
महाराष्ट्र में हिंदी भाषा की अनिवार्यता को लेकर CM देवेंद्र फडणवीस बड़ा फैसला, किया ये ऐलान




मुंबई। महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में हिंदी भाषा को अनिवार्य करने के निर्णय पर फिलहाल विराम लगा दिया है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने स्पष्ट किया कि जब तक त्रिभाषा नीति पर गठित नई समिति अपनी रिपोर्ट नहीं सौंपती, तब तक इस फैसले को स्थगित रखा जाएगा।
कैबिनेट बैठक के बाद मीडिया से बातचीत में मुख्यमंत्री फडणवीस ने कहा कि राज्य सरकार ने त्रिभाषा नीति पर पहले जारी किए गए दोनों शासकीय आदेश (GR) वापस ले लिए हैं। साथ ही एक नई समिति बनाई जा रही है, जो इस नीति को लागू करने के तौर-तरीकों पर विस्तृत विचार करेगी। यह समिति डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में गठित की गई है, जो सभी संबंधित पक्षों से बातचीत कर अपनी सिफारिशें देगी।


"मराठी हमारी प्राथमिकता रहेगी"
फडणवीस ने जोर देकर कहा, "हमारी त्रिभाषा नीति का केंद्र बिंदु मराठी भाषा ही रहेगा।" उन्होंने यह भी कहा कि "कुछ लोग केवल दिखावा कर रहे हैं, जबकि कर्नाटक और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने पहले ही अपनी शैक्षणिक नीतियां लागू कर दी हैं।"
पिछली सरकार की भूमिका पर निशाना
सीएम फडणवीस ने बताया कि 16 अक्टूबर 2020 को उद्धव ठाकरे की अगुवाई में माशेलकर समिति गठित की गई थी, जिसने 101 पन्नों की एक रिपोर्ट सौंपी थी। इस रिपोर्ट में मराठी को प्राथमिक भाषा के रूप में बनाए रखने की सिफारिश के साथ हिंदी और अंग्रेज़ी को भी कक्षा 1 से 12 तक पढ़ाने की बात कही गई थी।


उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि 7 जनवरी 2022 को उद्धव ठाकरे की कैबिनेट ने इस रिपोर्ट पर मुहर लगाई थी, और त्रिभाषा नीति को स्वीकार किया गया था।
छात्रों के हित में लिया गया निर्णय
फडणवीस ने बताया कि पहले जो GR जारी किए गए थे, उसमें मराठी को पहली, अंग्रेज़ी को दूसरी और हिंदी को तीसरी भाषा बताया गया था। लेकिन 17 जून को सरकार ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि तीसरी भाषा कोई भी भारतीय भाषा हो सकती है। तीसरी भाषा की पढ़ाई पहली कक्षा से नहीं बल्कि तीसरी कक्षा से शुरू होगी। पहले केवल संवाद के स्तर पर भाषा की शिक्षा दी जाएगी।

मुख्यमंत्री ने कहा, "हमारी नई नीति छात्र-केंद्रित होगी, और हम यह सुनिश्चित करेंगे कि मराठी माध्यम के छात्रों को किसी भी स्तर पर नुकसान न हो।"
नई समिति पर टिकी नजरें
अब डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में गठित समिति ही यह तय करेगी कि त्रिभाषा नीति को किस स्वरूप में और किन कक्षाओं से लागू किया जाए। इसके लिए सभी संबंधित शिक्षाविदों, विशेषज्ञों और सामाजिक संगठनों से राय ली जाएगी।
फिलहाल के लिए हिंदी भाषा को अनिवार्य बनाए जाने का निर्णय स्थगित कर दिया गया है और माशेलकर समिति की रिपोर्ट का पुनः अध्ययन किया जाएगा।

