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बीएचयू में शिक्षकों का कार्यवाहक कुलपति से सीधा संवाद, भ्रष्टाचार और पदोन्नति जैसे मुद्दों पर उठे सवाल

14 साल से स्थायी न किए गए शिक्षकों, कैस में अनियमितता, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और पूर्व कुलपति के कार्यकाल पर भी जताई नाराज़गी

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वाराणसी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में लंबे समय से चली आ रही शिक्षक समस्याओं को लेकर आखिरकार एक बड़ा मोर्चा खुला। शनिवार को विश्वविद्यालय के केंद्रीय कार्यालय स्थित मीटिंग हॉल में 200 से अधिक शिक्षक कार्यवाहक कुलपति प्रो. संजय कुमार से सीधा संवाद करने पहुंचे। यह संवाद करीब डेढ़ घंटे चला, जिसमें कई बार माहौल गर्मा गया।

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इस संवाद में शिक्षकों ने अपनी वर्षों से लंबित समस्याओं को खुलकर रखा। सबसे बड़ी चिंता 14 वर्ष से कार्यरत अस्थायी शिक्षकों को स्थायी न किया जाना रहा। इसके साथ ही कैस (कैरियर एडवांसमेंट स्कीम) की गलत व्याख्या और पदोन्नति की अनदेखी जैसे गंभीर मुद्दों पर भी सवाल उठाए गए। शिक्षकों ने स्पष्ट कहा कि यदि जल्द सुनवाई नहीं हुई तो "नो कैस-नो क्लास" आंदोलन शुरू किया जाएगा।

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इस बैठक में मौजूद शिक्षकों ने बीएचयू की गिरती साख और अंदरखाने के भ्रष्टाचार पर भी सवाल उठाए। उन्होंने पूर्व कुलपति प्रो. सुधीर कुमार जैन के तानाशाही कार्यशैली को जिम्मेदार ठहराया, जिसके चलते बीएचयू में कई कोर्ट केस बढ़े हैं।

अन्य प्रमुख मांगों में शामिल थे:

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  1. पूर्व सेवाओं की गिनती और नोशनल इन्क्रिमेंट की सुविधा
  2. पीएचडी और पदोन्नति प्रक्रिया में पारदर्शिता
  3. परीक्षा कार्यों का पारिश्रमिक बहाल करना
  4. CGHS जैसी कैशलेस स्वास्थ्य सुविधा लागू करना

शिक्षकों ने उदाहरण दिया कि दिल्ली विश्वविद्यालय और अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ये सभी सुविधाएं वर्षों से लागू हैं, लेकिन बीएचयू में इन्हें नजरअंदाज किया गया है। संवाद में आईएमएस, कला संकाय, सामाजिक विज्ञान, कृषि, विज्ञान, वाणिज्य जैसे प्रमुख संकायों के शिक्षक मौजूद थे। प्रतिनिधिमंडल में डॉ. विनोद कुमार जायसवाल, वैद्य सुशील कुमार दुबे, डॉ. चंदन सिंह, डॉ. धीरेन्द्र राय, डॉ. भोला मौर्या, डॉ. बाला लखेंद्र सहित कई वरिष्ठ शिक्षक शामिल थे।

शिक्षकों ने स्पष्ट कहा कि यदि समस्याओं का त्वरित समाधान नहीं किया गया तो वे आंदोलन करने के लिए बाध्य होंगे।

(इनपुट- हिंदुस्तान अख़बार)
 

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