महामूर्ख सम्मेलन: गंगा तट पर मूर्खों का जमावड़ा, खूब हुई हंसी ठिठोली
डॉ.राजेंद्र प्रसाद घाट पर हुए आयोजन में बड़ी संख्या में जुटे लोग, हास्य-व्यंग्य की कविताओं ने किया आनंदित




वाराणसी, भदैनी मिरर। काशी की ख्याति विद्वता में विश्वव्यापी है तो ‘विशिष्ट मूर्खता’ में भी जवाब नहीं है। पहली अप्रैल को एक अकल्पनीय कारमाने ने से कथन की पुष्टि हुई। ‘हम मूर्ख थे, हम मूर्ख हैं और हम मूर्ख रहेंगे। मूर्खता में बात अपने दिल की कहेंगे’-इसी मंतव्य के साथ मंगलवार शाम आरपी घाट पर काशी का महामूर्ख मेला संपन्न हुआ।

मेले में मंचासीन महामूर्खों ने दिल खोल कर अपनी मूर्खता की दास्तां बयां की तो जमकर ठहाके लगे। इस मेले के 57 साल भी इस साल पूरे हो गए। आरपी घाट पर इसका आयोजन सन-1987 से हो रहा है।
आयोजन का प्रारंभ गर्दभ ध्वनि से हुआ तो मंडप में दूल्हा बने हुए नारी का सम्मान किया गया, वहीं दुल्हन बने पुरुष को सोलहो श्रृंगार करके दुल्हन बनाया गया। बेमेल विवाह हुआ। फेरों से पहले दूल्हा डॉ. नेहा द्विवेदी एवं दुल्हन डॉ. शिव-शक्ति प्रसाद द्विवेदी ने लालटेन पर हाथ रख कर शपथ दोहराई।

‘विवाह जीवन की सबसे बड़ी मूर्खता है। यह जानते हुए कि इसके सफल और विफल दोनों हालात में इसके अपने-अपने खतरे हैं, विवाह विफल हुआ तो दुखों का ज्वार है, सफल हुआ तो चीन की दीवार है। हम यह खतरा सात जनम तक उठाने को तैयार हैं।’




