वाराणसी। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय (Sampurnanand Sanskrit University) ने प्राचीन विद्या को आधुनिक तकनीक से जोड़ने के लिए एक व्यापक कार्ययोजना तैयार की है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने तीन चरणों में 262 करोड़ रुपये की परियोजना का प्रस्ताव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Chief Minister Yogi Adityanath) को प्रस्तुत किया। यह योजना प्राचीन संस्कृत विद्या को वैश्विक मंच पर स्थापित करने और विद्यार्थियों को तकनीकी रूप से सक्षम बनाने की दिशा में अहम कदम है।
पहले चरण में तकनीकी सुविधाओं का विकास
परियोजना के पहले चरण में रिसर्च और शिक्षण प्रक्रिया को बेहतर बनाने पर जोर दिया गया है। इसके तहत स्मार्ट क्लासरूम, कंप्यूटर लैब, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, डिजिटल बोर्ड, प्रोजेक्टर जैसी सुविधाएं स्थापित करने की योजना है। ये उपाय छात्रों की शिक्षा को अधिक उन्नत और प्रभावी बनाने में मदद करेंगे।
दूसरे चरण में भवनों का जीर्णोद्धार
दूसरे चरण में विश्वविद्यालय के पुराने भवनों के जीर्णोद्धार का प्रस्ताव है। ऐतिहासिक महत्व रखने वाले इन भवनों का संरक्षण करना विश्वविद्यालय प्रशासन की प्राथमिकता में शामिल है।
तीसरे चरण में खेल और सांस्कृतिक सुविधाओं का विस्तार
तीसरे चरण में खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए स्पोर्ट्स ग्राउंड, ऑडिटोरियम और इंडोर गेम्स के विकास का प्रस्ताव है। इससे छात्रों को पढ़ाई के साथ-साथ खेल और अन्य गतिविधियों में भी सहभागिता का अवसर मिलेगा।
कुलपति की मुख्यमंत्री से मुलाकात
27 अक्टूबर को छात्रवृत्ति वितरण समारोह के दौरान मुख्यमंत्री ने विश्वविद्यालय से एक विस्तृत कार्ययोजना प्रस्तुत करने को कहा था। इसी क्रम में विश्वविद्यालय के कुलपति (Vice Chancellor) प्रो. बिहारी लाल शर्मा ने 25 दिसंबर को लखनऊ में मुख्यमंत्री से उनके आवास पर भेंट की। इस दौरान कुलपति ने मुख्यमंत्री को विश्वविद्यालय की विकास योजनाओं और प्रगति पर जानकारी दी।
तकनीकी शिक्षा और शोध पर जोर
कुलपति ने बताया कि विश्वविद्यालय में ऑनलाइन संस्कृत प्रशिक्षण केंद्र के तहत रोजगारपरक पाठ्यक्रम, शोध, और शिक्षा में नवाचार पर काम हो रहा है। उन्होंने स्मार्ट क्लासरूम और कंप्यूटर लैब की मांग रखते हुए कहा कि छात्रों को आधुनिक तकनीक से जोड़ना समय की आवश्यकता है।
वित्तीय संसाधनों की कमी एक बड़ी चुनौती
हालांकि, आर्थिक संसाधनों की कमी के कारण कई योजनाएं जैसे छात्रावासों का जीर्णोद्धार, पांडुलिपियों का संरक्षण और दुर्लभ ग्रंथों का पुन: प्रकाशन अब तक मूर्त रूप नहीं ले सकी हैं। मुख्यमंत्री ने इन समस्याओं के समाधान और विश्वविद्यालय के विकास के लिए हरसंभव सहयोग का आश्वासन दिया।
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय की यह कार्ययोजना प्राचीन शिक्षा प्रणाली और आधुनिक तकनीक के बीच एक सेतु का काम करेगी। यह कदम छात्रों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए तैयार करेगा।