7 मार्च से लग रहा होलाष्टक, होली के 8 दिन पहले मांगलिक कार्यों पर लगे जाएगा विराम




वाराणसी। होली से आठ दिन पहले ही शुभ और मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाएगी। इस वर्ष होलाष्टक की शुरुआत 7 मार्च से होगा, जिसका प्रभाव होली के दिन 14 मार्च तक रहेगा। इस अवधि में विवाह, नामकरण, गृह प्रवेश और मुंडन जैसे सभी शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं।
क्या है होलाष्टक और इसका महत्व?
शास्त्री के अनुसार, होलाष्टक वह समय होता है जो होली से ठीक आठ दिन पहले फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से शुरू होता है और पूर्णिमा तक चलता है। इस दौरान आठ ग्रह उग्र अवस्था में होते हैं, जिससे कोई भी मांगलिक कार्य करने की मनाही होती है।

मौसम में बदलाव और ग्रहों का प्रभाव
ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार, होलाष्टक के दौरान मौसम में बदलाव होता है, सूर्य की रोशनी तेज हो जाती है और हवाओं में ठंडक बनी रहती है। इस कारण लोग बीमारियों से घिर सकते हैं और मानसिक रूप से अवसादग्रस्त महसूस कर सकते हैं। यही वजह है कि इस समय कोई भी शुभ कार्य करने से बचने की सलाह दी जाती है। हालांकि, व्रत, पूजन और हवन के लिए यह समय अनुकूल माना जाता है।


पौराणिक मान्यता और ऐतिहासिक घटनाएं
होलाष्टक का संबंध कई पौराणिक घटनाओं से जुड़ा है:
- इस अवधि में भगवान शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था, जिससे यह समय अशुभ माना गया।
- हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र भक्त प्रह्लाद को लगातार आठ दिनों तक प्रताड़ित किया था, ताकि वह भगवान विष्णु की भक्ति छोड़ दे।
- कामदेव की पत्नी रति ने भगवान शिव से प्रार्थना की थी* कि वे उनके पति को पुनर्जीवित करें।
ग्रहों का असर और सावधानियां
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, अष्टमी तिथि को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहु अपने उग्र स्वभाव में रहते हैं। इससे व्यक्ति की निर्णय क्षमता प्रभावित होती है, जिससे वह गलत फैसले ले सकता है। इसी कारण होलाष्टक के दौरान शुभ कार्यों को रोक दिया जाता है और लोगों का ध्यान भक्ति, पूजन और व्रत की ओर मोड़ा जाता है।


विशेष रूप से जिनकी कुंडली में चंद्रमा नीच राशि में हो, वृश्चिक लग्न के जातक हों या चंद्रमा छठे या आठवें भाव में स्थित हो, उन्हें इस दौरान विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।
होलाष्टक के बाद मनाई जाती है होली
होलाष्टक के आठ दिनों के बाद, फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इसके अगले दिन रंगों का त्योहार धुलेंडी (होली) मनाया जाता है। इस दिन भक्त प्रह्लाद के सुरक्षित रहने और हिरण्यकश्यप के अहंकार के अंत की खुशी मनाई जाती है।
ज्योतिषाचार्य विमल जैन के अनुसार, इस वर्ष फाल्गुन कृष्ण पक्ष की अष्टमी 6 मार्च को सुबह 10:52 बजे से शुरू होकर 7 मार्च को सुबह 9:19 बजे तक रहेगी। इस दौरान प्रीतियोग नामक विशेष योग का भी निर्माण होगा, जो आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है।

