
Mumbai Train Blast Case : सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर लगाई रोक, बोले अबू आजमी- आरोपी मुसलमान थे इसलिए...




Mumbai Train Blast Case : मुंबई लोकल ट्रेन सीरियल ब्लास्ट केस 2006 को लेकर एक बार फिर सियासी बयानबाज़ी तेज हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने 24 जुलाई को बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा 12 आरोपियों को बरी किए जाने के फैसले पर रोक लगा दी है। यह फैसला महाराष्ट्र सरकार की ओर से दाखिल की गई याचिका पर आया है। सरकार ने हाईकोर्ट के निर्णय को चुनौती दी थी।


अबू आजमी का तीखा बयान
समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आसिम आजमी ने इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि, "सभी आरोपी मुसलमान थे, इसलिए सरकार इतनी जल्दी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई।" उन्होंने कहा, "अगर सच्चाई है तो डर किस बात का? सांच को आंच क्या?"
आजमी ने ANI से बात करते हुए कहा कि इन लोगों ने 19 साल जेल में बिताए हैं। निचली अदालत ने इनमें से पांच को फांसी और सात को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट ने सभी को बरी कर दिया, जिससे उन्हें न्याय की एक किरण नजर आई।


'सच्चाई सामने आए, यही चाहते हैं'
उन्होंने आगे कहा:
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“अगर कोई दोषी है तो उसे सजा जरूर मिले।”
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“लेकिन जो लोग निर्दोष हैं, उन्हें जबरन फंसाना न्याय नहीं बल्कि अन्याय है।”
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“मुख्यमंत्री को चाहिए कि वो खुद इन आरोपियों की कहानी उनकी जुबानी सुनें।”
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“मैं मांग करता हूं कि इस केस पर आधारित एक फिल्म ‘मुंबई सीरियल ब्लास्ट फाइल’ बनाई जाए ताकि सच को सामने लाया जा सके।”
'बेकसूरों को बनाया गया निशाना'
अबू आजमी ने दावा किया कि इस केस में असली गुनहगारों को नहीं, बल्कि बेकसूर लोगों को बलि का बकरा बनाया गया। उन्होंने कहा कि उस समय के कुछ अधिकारियों ने अपनी नाकामी छिपाने के लिए निर्दोषों को फंसा दिया।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा: “हज हाउस के इमाम को गलत तरीके से गिरफ्तार किया गया था, लेकिन बाद में बेकसूर साबित हुए।” “मालेगांव ब्लास्ट केस और अहमदाबाद केस में भी बेगुनाहों को सालों जेल में रखा गया और अंत में उन्हें बरी कर दिया गया।”

क्या है मामला?
गौरतलब है कि 11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए सात सीरियल ब्लास्ट में 180 से अधिक लोगों की जान गई थी और सैकड़ों घायल हुए थे। इस केस में कुल 13 लोगों को आरोपी बनाया गया था, जिनमें से एक आरोपी का ट्रायल के दौरान ही निधन हो गया था।

