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मानस सिंदूर कथा शुरु होते ही काशी में मुरारी बापू का विरोध, सूतक काल में कथा करने पर संतो में नाराजगी 

कथा का पहला दिन हनुमान भक्ति को रहा समर्पित, संत मोरारी बापू बोले - जब जीवन में हर दिशा प्रतिकूल हो, तब हनुमान जी का स्मरण करें

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Morari bapu
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वाराणसी, भदैनी मिरर। प्रख्यात कथावाचक संत मोरारी बापू इन दिनों वाराणसी के रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में नौ दिवसीय श्रीराम कथा "मानस सिंदूर" सुना रहे हैं। लेकिन कथा प्रारंभ से पहले ही विवादों में आ गई है। दरअसल, दो दिन पहले ही मोरारी बापू की पत्नी का निधन हो गया था। ऐसे में काशी के सनातनी समाज और संतों ने सूतक काल में कथा कहने और बाबा विश्वनाथ मंदिर दर्शन पर आपत्ति जताई है।

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Murari bapu virodh

अस्सी चौराहे पर पुतला दहन
शनिवार को मोरारी बापू के खिलाफ गोदौलिया चौराहे पर प्रदर्शन हुआ। गुस्साए सनातनी युवाओं ने काशी के नागरिकों संग बापू का पुतला फूंका और उन्हें कथा रोकने की मांग की। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि परिवार में निधन होने पर सूतक लगता है और उस दौरान कोई धार्मिक अनुष्ठान, कथा या दर्शन नहीं होते।
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इस विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए मोरारी बापू ने कहा:
“हम लोग वैष्णव परंपरा के अनुयायी हैं। हमारे यहां सूतक का यह नियम लागू नहीं होता। भगवान का भजन करना सुकून देता है, न कि सूतक। इस विषय को विवाद का रूप नहीं देना चाहिए।”
Swami Jitendranand
संतों की तीखी प्रतिक्रिया
अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने इस घटनाक्रम को धार्मिक मर्यादा का उल्लंघन बताते हुए कहा:
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“सूतक काल में कथा कहने का कार्य निंदनीय है। यह धर्म नहीं, अर्थ की कामना का प्रदर्शन है। मोरारी बापू को यह कथा स्थगित करनी चाहिए थी। उन्होंने समाज में गलत संदेश दिया है।”
कथा के पहले दिन हनुमान जी की आराधना 
Morari bapu
सेठ दीनदयाल जालान सेवा ट्रस्ट के तत्वावधान में आयोजित 9 दिवसीय श्री राम कथा के पहले दिन शनिवार को मानस मर्मज्ञ संत मोरारी बापू ने हनुमान जी की आराधना की। उन्होंने कथा श्रवण करवाते हुए श्रद्धालुओं से कहा कि  “जब जीवन में काल, परिस्थिति और व्यक्ति सब विपरीत हो जाएँ, तब सिर्फ हनुमान जी का स्मरण ही संजीवनी का काम करता है। हनुमान भरोसे का नाम है।"
उन्होंने बताया कि गणेश जी और हनुमान जी दोनों विघ्नहर्ता हैं और दोनों को ही सिंदूर अर्पित किया जाता है। मानस में ‘सिन्दूर’ शब्द केवल एक बार आता है —उस क्षण में जब श्रीराम, माता सीता की मांग में सिन्दूर भरते हैं: "राम सीय सिर सेंदुर देहीं, सोभा कहि न जाति बिधि केहीं।"
मोरारी बापू ने काशी को साधना, ज्ञान और मोक्ष की भूमि बताया। उन्होंने तुलसीदास द्वारा वर्णित काशी महिमा का उल्लेख करते हुए कहा कि: "अयोध्या वैराग्य की भूमि है, वृंदावन भक्ति की, चित्रकूट प्रेम की, लेकिन काशी वह भूमि है जहाँ हर साधना की धारा आकर समाहित होती है।"
रामचरितमानस की "सात संख्या" की विशेषता बताते हुए उन्होंने कहा कि मानस की शुरुआत सात मंत्रों से होती है, मध्य में श्रीराम के सप्तम अवतार का वर्णन है और अंत में गरुण के सात प्रश्नों का उत्तर दिया गया है।
'मानस सिन्दूरकथा का प्रेरणास्रोत
बापू ने बताया कि ‘मानस सिन्दूर’ कथा का विचार कश्मीर में कथा करते समय आया था। जब पहलगाम में आतंकियों ने स्त्रियों का सिंदूर मिटाया, तब कथा रोकनी पड़ी। बाद में सरकार ने "ऑपरेशन सिन्दूर" चलाया जिसे बापू ने एक राष्ट्र रक्षण का प्रयोग माना।
इस विचार को उन्होंने नालंदा कथा के बाद सतुआ बाबा संतोष दास और आयोजक किशन जालान से साझा किया, और फिर इस कथा को काशी में आयोजित करने का संकल्प लिया गया।

दीप प्रज्वलन और आरती में संतों की उपस्थिति

कथा के शुभारंभ अवसर पर रमण रेती पीठाधीश्वर, जगद्गुरु यामुनाचार्य सतुआ बाबा संतोष दास, संत मोरारी बापू, महापौर अशोक तिवारी, किशन जालान आदि ने दीप प्रज्वलन किया। आरती में केशव जालान, भगीरथ जालान सहित परिवार के कई सदस्य शामिल हुए।
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