Movie prime
Ad

रामपुर CRPF कैंप हमले के आरोपितों की फांसी की सजा रद्द, अभियोजन मामला साबित करने में विफल रहा 

1 जनवरी 2008 की सुबह रामपुर CRPF ग्रुप सेंटर गेट नंबर-1 पर हुआ था आतंकी हमला

Ad

 
Haicourt
WhatsApp Group Join Now

Ad

सात जवानों और एक रिक्शा चालक की हुई थी हत्या

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2008 रामपुर CRPF कैंप हमले के आरोपित शरीफ, सबाउद्दीन, इमरान और फारूख की फांसी की सजा का रद कर दिया। इसके साथ ही उन्हे आईपीसी की धारा 302 में दोषमुक्त किया है। कोर्ट ने जांच में खामियों और एके-47 को ठीक से न रखने के चलते यह फैसला सुनाया। इस हमले के दौरान 8 सीआरपीएफ जवानों की हत्या हुई थी।

Ad
Ad
Ad

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2008 के रामपुर सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर पर आतंकी हमले से जुड़े महत्वपूर्ण फैसले में निचली अदालत की ओर से चार दोषियों को दी गई मौत और एक दोषी को आजीवन कारावास की सजा को पलटते हुए 5 आरोपितों को बरी कर दिया। यह फैसला जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की खंडपीठ ने सुनाया। यह मामला 31 दिसंबर 2007 की रात और 1 जनवरी 2008 की सुबह रामपुर सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर गेट नंबर-1 पर हुए आतंकी हमले से संबंधित है। हमले में 7 सीआरपीएफ जवान कांस्टेबल आनंद कुमार, हवलदार ऋषिकेश राय, अफजल अहमद, रामजी सरन मिश्रा, मनवीर सिंह, देवेंद्र कुमार और कांस्टेबल विकास कुमार और एक रिक्शा चालक किशन लाल की मौत हुई थी।

Ad

अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश रामपुर ने इस मामले में मोहम्मद शरीफ़, सबाउद्दीन, इमरान शहज़ाद, और मोहम्मद फारूक को हत्या और अवैध हथियार रखने सहित अन्य गंभीर धाराओं में दोषी ठहराया था और उन्हें मौत की सज़ा सुनाई थी। जबकि जंग बहादुर खान को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। बाद में जांच में गंभीर खामियां पाते हुए सभी दोषियों की अपीलें स्वीकार कर लीं गईं। कोर्ट ने पाया कि जांच में कई गंभीर त्रुटियां थीं, जिन्होंने मामले की जड़ को प्रभावित किया। अभियोजन पक्ष मुख्य अपराधों के लिए आरोपियों के खिलाफ उचित संदेह से परे मामले को साबित करने में विफल रहा। जांच एजेंसियों ने मालखाने में हथियारों और गोला-बारूद के सुरक्षित रखरखाव से जुड़े सरकारी निर्देशों का पालन नहीं किया था। इन कारणों के आधार पर हाईकोर्ट ने अपीलें स्वीकार कर लीं और आरोपितों को हत्या, आतंकवादी गतिविधियों और अन्य गंभीर धाराओं से बरी कर दिया। हालांकि, न्यायालय ने उन्हें आर्म्स एक्ट की धारा 25(1-ए) के तहत दोषी माना। अदालत ने राज्य की सरकार को जांच में लापरवाही के लिए दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कानून के तहत कार्रवाई करने की छूट भी दी है।

Ad

आपको बता दें कि 31 दिसंबर 2007 की रात नए वर्ष के जश्न के दौरान आतंकियों सीआरपीएफ कैंप पर हमला कर दिया था। इसमें सात जवान शहीद हो गए और एक-रिक्शा चालक की भी मौत हो गई थी। इस मामले में सिविल लाइंस कोतवाली के तत्कालीन दरोगा ओमप्रकाश शर्मा ने एफआईआर दर्ज कराई थी। आठ आरोपितों को गिरफ्तार कर न्यायालय में चार्जशीट दाखिल किया गया था। पुलिस की विवेचना में करीब दो सौ लोगों को गवाह बनाया। जांच के दौरान यह सामने आया था कि लस्कर-ए-ताइबा के कमांडर सैफुल्ला ने पीओके में रामपुर सीआरपीएफ कैंप पर हमला करने के लिए आतंकी प्रशिक्षित किए थे। उस समय सैफुल्ला भारत के मोस्ट वांटेड हाफिज सईद का खास बताया गया था। हमले में गिरफ्तार पाक आतंकियों के कबूलनामे के बाद सैफुल्ला का नाम भी सामने आया था। सैफुल्ला का नाम सामने आने पर जांच एजेंसियों ने उसे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन पाकिस्तान में होने के कारण वह हाथ नही लग सका। इस घटना में 200 लोगों को गवाह बनाया गया, लेकिन कोर्ट में 55 गवाह पेश हो सके। इनमें से 38 गवाहों की गवाही सिर्फ सीआरपीएफ कांड के सम्बंध में और 17 की गवाही आरोपित फहीम अरशद पर दर्ज एक अन्य मामले में हुई।

अदालत ने नवम्बर 2019 में पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) निवासी मोहम्मद फारुख, पीओके निवासी इमरान शहजाद उर्फ अब्बू जर्रार कामरू, मधुबनी बिहार के सबाउद्दीन उर्फ सबा, मुरादबाद के मूढ़ापांडे निवासी जंग बहादुर और रामपुर के खजुरिया क्षेत्र निवासी मोहम्मद शरीफ को सीआरपीएफ आतंकी हमले का दोषी करार दिया था। इसी मामले में आरोपित बरेली के बहेड़ी निवासी गुलाब खां और प्रतापगढ़ के कुंडा निवासी कौसर खां को बरी कर दिया था। आरपीएफ कैम्प हमले में पाक अधिकृत कश्मीर के इमरान, मोहम्मद फारूख, बिहार के मधुबनी का सबाउद्दीन सबा, मुंबई गोरे गांव के फहीम अंसारी, प्रतापगढ़ के कुंडा के कौसर खां, बरेली के बहेड़ी के गुलाब खां, मुरादाबाद के मूंढापांडे के जंग बहादुर बाबा खान और रामपुर के खजुरिया गांव के मोहम्मद शरीफ को गिरफ्तार किया गया था।

इन सभी को पुलिस ने 10 फरवरी 2008 को गिरफ्तार कर लखनऊ और बरेली की जेलों में रखा था। सुनवाई के दौरान मुख्य मुकदमे में 38 की गवाही हुई। 19 अक्तूबर को मुकदमे में बहस पूरी हो गई। सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर पर आतंकी हमले के मामले में कोर्ट ने छह दोषियों में से चार को फांसी की सजा सुनाई थी। वहीं जंग बहादुर को उम्रकैद और फहीम को दस वर्ष की सजा सुनाई थी। फहीम का नाम मुंबई के ताज होटल आतंकी हमले में भी आया था, हालांकि उसे बाद में बरी कर दिया गया था। आरोपितों की अपील पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने मृत्युदंड के सत्र न्यायालय के फैसले को रद्द करते हुए निर्णय में कहा कि हम अपराध की गंभीरता पर चिंतित हैं। कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपितों के खिलाफ मुख्य अपराध के लिए संदेह से परे मामला साबित करने में बुरी तरह विफल रहा जो आपराधिक न्यायशास्त्र के माध्यम से चलने वाला एक सुनहरा नियम है।
 

Ad

Ad

FROM AROUND THE WEB