काशी में गौरा के हल्दी रस्म से शुरु हुआ रंगभरी एकादशी का उत्सव
गौरा गोदी में लेके गणेश विदा होइहैं ससुरारी...


Mar 7, 2025, 20:51 IST

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वाराणसी। ‘गौरा के हरदी लगावा, गोरी के सुंदर बनावा...’,‘सुकुमारी गौरा कइसे कैलास चढ़िहें...’,‘गौरा गोदी में लेके गणेश विदा होइहैं ससुरारी...’ आदि मंगल गीतों से टेढ़ीनीम स्थित विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत का आवास गुलजार रहा। अवसर था गौरा के गौने के उपलक्ष्य में हल्दी की रस्म का। महाशिवरात्रि पर शिव-पार्वती विवाह के उपरांत रंगभरी (अमला) एकादशी पर गौना के उत्सव का क्रम शुक्रवार से आरंभ हो गया। महंत आवास पर गौरा के रजत विग्रह को संध्या बेला में हल्दी लगाई गई। तेल हल्दी की रस्म के लिए सुहागिनों और गवनहरियों की टोली पहुंची थी। इस उत्सव में मोहल्ले की बुजुर्ग महिलाएं भी शामिल हुईं। ढोलक की थाप और मंजीरे की खनक के बीच मंगल गीत गाते महिलाओं ने गौरा को हल्दी लगाई। बीच में शिव-पार्वती के मंगल दाम्पत्य की कामना पर आधारित गीतों का क्रम देर तक चला। इसमें गौने के दौरान दिखने वाली दृश्यावली का बखान किया गया। मंगल गीतों में यह चर्चा भी की गई कि गौना के लिए कहां क्या तैयारी हो रही है। दूल्हे के स्वागत के लिए कैसे-कैसे पकवान पकाए जा रहे हैं। सखियां पार्वती का साज-शृंगार करने के लिए कौन-कौन से सुंदर फूल चुन कर ला रही हैं। हल्दी की रस्म के बाद नजर उतारने के लिए ‘साठी क चाऊर चूमीय चूमीय..’ गीत गाकर महिलाओं ने गौरा की रजत मूर्ति को चावल से चूमा। दिवंगत महंत के पुत्र वाचस्पति तिवारी के नेतृत्व में तेल-हल्दी की रस्म के लिए संजीव रत्न मिश्र ने माता गौरा का शृंगार किया। हल्दी रस्म से पूर्व पूजन आचार्य सुशील त्रिपाठी ने कराया। सांस्कृतिक कार्यक्रम ‘शिवांजलि’ में महिलाओं ने शिव भजनों की प्रस्तुति की।

बाबा के खादी धारण की रीति नेहरु परिवार से जुड़ी
रंगभरी एकादशी पर इस बार 91वां मौका होगा जब बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ गौरा का गौना करते समय खादी के राजषी वस्त्रत्त् धारण करेंगे। बाबा के खादी धारण करने की शुरुआत भी स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी है। आजाद और आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए बापू ने खादी का मंत्र पूरे देश को दिया था। उसी बीच पं. जवाहर लाल नेहरू की मां स्वरूप रानी रंगभरी एकादशी पर बाबा के दर्शन को आई थीं। उन्होंने तत्कालीन महंत के समक्ष प्रस्ताव रखा कि अधिक से अधिक लोगों को स्वतंत्रता आंदोलन के लिए प्रेरित करने के लिए बाबा को खादी के राजषी वस्त्रत्त् धारण कराए जाएं। यह वाकया 1933 में हुआ था। विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत के पुत्र वाचस्पति तिवारी ने बताया कि स्वरूप रानी ने देवाधिदेव महादेव की रजत प्रतिमा को खादी धारण कराने का लिखित अनुरोध मंदिर के तत्कालीन महंत पं. महाबीर प्रसाद तिवारी से किया। जिसे महंत ने तत्काल स्वीकार कर लिया था। वर्ष 1934 से यह परंपरा अब तक जारी है।

हल्दी लेकर आये जूना अखाड़े के संन्यासी
गौरा के गौना से जुड़ी लोकपरंपरा का निर्वाह इस बार जूना अखाड़ा के नागा साधुओं द्वारा किया गया। नीलांचल के कामाख्या शक्तिपीठ से विशेष रूप से आयी हल्दी लेकर नागा बाबा सावन भारती, नागा बाबा पूरन भारती,नागा बाबा पितांबर भारती, नागा बाबा रवींद्र भारती के सयुंक्त नेतृत्व में साधु संत का दल जूना अखाड़ा हनुमान हनुमान घाट से डमरूओं के निनाद, शंखों की गूंज के बीच हरहर महादेव का उदघोष करते हुए निकला। वहां से शोभायात्रा के रूप में साधु-संतों और गृहस्थ भक्तों का समूह महंत आवास पहुंचा। एक थाल में हल्दी, 11 थाल में फल, पांच थाल में मेवा-मिठाई, एक थाल में वस्त्र और आभषूण लेकर वे टेढ़ीनीम स्थित महंत आवास पहुंचे। इससे पूर्व महाशिवरात्रि पर बाबा विश्वनाथ से जुड़ी लोकपरंपरा का निर्वाह श्रीपंचायती निरंजनी अखाड़ा के नागा साधुओं एवं महात्माओं की ओर से किया गया था। श्रीपंचायती निरंजनी अखाड़ा की ओर से बाबा के लिए हल्दी महाराणा प्रताप की धरती मेवाड़ से मंगाई गई थी।


