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ड्रमर पद्मश्री शिवमणि, मेंडोलिन वादक यू. राजेश के साथ खूब बजा महंतजी का पखावज

श्रीसंकटमोचन संगीत समारोह की तिसरी निशा 

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वाराणसी, भदैनी मिरर। शास्त्रीय संगीत के अंतरराष्ट्रीय मंच संकट मोचन संगीत समारोह की तीसरी निशा का आगाज भी एक और यादगार पल लेकर आया। अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त ड्रमर पद्मश्री शिवमणि और उनके हमजोली यृ. राजेश का कार्यक्रम सुनने जुटे सैकड़ों संगीत रसिकों की उस समय खुशी का ठिकाना नहीं रहा। जब मंच से यह उद्घोषणा की गई कि इन दो कलाकारों के साथ पखावज पर संकट मोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र भी संगत करने बैठेंगे। तीन दिनों में यह दूसरा कार्यक्रम है जिसमें खुद संकटमोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र ने भाग लिया। पहले दिन उद्घाटन कार्यक्रम में पद्मविभूषण पं. हरिप्रसाद चौरसिया के साथ और दूसरी बार अब ड्रमर शिवमणि के साथ यादगार प्रस्तुति दी।  

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घुंघरूओं की झनकार सुन तालियों से गूंजा मंदिर परिसर

 

कार्यक्रम शुरू होने से पहले ही समूचा मंदिर प्रांगण प्रसन्न श्रोताओं की तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजने लगा। ड्रमर पद्मश्री शिवमणि, मेंडोलिन वादक यू. राजेश और पखावज वादक संकट मोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र ने मिलकर एक यादगार कार्यक्रम की प्रस्तुति दी। वादन का आरंभ घुंघरुओं की झनकार से हुआ। आरंभ में शास्त्रीय संगीत के रागों और तालों का श्रवण श्रोताओं ने किया। ड्रम स्टिक से खेलते हुए शिवमणि ने अपनी जादूगरी का असर श्रोताओं पर स्पष्ट रूप से छोड़ा। यह जादुई क्रम करीब एक घंटे तक चला। कभी एक ही तबले पर दोनों हाथों से वादन, तो कभी आधी भरी हुई बाल्टी के किनारे पर कलछुल ठोंक कर निकाली गई ध्वनि, स्टील की छोटी थाल और कलछी से निकला संगीत भी श्रोताओं को लुभा गया। उनके वादन में घुंघरू, घंटा, घड़ियाल सब कुछ शामिल रहा। उन्होंने डांडिया, भांगड़ा, दुर्गापूजा में प्रचलित ढोल की खास तरंगों के हर माहौल का अनुभव कराया। अंत में बापू के प्रिय भजन ‘रघुपति राघव राजाराम’ से अपने कार्यक्रम को विराम दिया।

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ताल दर ताल मिलती गई धुरंधर तबला वदकों की झलक

 

इससे पहले गुरूवार की रात्रि यानी दूसरी निशा की प्रस्तुतियां बेजोड़ रहीं। इससे पहले की तीन प्रस्तुतियों की खबर उपर लिंक में हैं। इधर, दूसरी निशा की चौथी प्रस्तुति लेकर मंचासीन हुए यूएस से आए युवा तबला वादक विवेक पाण्डया ने जबरदस्त तबला वादन कर समूचे हनुमत दरबार को गुंजायमान कर दिया। उन्होंने बनारस घराने के उठान, कायदा, आमद, टुकड़ा, रेला और परन बजाया। उनके वादन के दौरान कई ऐसे क्षण आए जब श्रोता यह सोचने पर मजबूर हो गए कि वे तबला वादन सुन रहे हैं या पखावज। दाएं तबले की टनकार और बाएं की धमक श्रोताओं पर बहुत खास प्रभाव छोड़ रही थी। पं. सारदा सहाय, पं. किशन महाराज, पं. सामता प्रसाद, पं. भैरव सहाय, पं. बलदेव सहाय, पं. अनोखेलाल मिश्रा, पं. कंठे महाराज, पं. लच्छू महाराज, पं. कुमार बोस जैसे धुरंधर तबला वादकों की झलक ताल दर ताल मिलती गई। उनके साथ हारमोनियम पर संगत मोहित साहनी ने की।

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‘साजन मोरे घर आये‘ फिर गूंजे बहुचर्चित ‘बादरवा’ के बोल

पांचवीं प्रस्तुति कोलकाता के पं. पूर्वायन चटर्जी के सितार वादन की रही। उनके साथ बनारस घराने के उस्ताद पं. संजू सहाय ने यादगार संगत की। पूर्वायन चटर्जी ने राग कौंस का स्वरूप सितार की झनकार में प्रस्तुत किया। विलंबित आलाप से वादन आरंभ करते हुए उन्होंने जोड़ और फिर झाला से वादन को विस्तार दिया। ‘साजन मोरे घर आए’ की धुन का वादन करने से पहले उन्होंने इन पंक्तियों का गायन किया। श्रोताओं की मांग पर उन्होंने अपनी बहुचर्चित रचना ‘बादरवा’ का वादन किया तो रचना के बोल श्रोताओं ने उनके साथ गाए। वादन का समापन उन्होंने पहाड़ी धुन से किया।


कथक के उठान, आमद, परन, तोड़ा ने किया प्रभावित
 

 
छठीं प्रस्तुति कोलकाता से आईं सोहनी रायचौधरी के गायन की रही। गायन की शुरुआत विलंबित लय में ‘पीहरवा’ से की। द्रुत लय में उन्होंने  ‘साजन मोरे घर आए’ का प्रभावी गायन किया। तराना सुनाने के बाद पूरब अंग की ठुमरी ‘व्याकुल भयी बृजबाम बंसुरिया‘ की प्रस्तुति श्रोताओं पर अमिट छाप छोड़ गई। प्रस्तुति के आठवें क्रम में दिल्ली के रोहित पवार का कथक नृत्य हुआ। उन्होंने पारंपरिक कथक के अंतर्गत उठान, आमद, परन, तोड़ा, टुकड़ा तिहाई, गत फर्द की सिलसिलेवार प्रस्तुति से श्रोताओं का दिल जीतने की कोशिश की। अलग-अलग प्रकार की तिहाइयों ने श्रोताओं को विशेष रूप से प्रभावित किया। उनके साथ तबला पर जहीर खान, पखावज पर महावीर गंगानी, सारंगी पर गौरी बनर्जी ने संगत की। गायन अतुल देवेश ने किया। 


 

महसूस हुआ-रसराज पं. जसराज को सुन रहे हैं
 

दूसरी निशा की विराम प्रस्तुति पं. नीरज पारिख लेकर मंचासीन हुए। उन्होंने राग बैरागी में भावपूर्ण गायन से श्रोताओं को आनंदित किया। विलंबित एक ताल में ‘कौन जीय ठाने हे री सखी’ के बाद उन्न्होंने मध्यलय तीनताल में ‘अब ना मोहें समझाओ कान्हा तुम’ का सुमधुर गायन किया। विल्वमंगलाचार्य के स्तोत्र ‘गोविंद दामोदन’ के गायन के दौरान ऐसा प्रतीत हुआ कि श्रोतागण रसराज पं. जसराज को सुन रहे हैं।

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