Home वाराणसी संस्कृत साहित्य में छिपा हुआ है आधुनिक समस्याओं का समाधान- वाचस्पति दिव्य चेतन

संस्कृत साहित्य में छिपा हुआ है आधुनिक समस्याओं का समाधान- वाचस्पति दिव्य चेतन

by Ankita Yadav
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वाराणसी। काशी के प्राचीन और ऐतिहासिक दत्तात्रेय मठ में शनिवार को शास्त्रार्थ प्रतियोगिता का भव्य आयोजन हुआ। यह आयोजन शास्त्रार्थ परंपरा को पुनर्जीवित करने और संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया गया। यह प्रतियोगिता प्रत्येक माह प्रतिपक्ष त्रयोदशी को आयोजित होती है, जिसमें संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय और अन्य विद्यालयों के विद्यार्थी उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं।

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कार्यक्रम की अध्यक्षता वाचस्पति दिव्य चेतन ब्रह्मचारी (आचार्य, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय) ने की। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि शास्त्रार्थ के माध्यम से संस्कृत भाषा को अधिक जनसुलभ बनाया जा सकता है। उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा और दर्शन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि संस्कृत साहित्य में आधुनिक समस्याओं के समाधान छिपे हुए हैं। उन्होंने छात्रों से सतत अध्ययन और शोध दृष्टि अपनाने का आह्वान किया।

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विद्वानों की प्रेरणादायक उपस्थिति

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इस अवसर पर काशी के प्रख्यात विद्वानों ने भी शास्त्रार्थ की परंपरा को बढ़ावा देने और इसके महत्व पर चर्चा की। कार्यक्रम का शुभारंभ विदुषी शालिनी पांडे द्वारा मंगलाचरण से हुआ, जबकि समापन शांति मंत्र के साथ किया गया।

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क्या है शास्त्रार्थ?

शास्त्रार्थ का अर्थ है शास्त्रों के गहन विषयों पर विद्वानों के बीच संवाद और परिचर्चा। प्राचीन काल से यह परंपरा भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रही है। काशी अपनी शास्त्रार्थ परंपरा के लिए विश्व प्रसिद्ध है, जहां विद्वानों को अपनी विद्वता प्रमाणित करने के लिए काशी के विद्वानों के समक्ष शास्त्रार्थ करना होता था।

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प्रतिभागियों और प्रस्तुति की झलक

प्रतियोगिता में विभिन्न विषयों के प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया:

  • व्याकरण: विशाल शर्मा और शिवांश तिवारी
  • न्याय: सुदर्शन भट्टराई और हरिओम त्रिपाठी
  • योग दर्शन: ऋतेश दुबे
  • वेदांत: अवधेश शुक्ल

विशेष प्रस्तुति बटुक अंश चाणक्य द्वारा अमरकोश पर दी गई, जिसे सराहना मिली।

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संस्कृति को बढ़ावा देने का प्रयास

मठ के विद्वानों ने विद्यार्थियों का उत्साहवर्धन किया और उन्हें शास्त्रार्थ परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने गुरु के प्रति आदर और अध्ययन के प्रति समर्पण का महत्व बताया।

कार्यक्रम के बाद प्रसाद वितरण का आयोजन उत्तम अवस्थी द्वारा किया गया। दत्तात्रेय मठ का यह प्रयास न केवल प्राचीन परंपराओं को संरक्षित कर रहा है, बल्कि नई पीढ़ी को भारतीय ज्ञान और संस्कृति से जोड़ने का भी कार्य कर रहा है।

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