
पहलवान लस्सी-चाची कचौड़ी की गिराए गए दुकान पहुंचे सांसद वीरेंद्र सिंह ने जताया विरोध, बोले - काशी की आत्मा को कुचला जा रहा
चंदौली सांसद वीरेंद्र सिंह बोले – बनारस कभी क्योटो नहीं हो सकता, प्रधानमंत्री काशी की आत्मा से नहीं जुड़े है

Jun 19, 2025, 23:29 IST

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वाराणसी, भदैनी मिरर। लंका- भेलूपुर फोरलेन की जद में आ रहे वाराणसी के लंका स्थित मशहूर दुकानों पहलवान लस्सी और चाची की कचौड़ी को बुलडोज किए जाने के बाद अब राजनीति शुरू हो गई है। हालांकि कार्रवाई का विरोध न हो दुकानदारों ने किया और न ही मकान मालिकों ने। लेकिन अब विपक्षी दल राजनीतिक रोटी सेकना शुरु कर चुके है। गुरुवार की शाम चंदौली सांसद वीरेंद्र सिंह लंका के उस स्थान पर पहुंचे जहां PWD के बुलडोजर ने बीते दिनों रात करीब 10 बजे ध्वस्तीकरण किया था।


दुकानों को बुलडोज किए जाने के दो दिन बाद सांसद वीरेंद्र सिंह पहुंचे और दुकानदारों से मुलाकात की। उन्होंने कहा, "काशी की आत्मा गलियों में बसती है, और प्रशासन विकास के नाम पर उस आत्मा को कुचल रहा है। बनारस कभी क्योटो नहीं हो सकता।"
वीरेंद्र सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काशी की परंपरा, विरासत और भावना को नहीं समझ सकते क्योंकि वे मूलतः गुजरात के निवासी हैं। उन्होंने बताया कि वे स्वयं बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के छात्र रहे हैं और चाची की कचौड़ी तथा पहलवान लस्सी उनके छात्र जीवन की यादें हैं।



"मोक्ष घाटों पर, संस्कृति गलियों में बसती है"
सांसद ने कहा कि बनारस की आत्मा उसके घाटों, गलियों, पान की दुकानों और छोटे दुकानदारों में बसती है। उन्होंने कहा, "जब कभी मेस बंद हो जाती थी, हम यहीं बैठकर कचौड़ी खाते थे, लस्सी पीते थे, और बातें करते थे। ऐसे स्थान केवल दुकान नहीं, बल्कि सांस्कृतिक केंद्र होते हैं।"

उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि बनारस को ‘क्योटो’ बनाने की बात करने वालों को यह समझना चाहिए कि विकसित देशों ने भी अपने हेरिटेज और लोकल पहचान को संरक्षित रखा है।
प्रशासन से की पुनर्वास की मांग
सांसद वीरेंद्र सिंह ने स्पष्ट कहा कि यदि विस्थापन जरूरी था तो प्रशासन को पहले दुकानदारों को स्थानांतरित करना चाहिए था और उन्हें अन्य स्थान पर दुकानें आवंटित करनी चाहिए थीं। उन्होंने कहा कि यह केवल निर्माण कार्य नहीं, बल्कि एक भावनात्मक और सांस्कृतिक नुकसान है।
सांसद ने प्रधानमंत्री और उनके सहयोगियों से आग्रह किया कि उन्हें यह समझना चाहिए कि काशी की आत्मा कहाँ बसती है।
"प्रधानमंत्री काशी के मूल निवासी नहीं हैं, इसलिए उन्हें यहां की आत्मा का बोध कराना उनके सहयोगियों का दायित्व है।"


