क्रिसमस सजावट तोड़फोड़ पर नेहा सिंह राठौर के तीखे सवाल, बोलीं– इससे देश मजबूत होगा या कमजोर?
लोकगायिका ने राष्ट्रवाद, लोकतंत्र और भारत की वैश्विक छवि पर उठाए सवाल
डिजिटल डेस्क। असम के नलबाड़ी कस्बे में क्रिसमस की पूर्व संध्या पर एक डायोसीस स्कूल और दुकानों में क्रिसमस सजावट को नुकसान पहुंचाए जाने की घटना ने सियासी और सामाजिक बहस को तेज कर दिया है। एक संगठन से जुड़े कार्यकर्ताओं के एक समूह पर इस तोड़फोड़ का आरोप लगा है। इसी मामले को लेकर लोकगायिका और सामाजिक मुद्दों पर मुखर रहने वाली नेहा सिंह राठौर ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।



नेहा सिंह राठौर ने इस घटना को लेकर कई सवाल सोशल मीडिया के माध्यम से उठाए। उन्होंने पूछा कि क्रिसमस का विरोध और तोड़फोड़ करने से देश मजबूत होगा या कमजोर? उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाओं से देश का कोई समुदाय खुश नहीं होता, बल्कि इससे अल्पसंख्यक समुदायों में डर और असुरक्षा की भावना पैदा होती है।

उन्होंने सवाल उठाया कि अपने ही देश के नागरिकों को डराना किस तरह का राष्ट्रवाद है? नेहा सिंह राठौर का कहना है कि ऐसी हरकतों से देश कमजोर होता है और अपने ही देश को कमजोर करना किसी भी मायने में देश प्रेम नहीं कहा जा सकता।
लोकगायिका ने लोकतंत्र पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि क्या अपने देश के लोकतंत्र को कमजोर करना, देश को कमजोर करना नहीं है? उन्होंने चेताया कि इस तरह की घटनाओं से भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी नकारात्मक असर पड़ता है।
नेहा सिंह राठौर ने यह भी कहा कि यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया सहित कई देशों में बड़ी संख्या में भारतीय रोजगार के लिए जाते हैं, जहां की बहुसंख्यक आबादी ईसाई है। ऐसे में भारत से क्रिसमस विरोध और तोड़फोड़ की खबरें वहां रहने वाले भारतीयों को प्रभावित कर सकती हैं। उन्होंने सवाल किया कि ऐसी खबरें सुनने के बाद वहां के लोग भारतीयों को किस नजर से देखेंगे और क्या इससे भारत का सम्मान बढ़ेगा?

उन्होंने आशंका जताई कि इससे विदेशी देशों में भारतीयों के प्रति नफरत बढ़ सकती है और वहां की सरकारों पर भारतीयों के खिलाफ सख्त नीतियां बनाने का दबाव भी बन सकता है। नेहा सिंह राठौर ने यह भी कहा कि इससे डोनाल्ड ट्रंप जैसे नेताओं को भारत के खिलाफ बयान देने और कदम उठाने का मौका मिल सकता है, जिसका असर व्यापार और प्रवासी भारतीयों पर पड़ेगा।
अपने बयान के अंत में उन्होंने समाज के दोहरे रवैये पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि एक तरफ लोग क्रिसमस का विरोध करते हैं और दूसरी तरफ कुछ ही दिनों बाद नए साल पर गोवा, मसूरी और शिमला में पार्टी करते हैं, केक काटते हैं, पटाखे फोड़ते हैं और सोशल मीडिया पर जश्न मनाते हैं। इसे उन्होंने पाखंड और कट्टरता का उदाहरण बताया।
फिलहाल नलबाड़ी की घटना को लेकर स्थानीय प्रशासन की ओर से स्थिति पर नजर रखी जा रही है। वहीं नेहा सिंह राठौर के सवालों ने एक बार फिर धार्मिक सहिष्णुता, राष्ट्रवाद और लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर व्यापक बहस छेड़ दी है।
