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सशक्त भारत के लिए एक राष्ट्र एक चुनाव जरुरी, बोले सुधांशु त्रिवेदी- महाकुंभ वैश्विक सनातन की आस्था का सबसे बड़ा मेला

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सशक्त भारत के लिए एक राष्ट्र एक चुनाव जरुरी, बोले सुधांशु त्रिवेदी- महाकुंभ वैश्विक सनातन की आस्था का सबसे बड़ा मेला
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वाराणसी,भदैनी मिरर। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) के स्वतंत्रता भवन में आयोजित काशी मंथन की ओर से आयोजित "एक राष्ट्र-एक चुनाव" पर व्याख्यान में राज्यसभा सांसद और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के प्रवक्ता डॉक्टर सुधांशु त्रिवेदी ने हिस्सा लिया. इस दौरान उन्होंने एक राष्ट्र एक चुनाव के फायदे गिनाये. इस दौरान उन्होंने महाकुम्भ को लेकर अहम टिपण्णी की और विपक्ष पर निशाना साधा.

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मीडिया से बातचीत में डॉक्टर सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि संविधान निर्माता ने जब देश के लोकतंत्र की संकल्पना की उन्होंने एक साथ ही सारे चुनाव कराने का निर्णय लिया था और 1952 से लेकर 1967 तक किसी के तहत एक चुनाव हो रहे थे. देश के आर्थिक विकास के लिए, कंसंट्रेट होकर काम करने के लिए, देश के आर्थिक संसाधनों का बेहतर समन्वय, राजनीति में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा और समाज में सामाजिक समरसता बेहतर रहे इसके लिए एक राष्ट्र एक चुनाव जरुरी है. उन्होंने कहा कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने और बीजेपी सरकार ने कमेटी का गठन किया है और यह कमेटी के गठन के अनुसार एक देश एक चुनाव संविधान के निर्माता के मूल भाव के अनुरूप है. जो लोग इसका विरोध कर रहे है सरकार के सभी सकारात्मक प्रयासों का विरोध करते रहे है.

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महाकुंभ का सन्देश एक रहेगा भारत देश

डॉक्टर सुधांशु त्रिवेदी ने महाकुंभ में आये श्रद्धालुओं की अपार भीड़ को लेकर कहा कि इसका साफ़ सन्देश है कि महाकुंभ का सन्देश एक रहेगा भारत देश. और गंगा की धारा आज काशी की भूमि पर है. गंगा की अविरल धारा न बंटे समाज हमारा. जो लोग समाज को बांटना चाहते थे टुकड़े-टुकड़ों में और फिर एक टुकड़े को किसी कट्टरपंथी टुकड़े के साथ मिलाकर सत्ता के एक टुकड़े को पाना चाहते थे उनकी अरमान इसमें बहते हुए नजर आए हैं इसलिए उनकी छटपटाहट और बौखलाहट समझ आती है.

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कठमुल्ला शब्द पर किया बचाव

विधानसभा में सीएम योगी आदित्यनाथ के द्वारा दिए गए बयान "कठमुल्लों की संस्कृति नहीं पैदा होने देंगे" के सवाल पर डॉक्टर सुधांशु त्रिवेदी ने बचाव करते हुए कहा कि यह देश वह है जिसमें किसी चीज में जड़ता नहीं है. कठमुल्ला का अर्थ यह होता है जो काठ का बना होता हैं, जिसमें कोई परिवर्तन नहीं हो सकता. परन्तु भारतीय समाज, हिन्दू समाज यह निरंतर प्रवहमान है. जो हर प्रकार के विचार का स्वागत करता है जो वेदों के उद्घोष को मानता है. हम किसी का विरोध नहीं करते लेकिन के समय में सास्वत धर्म है सनातन और सनातन उसी धर्म में आगे बढ़ रहा है.

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