Makar Sankranti 2025 : पूरे देश में 14 जनवरी को मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2025) का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है। हिंदू धर्म में इस त्योहार का विशेष महत्व है। भारत के विभिन्न हिस्सों में इसे अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है, जैसे खिचड़ी, उत्तरायण और लोहड़ी। यह सूर्य की पूजा का पर्व है, और इस दिन स्नान और दान का विशेष महत्व होता है।
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Makar Sankranti 2025 : खरमास की समाप्ति और मांगलिक कार्यों का शुभारंभ
इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं, जिससे खरमास का अंत होता है और मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है। हालांकि साल में कुल 12 संक्रांतियां होती हैं, लेकिन मकर संक्रांति को इनमें सबसे विशेष माना गया है।
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क्या होती है संक्रांति?
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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है, तो इसे संक्रांति कहा जाता है। सूर्य हर 30 दिनों में राशि परिवर्तन करता है, जिसके कारण साल में 12 संक्रांतियां होती हैं। जिस राशि में सूर्य प्रवेश करता है, उसी राशि के नाम पर संक्रांति का नामकरण होता है। जैसे, सूर्य के मकर राशि में प्रवेश पर इसे मकर संक्रांति कहा जाता है।
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पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध की ओर सूर्य की गति
सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करता है, तो पृथ्वी का उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर झुकने लगता है। भारत, जो उत्तरी गोलार्ध में स्थित है, में इस कारण दिन लंबे और रातें छोटी होने लगती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह समय अत्यंत शुभ माना जाता है।
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धार्मिक, वैज्ञानिक और आयुर्वेदिक महत्व
मकर संक्रांति के समय सूर्य की किरणें फसलों को पकने में सहायता करती हैं। माना जाता है कि इस दिन से ठंड कम होने लगती है। इसके अलावा, आयुर्वेद के अनुसार, मकर संक्रांति पर तिल, गुड़ और चावल से बने व्यंजन खाने से शरीर को ऊर्जा मिलती है। इस कारण यह पर्व विशेष महत्व रखता है।
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पुण्य और महापुण्य काल का महत्व
मकर संक्रांति के दिन पुण्य और महापुण्य काल का विशेष महत्व होता है। धार्मिक मान्यता है कि इस समय गंगा में स्नान और दान करने से व्यक्ति के सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
गीता में भी कहा गया है कि जो व्यक्ति उत्तरायण और शुक्ल पक्ष में शरीर त्यागता है, वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है। इस दिन जूते, अन्न, तिल, गुड़, वस्त्र और कंबल का दान करने से शनि और सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है।
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अन्य संक्रांतियां और उनका महत्व
जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, तो इसे मेष संक्रांति कहा जाता है। इसी दिन पंजाब में बैसाखी का पर्व मनाया जाता है, जो खेती का त्योहार भी है। इसी प्रकार, सूर्य के तुला राशि में प्रवेश पर तुला संक्रांति होती है। इसे कर्नाटक में तुला संक्रमण कहा जाता है।
सूर्य जब कर्क राशि में प्रवेश करता है, तो इसे कर्क संक्रांति कहा जाता है। यह जुलाई के मध्य में होती है। मकर और कर्क संक्रांति के बीच के छह महीने का अंतर सूर्य की स्थिति और ग्रह-नक्षत्रों के आधार पर गिना जाता है।
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मकर संक्रांति का सबसे अधिक महत्व क्यों?
सूर्य, चंद्रमा और नक्षत्रों पर आधारित इस त्योहार में सूर्य का सबसे अधिक महत्व है। मकर संक्रांति न केवल धार्मिक रूप से बल्कि वैज्ञानिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी खास है। यही कारण है कि इसे वर्ष की सबसे शुभ संक्रांति माना जाता है।