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चार साल बाद BHU कार्यकारी परिषद का हुआ गठन, मेयर अशोक तिवारी और पूर्व सांसद महेंद्रनाथ पांडेय को भी जगह
 

भारत सरकार के उच्च शिक्षा विभाग की अधिसूचना जारी, बीएचयू अधिनियम 1915 की धारा 14(1) के तहत राष्ट्रपति ने कार्यकारी परिषद में तीन वर्षों के लिए किए नामांकन
 

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वाराणसी, भदैनी मिरर। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) में चार साल बाद कार्यकारी परिषद (Executive Council) में नए सदस्यों का मनोनयन किया गया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जो विश्वविद्यालय की विज़िटर (Visitor) हैं, ने बीएचयू अधिनियम, 1915 की धारा 14(1) के अंतर्गत आठ नामों को परिषद में नामित किया है। यह नामांकन तीन वर्षों की अवधि के लिए किया गया है और यह तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है। इसके पहले गठित कार्यकारी परिषद का कार्यकाल वर्ष 2021 में ख़त्म हो गया और उसके बाद गठन नहीं हो सका था। पूर्व कुलपति का कार्यकाल बिना एग्जीक्यूटिव काउंसिल के ही पूरा हो गया। 

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इस संबंध में प्रवीर सक्सेना, अवर सचिव, भारत सरकार, शिक्षा मंत्रालय, उच्च शिक्षा विभाग ने बीएचयू के रजिस्टार को पत्र भेजा है। कार्यकारी परिषद में पूर्व सांसद, चंदौली डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय,  महापौर (वाराणसी नगर निगम) अशोक तिवारी,  शिक्षाविद, समाजसेवी एवं चेयरमैन, आदर्श जनता महाविद्यालय, चुनार, मिर्जापुर दिलीप पटेल, दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह, प्रो. ओमप्रकाश भारती (समाजशास्त्र) बीएचयू, प्रो. श्वेता प्रसाद, (समाजशास्त्र) बीएचयू,  प्रो. (सेवानिवृत्त) बेचन लाल प्राणी विज्ञान (बीएचयू), और प्रो. (सेवानिवृत्त) उदय प्रताप शाही (रेडियोथेरेपी एवं विकिरण चिकित्सा) बीएचयू का नाम शामिल है। 

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संसद में उठा था मुद्दा 

बीएचयू के पूर्व छात्र और चंदौली से सपा सांसद वीरेंद्र सिंह ने 09 अगस्त 2024 को इस मुद्दे को संसद में उठाया था। उन्होंने शून्यकाल में इस मुद्दे को उठाया था, उसमें यह कहा था कि तीन साल से अधिक समय से गठन नहीं हुआ। विश्वविद्यालय के संचालन के लिए काउंसिल का होना अनिवार्य है। इसके आलावा बीएचयू आईएमएस के प्रोफ़ेसर ओमशंकर ने भी इस मुद्दे को उठाया था। 

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बता दें, एग्जीक्यूटिव काउन्सिल विश्वविद्यालय में सर्वोच्च बॉडी मानी जाती है। इसमें विश्वविद्यालय के संस्थानों, संकायों, विभागों में होने वाली नियुक्तियों के साथ ही प्रमोशन, पाठयक्रम शुरू करने, दीक्षांत समारोह में पदक दिए जाने सहित अन्य शैक्षणिक फैसलों पर अंतिम मुहर लगाई जाती है।  
 

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