
भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश (CJI) होंगे जस्टिस गवई
राष्ट्रपति दौपदी मुर्मू ने उनके नाम को दी मंजूरी




प्रधान न्यायाधीश खन्ना ने न्यायमूर्ति गवई के नाम की सिफारिश की थी
14 मई को ग्रहण करेंगे सीजेआई का पदभार
नई दिल्ली। जस्टिस बीआर गवई भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश (CJI) होंगे। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उनके नाम को मंजूरी दे दी है। निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार, 16 अप्रैल को प्रधान न्यायाधीश खन्ना ने न्यायमूर्ति गवई के नाम की सिफारिश की थी। गौरतलब है कि सीजेआई संजीव खन्ना का कार्यकाल 13 मई को खत्म हो रहा है। जस्टिस बीआर गवई 14 मई को सीजेआई का पदभार ग्रहण करेंगे। विधि मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी कर न्यायमूर्ति गवई को भारत के 52वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की घोषणा की। न्यायमूर्ति गवई का कार्यकाल छह महीने का होगा। 23 दिसंबर को 65 वर्ष की आयु होने पर न्यायमूर्ति गवई का कार्यकाल खत्म हो जाएगा।

अनुसूचित जाति से आने वाले दूसरे मुख्य न्यायाधीश होंगे जस्टिस गवई
केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर इस नियुक्ति की पुष्टि की। बताया कि यह नियुक्ति संविधान में निहित प्रावधानों के तहत राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृत की गई है। वर्तमान में न्यायमूर्ति गवई सर्वोच्च न्यायालय के वह वरिष्ठतम न्यायाधीशों में शामिल हैं। जस्टिस गवई अनुसूचित जाति से आने वाले दूसरे मुख्य न्यायाधीश होंगे। उनसे पहले जस्टिस के. जी. बालाकृष्णन इस पद पर रह चुके हैं। जस्टिस गवई का जन्म 24 नवम्बर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले में हुआ। उन्होंने 1985 में वकालत की शुरुआत की और 1987 से बॉम्बे हाईकोर्ट में स्वतंत्र रूप से प्रैक्टिस शुरू की। जस्टिस गवई संवैधानिक और प्रशासनिक मामलों के विशेष जानकार हैं।


बॉम्बे हाईकोर्ट का न्यायाधीश रह चुके हैं
वर्ष 2003 में उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया और 2005 में वह स्थायी न्यायाधीश बने। मई 2019 में वे सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत हुए। आपको बता दें कि जस्टिस गवई, पूर्व राज्यपाल और प्रतिष्ठित दलित नेता रामकृष्ण सूर्यभान गवई के पुत्र हैं। उनके पिता ‘दादा साहब’ के नाम से प्रसिद्ध थे और सामाजिक न्याय की दिशा में उनका सराहनीय योगदान रहा।

अनुच्छेद 370 को हटाने के निर्णय को वैध ठहराया
न्यायमूर्ति गवई ने अपने सुप्रीम कोर्ट कार्यकाल के दौरान कई ऐतिहासिक फैसलों में निर्णायक भूमिका निभाई। वह उस संविधान पीठ के हिस्सा रहे जिसने अनुच्छेद 370 को हटाने के निर्णय को वैध ठहराया था। उन्होंने चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक ठहराने वाले फैसले में भाग लिया। जस्टिस गवई ने गैरकानूनी ध्वस्तीकरण के खिलाफ दिशा-निर्देश जारी करते हुए ‘बुलडोजर कार्रवाई’ पर अंकुश लगाने की पहल की। राज्यों को अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण की अनुमति देने वाले फैसले में भी वे शामिल रहे। इसके अलावा दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्होंने व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को रेखांकित किया। राजीव गांधी हत्या मामले में दोषी ए.जी. पेरारिवलन की रिहाई के आदेश वाली पीठ का भी नेतृत्व किया। इसलिए उनके नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट से न्यायिक सुधारों और जनहित से जुड़े निर्णयों की अपेक्षा की जा रही है.

