
Supreme Court का एतिहासिक फैसला : देश के हजारों गरीब कैदियों को मिलेगी राहत
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को दिया बड़ा आदेश, जेल से बाहर आना होगा आसान



जमानत राशि की गारंटी न दे पाने के कारण देश की जेलों में बंद नही रह पायेंगे कैदी
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर ऐसे लोगों के लिए, जो जमानत की राशि के लिए आर्थिक गारंटी देने में असमर्थ हैं या उनका कोई मददगार नही है, के लिए ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट द्वारा केंद्र सरकार को दिये गये इस आदेश से जमानत राशि की गारंटी न दे पाने के कारण देश की जेलों में बंद गरीब बंदियों को बड़ी राहत मिलेगी। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ऐसे लोगों के लिए किसी वरदान से कम नही है।



सुप्रीम अदालत ने आदेश दिया है कि अगर कोई गरीब व्यक्ति जमानत के लिए आर्थिक गारंटी देने में असमर्थ है, तो सरकार जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के जरिए इसे मुहैया करेगी। इस तरह से उसकी रिहाई सुनिश्चित की जाएगी। अदालत ने यह एसओपी सीनियर वकील सिद्धार्थ लूथरा और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी के सुझावों के बाद तैयार की। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का तब स्वतः संज्ञान लिया जब उसे पता चला कि हजारों विचाराधीन कैदी जमानत मिलने के बावजूद केवल इसलिए जेल में बंद हैं क्योंकि वे जमानत बांड या गारंटर प्रदान नहीं कर पा रहे हैं।

जज एमएम सुंदरेश और एससी शर्मा की पीठ ने कहा कि जिला विधिक सेवा प्राधिकरण एक लाख रुपये तक की जमानत राशि भर सकता है। यदि ट्रायल कोर्ट ने इससे अधिक राशि तय की है, तब प्राधिकरण इसे कम करने के लिए आवेदन दायर करेगा। पीठ ने कहा कि अगर जमानत मिलने के 7 दिनों के भीतर विचाराधीन कैदी को रिहा नहीं किया जाता, तो जेल प्रशासन प्राधिकरण के सचिव को सूचित करेगा। सचिव तुरंत एक व्यक्ति को यह जांचने के लिए नियुक्त करेगा कि क्या कैदी के पास अपने बचत खाते में धनराशि है। यदि आरोपी के पास पैसे नहीं हैं, तो जिला स्तर की सशक्त समिति प्राधिकरण की सिफारिश पर 5 दिनों के भीतर जमानत के लिए धनराशि जारी करने का निर्देश देगी।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहाकि ऐसे मामलों में जहां सशक्त समिति यह सिफारिश करती है कि विचाराधीन कैदी को गरीब कैदियों के लिए सहायता योजना के तहत वित्तीय सहायता दी जाय। तब प्रति कैदी के लिए 50 हजार रुपये तक की आवश्यक राशि को निकालकर संबंधित कोर्ट को फिक्स्ड डिपॉजिट दिया जाएगा। फिर जिला समिति की ओर से उचित समझे गए किसी अन्य तरीके से पांच दिनों के भीतर इसे उपलब्ध कराना होगा। यह आपराधिक न्याय प्रणाली में एकीकरण तक लंबित रहेगा। यह पूरी प्रक्रिया ‘इंटर-ऑपरेबल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम के एकीकृत प्लेटफॉर्म से जोड़ी जाएगी। इससे पुलिस, अदालत, जेल और फॉरेंसिक लैब्स के बीच डेटा साझा करना आसान होगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब आरोपी को मुकदमे में बरी किया जाए या दोषी ठहराया जाए, तो ट्रायल कोर्ट यह सुनिश्चित करेगी कि जमानत के लिए दी गई रकम वापस सरकार के खाते में जमा की जाए, क्योंकि यह राशि केवल जमानत सुनिश्चित करने के लिए दी गई थी। कोर्ट ने कहा कि जमानत मिलने के बावजूद केवल पैसों की कमी के कारण किसी व्यक्ति को जेल में नहीं रखा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला देश के उन हजारों गरीब कैदियों के लिए बड़ी राहत लेकर आया है जो मामूली आरोपों में जेल में बंद हैं। लेकिन आर्थिक तंगी के कारण जमानत नहीं पा सके हैं। सुप्रीम अदालत का यह आदेश न केवल न्याय तक समान पहुंच को मजबूत करता है, बल्कि यह सुनिश्चित करेगा कि गरीबी किसी व्यक्ति के लिए न्याय से वंचित होने का कारण न बने।

