रंगभरी एकादशी: प्रभु श्री राम के सुसराल से आया मुकुट धारण करेंगे बाबा विश्वनाथ


Mar 6, 2025, 13:58 IST

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वाराणसी। काशी के रंगभरी एकादशी उत्सव में इस बार मिथिला संस्कृति की झलक भी दिखाई देगी। बाबा विश्वनाथ और माता गौरा पहली बार मिथिला शैली के विशेष देवकिरीट को धारण करेंगे। यह अद्वितीय मुकुट मिथिलांचल से विशेष रूप से बनवाकर लाया गया है, जिसे भक्तों के दर्शन के लिए बाबा और माता के सिर पर सुशोभित किया जाएगा।

-मिथिलांचल से विशेष रूप से मंगाया गया देवकिरीट
बाबा विश्वनाथ और माता गौरा के गौने के अवसर पर काशी में रह रहे मिथिलावासियों ने इस खास देवकिरीट को मिथिला से बनवाकर मंगाया है। पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी के पुत्र पंडित वाचस्पति तिवारी ने बताया कि यह पहली बार है जब काशी के मिथिलावासियों ने इस परंपरागत देवकिरीट को शिव-पार्वती के लिए समर्पित किया है।

मैथिल सेवा समिति के अध्यक्ष कौशल किशोर मिश्र ने इसे संस्था के माध्यम से शिवांजलि के संयोजक संजीव रत्न मिश्र को सौंपा। इस आयोजन से काशी और मिथिला के बीच आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक संबंध और मजबूत होंगे।
बनारसी जरी और सुनहरी लहरों से होगा अलंकृत
इस देवकिरीट को और भव्य बनाने के लिए बनारस के नारियल बाजार के व्यापारी नंदलाल अरोड़ा इसे बनारसी जरी और सुनहरी लहरों से सजाएंगे। नंदलाल अरोड़ा का परिवार पिछले तीन पीढ़ियों से बाबा विश्वनाथ के मुकुट की अलंकरण सेवा करता आ रहा है। हर साल भगवान शिव और माता पार्वती को विभिन्न प्रकार के राजसी मुकुट पहनाए जाते हैं, जो भारत के प्राचीन कालखंडों के शासकों की परंपराओं को दर्शाते हैं।

पहली बार मिथिला शैली का मुकुट होगा प्रतिष्ठित
अब तक बाबा को अलग-अलग शैलियों के मुकुट, जैसे राजसी मुकुट और बंगीय शैली के देवकिरीट धारण कराए जाते रहे हैं। इस बार मिथिला शैली का यह अनोखा मुकुट पहली बार बाबा के सिर पर सुशोभित होगा, जिससे काशी के रंगभरी एकादशी उत्सव में मिथिला की संस्कृति की अनुपम छटा बिखरेगी।
इस आयोजन के माध्यम से काशी और मिथिला की सांस्कृतिक विरासत को एक नई पहचान मिलेगी और भक्तों को एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त होगा।

