वाराणसी, भदैनी मिरर। उत्तरवाहिनी गंगा का तट। चिता की ऊंची लपटें। पंचतत्व में विलीन होते नश्वर शरीर। राख में तब्दील सांसारिक भ्रम। ये सभी जीवन के सत्य को दर्शा रहे थे। वहीं देवाधिदेव को समर्पित घुंघरू की झनकार अगली बार ऐसा जन्म न देने की करुण गुहार कर रही थी। लग रहा था मानों दुनियावी राग नुपुरों की झनकार पार कर वैराग की ओर जाना चाहती हो। कुछ ऐसा ही मंजर था महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर। अवसर था बाबा श्मशाननाथ के तीन दिनी श्रृंगार का।
समापन निशा में नगरवधुओं की मनुहार बाबा तक पहुंची या नहीं, इसका प्रमाण तो नहीं मिला लेकिन सैकड़ों साल पुरानी परंपरा को निभाने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। वासंतिक नवरात्र की सप्तमी तिथि पर बाबा के पूजन के बाद शुरू हुआ राग- विराग का मेला देर रात तक चलता रहा। नगरवधुएं भावविभोर हो कर नृत्यांजलि प्रस्तुत करती रहीं।
रात के सन्नाटे को भेदती गीत-संगीत की गूंज दूर तक कई घाटों पर सुनाई देती रही। बाबा महाश्मशान सेवा समिति के अध्यक्ष चैनु प्रसाद गुप्ता ने बताया कि रात्रि में नृत्यांजलि की परंपरा से पूर्व शाम को बाबा महाश्मशान नाथ का तांत्रिक विधि से पंचमकार पूजन किया गया। पं. सुनील पाठक के आचार्यत्व में पांच ब्राह्मणों ने विधान पूरा कराया। कार्यक्रम का संयोजन महाश्मशान सेवा समिति के अध्यक्ष के अलावा संजय गुप्ता, बिहारी लाल, व्यवस्थापक गुलशन कपूर, विजय शंकर पांडेय, मनोज शर्मा, दीपक तिवारी, गजानन पांडेय, अजय गुप्ता आदि पदाधिकारी व भक्त शामिल थे।