशाली इतिहास
इस परंपरा की शुरुआत 1768 में मानी जाती है, जब पुरी मंदिर के मुख्य पुजारी ब्रह्मचारीजी अपने राजा से मतभेद के बाद काशी आए और गंगा किनारे अस्सी घाट पर भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की प्रतिमा का प्रतिरूप स्थापित किया. उन्होंने मंदिर निर्माण का सपना देखा, जिसके लिए उन्होंने छत्तीसगढ़ के राजा व्यंकोजी भोंसले से सहयोग मांगा. राजा ने न सिर्फ मंदिर निर्माण में मदद की, बल्कि ‘तखतपुर महाल’ को मंदिर के रेवेन्यू के लिए दान कर दिया.
1857 की क्रांति और मंदिर की चुनौतियां
1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों ने भोसले साम्राज्य की संपत्ति जब्त कर ली, जिससे मंदिर को मिलने वाला राजस्व रुक गया. इसके बाद मंदिर की देखरेख का जिम्मा पंडित बेनीराम और उनके वंशजों को सौंपा गया, जो अब तक इस परंपरा को निभा रहे हैं। ब्रह्मचारीजी की समाधि अस्सी घाट पर स्थित है, जहां उनकी स्मृति में पूजा होती है.

