बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री खालिदा जिया का निधन, तीन दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित
पूर्व सैन्य अधिकारी और राष्ट्रपति जिया-उर-रहमान की पत्नी थीं खालिदा
पति की हत्या के बाद राजनीति में रखा कदम, तीन बार बनीं बांग्लादेश की प्रधानमंत्री
नई दिल्ली। बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की प्रमुख खालिदा जिया का मंगलवार सुबह 6 बजे ढाका में निधन हो गया। वह 80 साल की थीं और पिछले 20 दिनों से वेंटिलेटर पर थीं। खालिदा कई साल से सीने में इन्फेक्शन, लीवर, किडनी, डायबिटीज, गठिया और आंखों की परेशानी से जूझ रहीं थीं। उनके निधन की पुष्टि परिवार और पार्टी नेताओं ने की है। 1991 में बांग्लादेश में लोकतंत्र की बहाली के बाद हुए चुनावों में खालिदा जिया देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। इसके बाद वे 1996 और 2001 में भी प्रधानमंत्री रहीं। उनके कार्यकाल के दौरान राष्ट्रवाद, सेना और प्रशासन की भूमिका, और भारत-बांग्लादेश संबंधों को लेकर कई बड़े फैसले हुए। समर्थक उन्हें सशक्त नेता मानते रहे, जबकि आलोचक उनके शासन को टकराव और ध्रुवीकरण वाला बताते हैं।



खालिदा जिया का जन्म 15 अगस्त 1945 को तत्कालीन ब्रिटिश भारत के दिनाजपुर जिले (अब बांग्लादेश में) में हुआ। उनका बचपन अपेक्षाकृत सामान्य रहा और शुरुआती जीवन में उनका राजनीति से कोई सीधा संबंध नहीं था। उनकी पहचान और जीवन की दिशा तब बदली, जब उनकी शादी बांग्लादेश के सैन्य अधिकारी जिया-उर-रहमान से हुआ, जो आगे चलकर बांग्लादेश के राष्ट्रपति बने। खालिदा जिया की राजनीति में एंट्री सीधे चुनावी मैदान से नहीं, बल्कि अपने पति की विरासत से हुई। 1981 में राष्ट्रपति जिया-उर-रहमान की हत्या के बाद बांग्लादेश की राजनीति में बड़ा शून्य पैदा हुआ। इसी दौर में खालिदा जिया को बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की कमान सौंपी गई। एक गृहिणी से पार्टी प्रमुख बनने तक का उनका सफर अचानक था, लेकिन जल्द ही उन्होंने खुद को एक मजबूत राजनीतिक चेहरा साबित किया।


उनके राजनीतिक सफर की बात करें तो खालिदा जिया का राजनीतिक जीवन काफी उठापटक भरा रहा। 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सेना ने उन्हें नजरबंद कर दिया था। वह जुलाई से दिसंबर तक पाकिस्तानी सेना की कैद में रहीं थीं। 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान की हार के बाद खालिदा जिया को रिहा किया गया। इसके बाद भी उनकी राजनीति आंदोलनों, टकराव और हमलों से घिरी रही। वर्ष 2015 में ढाका में मेयर चुनाव के प्रचार के दौरान उनके काफिले पर फायरिंग और पत्थरबाजी भी हुई थी, लेकिन वह बाल-बाल बच गईं। हालांकि खालिदा जिया का भारत को लेकर रुख ज्यादातर टकराव वाला ही रहा। प्रधानमंत्री रहते हुए खालिदा ने भारत को बांग्लादेश की जमीन से होकर रास्ता देने का विरोध किया। जबकि भारत अपने पूर्वोत्तर राज्यों तक पहुंचने के लिए यह रास्ता चाहता था। खालिदा जिया का कहना था कि इससे बांग्लादेश की सुरक्षा को खतरा होगा। इसके अलावा 1972 की ’भारत-बांग्लादेश मैत्री संधि’ को आगे बढ़ाने का भी विरोध किया और कहा था कि संधि बांग्लादेश को कमजोर बनाती है। इसके अलावा वह कहती रहीं कि उनकी पार्टी ् बांग्लादेश को भारत के दबदबे से बचाने के लिए काम कर रही है। 2018 की एक रैली में कहा था कि बांग्लादेश को ’भारत का राज्य’ नहीं बनने दिया जाएगा।

बांग्लादेश में 3 दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा
अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस ने पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के निधन पर तीन दिन के राष्ट्रीय शोक और उनकी नमाज-ए-जनाजा वाले दिन एक दिन की सरकारी छुट्टी का ऐलान किया है। उन्होंने कहा कि तानाशाही और फासीवादी सोच के खिलाफ खालिदा जिया का नेतृत्व अडिग रहा। जब-जब देश में लोकतांत्रिक संकट आया, उन्होंने अपने नेतृत्व से लोगों को दिशा दिखाई और आजादी की भावना को मजबूत किया। यूनुस ने देशवासियों से एकजुट रहने की अपील की।
