हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: 18 साल से कम उम्र की लड़की से शादी के बाद भी संबंध बनाना रेप, मुस्लिम पर्सनल लॉ को नहीं माना
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा- धर्म या व्यक्तिगत कानून से ऊपर हैं बाल विवाह निषेध और POCSO जैसे विशेष कानून, कोर्ट ने नाबालिग लड़की को बाल कल्याण समिति के हवाले करने का आदेश दिया।

चंडीगढ़। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा है कि 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की से शादी के बाद भी शारीरिक संबंध बनाना “रेप” माना जाएगा, चाहे वह किसी भी धर्म या पर्सनल लॉ के तहत क्यों न हो। कोर्ट ने साफ किया कि POCSO (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण) अधिनियम, 2012 के प्रावधान किसी भी धार्मिक या वैवाहिक सहमति से ऊपर हैं।



यह फैसला पंजाब के होशियारपुर जिले की एक 17 वर्षीय मुस्लिम लड़की और उसके पति की याचिका पर आया। दोनों ने अपने परिवारों की इच्छा के खिलाफ शादी करने के बाद अदालत से सुरक्षा की मांग की थी। कपल ने यह दलील दी कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत लड़की को यौवन प्राप्त करने के बाद (आमतौर पर 15 वर्ष की उम्र में) शादी का अधिकार होता है।

न्यायमूर्ति सुभाष मेहता ने इस तर्क को अस्वीकार करते हुए कहा कि, “विपरीत वैधानिक कानूनों के सामने व्यक्तिगत कानून प्रभावी नहीं हो सकते। बाल विवाह निषेध अधिनियम, POCSO और किशोर न्याय अधिनियम धर्मनिरपेक्ष व कल्याणकारी कानून हैं, जो बच्चों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं।”

तीन प्रमुख कानूनों का हवाला
1. बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 – लड़की की शादी की न्यूनतम कानूनी उम्र 18 वर्ष।
2. POCSO अधिनियम, 2012 – 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति से किसी भी प्रकार की यौन गतिविधि, चाहे सहमति हो या विवाह, वैधानिक बलात्कार मानी जाएगी।
3. किशोर न्याय अधिनियम, 2015 – हर बच्चे को दुर्व्यवहार, शोषण और उपेक्षा से संरक्षण का अधिकार।
सरकार का पक्ष और अदालत का आदेश
राज्य सरकार ने इस विवाह को बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत रद्द योग्य बताया। अदालत ने इस तर्क को स्वीकारते हुए कहा कि नाबालिग लड़की को सुरक्षा के नाम पर पति के पास नहीं छोड़ा जा सकता।
अदालत ने होशियारपुर के एसएसपी को आदेश दिया कि लड़की को बाल कल्याण समिति (CWC) के समक्ष प्रस्तुत किया जाए और उसकी सुरक्षा व कल्याण सुनिश्चित किया जाए। साथ ही, याचिकाकर्ता कपल को किसी शारीरिक नुकसान से बचाने के लिए पुलिस को भी निर्देश दिए गए।
कोर्ट की टिप्पणी
“बच्चों की सुरक्षा में राज्य की बाध्यकारी रुचि सर्वोपरि है। धर्म या पर्सनल लॉ के नाम पर नाबालिगों के अधिकारों से समझौता नहीं किया जा सकता।”


