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जातिगत जनगणना कराएगी मोदी सरकार-कैबिनेट समिति ने लिया फैसला

केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने दी मीडिया को जानकारी

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नीति बनाने, संसाधनों के समान वितरण के लिए अहम होते हैं जनगणना के आंकड़े

2021 में कोरोना महामारी के कारण टल गई थी जनगणना 

नई दिल्ली। केंद्र की मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना को लेकर बड़ा फैसला लिया है। सरकार ने जातिगत जनगणना कराने का एलान कर दिया। यह जनगणना मूल जनगणना के साथ ही कराई जाएगी। कैबिनेट की बैठक के बाद मंत्रिमंडल के फैसलों पर केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहाकि राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति ने आज फैसला किया है कि जाति गणना को आगामी जनगणना में शामिल किया जाना चाहिए।

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1951 से हर 10 साल के अंतराल पर होती थी जनगणना 

आपको बता दें कि जनगणना 1951 से हर 10 साल के अंतराल पर की जाती थी, मगर 2021 में कोरोना महामारी के कारण जनगणना टल गई थी। राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को भी अपडेट करने का काम बाकी है। अभी तक जनगणना की नई तारीख का आधिकारिक तौर पर एलान भी नहीं किया गया है। जनगणना के आंकड़े सरकार के लिए नीति बनाने और उन पर अमल करने के साथ देश के संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित करने के लिए अहम होते हैं। विपक्षी कांग्रेस समेत तमाम सियासी पार्टियां जाति जनगणना की मांग कर रहे थे, ताकि देश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की कुल संख्या का पता चल सके। 

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कहा-पूर्ववर्ती सरकारों ने जातिगत जनगणना का विरोध किया

केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने यह भी कहा कि कांग्रेस और पूर्ववर्ती सरकारों ने हमेशा से ही जातिगत जनगणना का विरोध किया है। आजादी के बाद से ही जाति को जनगणना की किसी भी प्रक्रिया में शामिल नहीं किया गया। 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लोकसभा में आश्वासन दिया था कि जातिगत जनगणना को कैबिनेट के सामने रखा जाएगा। इसके बाद एक मंत्रीमंडल समूह का गठन किया गया। इसमें ज्यादातर राजनीतिक दलों ने जातिगत जनगणना की संस्तुति की। इसके बावजूद भी कांग्रेस ने महज खानापूर्ति का काम किया और उसने महज सर्वे कराना ही उचित समझा। 

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इंडी गठबंधन व सहयोगियों ने राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया

केंद्रीय मंत्री यही नही रूके उन्होंने ने कहाकि यह अच्छी तरह से समझा जा सकता है कि कांग्रेस और उसके इंडी गठबंधन के सहयोगियों ने जाति जनगणना को केवल एक राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया है। जनगणना का विषय संविधान के अनुच्छेद 246 की केंद्रीय सूची की क्रम संख्या 69 पर अंकित है। यह केंद्र का विषय है। हालांकि, कुछ राज्यों ने जातियों की गणना के लिए सर्वेक्षण सुचारू रूप से किया है, जबकि राजनीतिक दृष्टिकोण से गैर-पारदर्शी तरीके से ऐसे सर्वेक्षण किए हैं। ऐसे सर्वेक्षणों ने समाज में भ्रांति फैली है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि हमारा सामाजिक ताना-बाना राजनीति के दबाव में न आए। हमें जाति जनगणना के लिए एक मंच तैयार करना चाहिए। इससे यह सुनिश्चित होगा कि समाज आर्थिक और समाजिक दृष्टि से मजबूत होगा और देश का विकास भी निर्बाध रूप से होता रहेगा। जनगणना के आंकड़े 2026 में जारी किए जाएंगे। इससे भविष्य में जनगणना का चक्र बदल जाएगा। जैसे 2025-2035 और फिर 2035 से 2045। 

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विपक्षी पार्टियां जातिगत जनगणना की कर रही थीं मांग

जनगणना के आंकड़े सरकार के लिए नीति बनाने और उन पर अमल करने के साथ-साथ देश के संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित करने के लिए बेहद अहम होते हैं। इससे न सिर्फ जनसंख्या बल्कि जनसांख्यिकी, आर्थिक स्थिति कई अहम पहलुओं का पता चलता है। विपक्षी कांग्रेस समेत तमाम सियासी पार्टियां जाति जनगणना की मांग कर रही थीं। ताकि देश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की कुल संख्या का पता चल सके। 

तेजस्वी ने मोदी और बीजेपी पर लगाया था जातिगत जनगणना के विरोध का आरोप

आपको बता दें कि पिछले दस अप्रैल को जातिगत जनगणना को लेकर तेजस्वी यादव की प्रतिक्रिया आई थी। पटना में मीडिया से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा था कि देश में जातिगत जनगणना होनी चाहिए। हम तो देशभर में जातिगत जनगणना कराने का प्रस्ताव लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास गए थे। पीएम मोदी और पूरी बीजेपी जातिगत जनगणना के विरोध में है। इसी वजह से जातिगत जनगणना नहीं हो रही है। कहीं न कहीं ये लोग समझते हैं कि जब देश की असली तस्वीर सामने आएगी तो इनकी राजनीति जो हिंदू-मुस्लिम पर चलती है, वो खत्म हो जाएगी।

1872 में हुई थी पहली जनगणना  

भारत में हर दस साल में जनगणना होती है। पहली जनगणना 1872 में हुई थी। 1947 में आजादी मिलने के बाद पहली जनगणना 1951 में हुई थी और आखिरी जनगणना 2011 में हुई थी। आंकड़ों के मुताबिक, 2011 में भारत की कुल जनसंख्या 121 करोड़ थी, जबकि लिंगानुपात 940 महिलाएं प्रति 1000 पुरुष और साक्षरता दर 74.04 फीसदी था। इससे पहले 1931 में ब्रिटिश शासन के दौरान जाति आधारित आंकड़े एकत्र किए गए थे। इस कदम को सामाजिक न्याय और समावेशी नीतियों को बढ़ावा देने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
 

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