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शास्त्रीय संगीत और भक्ति रस से गूंजा दुर्गाकुंड मंदिर, मां कूष्मांडा का सुरों से श्रृंगार 

दुर्गाकुंड मंदिर में मां के श्रृंगार और संगीत से गूंजा वातावरण, नामचीन कलाकारों की प्रस्तुतियां

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Pandit sajan mishra
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वाराणसी, भदैनी मिरर। आदिशक्ति की उपासना और शास्त्रीय संगीत की साधना का अनूठा संगम बुधवार को वाराणसी के दुर्गाकुंड स्थित मां कूष्मांडा मंदिर में देखने को मिला। सात दिवसीय मां कूष्मांडा श्रृंगार एवं संगीत समारोह का आगाज बुधवार से पद्मभूषण पं. साजन मिश्र और उनके पुत्र स्वरांश मिश्र की गायकी से हुआ। मां की स्वर्णमयी प्रतिमा के सम्मुख कलाकारों ने सुर, लय और ताल की त्रिवेणी प्रवाहित कर भक्ति का रस घोल दिया।
शास्त्रीय संगीत से सजा दरबार
समारोह की शुरुआत शहनाई वादक पं. जवाहरलाल ने साथियों संग राग यमन की प्रस्तुति से की। दादरा की बंदिश और ‘माई के सोहर’ की मधुर धुन ने वातावरण को भक्ति से भर दिया।
इसके बाद मंच संभाला पं. साजन मिश्र और स्वरांश मिश्र ने। उन्होंने राग जोग कौस में मां और कान्हा की आराधना कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। "काहे गुमान करे बावरे…" और "जगत है समझ, सपना कोठ नाही…" जैसी ख्याल प्रस्तुतियों के बाद राग दुर्गा में "जय जय दुर्गे माई…" गाकर भक्ति को चरम पर पहुंचाया।
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तबले पर पं. अभिषेक, सारंगी पर विनायक सहाय और हारमोनियम पर सुमित ने संगत दी। दिल्ली से आए बांसुरी वादक रितेश प्रसन्ना ने राग गोरख कल्याण बजाकर मन मोह लिया। देर रात विदुषी कमला शंकर का गिटार वादन, पं. देवाशीष डे, पं. गणेश प्रसाद मिश्र, चारुचंद्र सिंह का गायन और प्रो. राजेश शाह का सितार वादन हुआ। सम्यक पाराशरी की बांसुरी और कोलकाता के शुक्ल दत्ता एंड ग्रुप की कथक प्रस्तुति ने दर्शकों को भावविभोर कर दिया।
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माता kushmanda
 मां का दिव्य श्रृंगार
महंत राजनाथ दुबे और पं. विश्वजीत दुबे ने पंचमेवा की माला से मां कूष्मांडा का श्रृंगार किया। स्वर्णमयी प्रतिमा को गुलाब, बेला और कमल के पुष्पों से सजाया गया। छप्पन भोग की दिव्य झांकी आकर्षण का केंद्र रही। आचार्य श्रीधर पांडेय और बलभद्र तिवारी के निर्देशन में 11 भूदेवों ने वेदपाठ किया। मां की आरती पं. किशन दुबे एवं कौशलपति द्विवेदी ने की।
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