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शास्त्रों ने गिरह खोली, लोक विरुद्ध मसान की होली

मसान के होली को लेकर विद्वानों ने रखे अपने विचार 
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Massan
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Masan Ki Holi : काशी, जो अपने आध्यात्मिक एवं धार्मिक महत्व के लिए जानी जाती है, पिछले कुछ वर्षों से एक नई परंपरा के कारण चर्चा में है—मसान की होली। यह परंपरा श्मशान घाट पर चिता भस्म से होली खेलने की है, जो इस वर्ष 11 मार्च को मनाई जाएगी। हालाँकि, विद्वानों और धर्माचार्यों का मानना है कि यह परंपरा न केवल शास्त्र-विरुद्ध है बल्कि काशी की धार्मिक और आध्यात्मिक गरिमा को भी ठेस पहुँचाती है।  

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मसान की होली का शास्त्रीय दृष्टिकोण  

काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रोफेसर आर.एन. द्विवेदी का कहना है कि हमारे शास्त्रों में सद्गृहस्थों को श्मशान में किसी भी प्रकार का उत्सव मनाने का विधान नहीं है, जो युवा इस आयोजन में सम्मिलित हो रहे हैं, वे अपनी आध्यात्मिक हानि कर रहे हैं। श्मशान भूमि, जहाँ परिजन शोकाकुल होकर शव संस्कार के लिए आते हैं, वहाँ उत्सव और हुड़दंग करना उचित नहीं है।  

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उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि कुछ लोग इसे "दिगंबर की होली" कह रहे हैं, लेकिन दिगंबर भगवान शिव हैं, जो सूक्ष्म रूप से मणिकर्णिका में विराजमान रहते हैं। वे वहाँ मोक्ष प्रदान करने वाले तारक मंत्र का उपदेश देते हैं, न कि होली खेलने के लिए उपस्थित होते हैं। इस प्रकार, श्मशान पर होली खेलना शास्त्र-विरुद्ध और अनुचित है।

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शास्त्रों में नहीं है चिता भस्म की होली का उल्लेख

बीएचयू के ज्योतिष विभाग के प्रोफेसर चंद्रमौली उपाध्याय के अनुसार, यह परंपरा शास्त्रों में वर्णित नहीं है और न ही इसका कोई धार्मिक आधार है। उन्होंने इसे निंदनीय बताते हुए कहा कि चिता भस्म से होली खेलना पाप का भागी बनाता है। उनका मत है कि समाज को इस शास्त्र-विरुद्ध परंपरा का विरोध करना चाहिए और शासन को इसे रोकने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।  

काशी की आध्यात्मिक और सामाजिक प्रतिष्ठा पर खतरा  

बीएचयू के ज्योतिष विभाग के ही प्रोफेसर विनय कुमार पांडेय का मत है कि यह आयोजन न केवल धार्मिक स्वरूप की हानि कर रहा है, बल्कि काशी की आध्यात्मिक और सामाजिक प्रतिष्ठा को भी धूमिल कर रहा है।उन्होंने कहा कि कुछ लोग अपने निजी स्वार्थों के कारण इस तरह के आयोजन कर रहे हैं, जो काशी की धार्मिक परंपराओं को नष्ट करने का प्रयास है।

आयोजकों ने की ये अपील

वहीं दूसरी ओर आयोजकों ने महिलाओं से अपील की है कि वह लोग श्मशान घाट पर होली देखने न आएं। ऐसा होली में होने वाली भीड़, हुड़दंग के चलते महिलाओं की सुरक्षा के लिहाज से कहा गया है। मंगलवार को पराड़कर भवन में बाबा महाश्मशान नाथ मंदिर कमेटी के व्यवस्थापक गुलशन कपूर और उपाध्यक्ष संजय गुप्ता ने प्रेसवार्ता के दौरान यह अपील की है।

कमेटी ने कहा कि यदि महिलाओं को मसाने की होली देखनी है तो गंगा द्वार से या कहीं दूर से देखें। भीड़ का हिस्सा न बनें। साथ ही देवी-देवताओं और स्वांग के स्वरूपों का प्रवेश भी इस बार प्रतिबंधित रहेगा। 

गुलशन कपूर ने मसाने की होली को लेकर कुछ लोगों द्वारा किए जा रहे विरोध पर शास्त्रार्थ करने को कहा। कहा कि जो लोग चिता भस्म की होली को धर्म सम्मत नहीं मान रहे हैं, वह इसका आधार बताएं। वह खुले मंच पर शास्त्रार्थ कर सकते हैं। हमेशा से बाबा को भस्म चढ़ती है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक महाकाल में भस्म से पूजा होती है।

मणिकर्णिका तीर्थ से पुण्य लेकर बांटते हैं बाबा

बाबा विश्वनाथ मणिकर्णिका तीर्थ से पुण्य लेकर श्रद्धालुओं में बांटते हैं। गुलशन कपूर ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ मां पार्वती का गौना (विदाई) कराकर अपने धाम काशी लाते हैं। इसे उत्सव के रूप में काशीवासी मनाते हैं और रंग का त्योहार होली शुरू हो जाता है।

क्या होली का यह स्वरूप उचित है?

काशी में होली का विशेष महत्व है, लेकिन इसे श्मशान में मनाने की परंपरा पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है। शास्त्रों में स्पष्ट रूप से श्मशान के नियम और मर्यादाएँ निर्धारित हैं। ऐसे में, क्या यह उत्सव आस्था का विषय है, या मात्र दिखावे और आकर्षण के लिए अपनाया गया एक नया प्रचलन?

समाज को इस विषय पर गहराई से विचार करने की आवश्यकता है। शास्त्रों के विपरीत किसी भी परंपरा को बढ़ावा देना न केवल आध्यात्मिक रूप से हानिकारक हो सकता है, बल्कि यह धार्मिक आस्थाओं को भी ठेस पहुँचा सकता है।

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