अनिल अंबानी पर एक और संकट: सरकार ने शुरू की जांच, SFIO को सौंपी बड़ी जिम्मेदारी
कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने रिलायंस ग्रुप की कई कंपनियों में फंड डाइवर्जन और कंपनी कानून उल्लंघन की जांच गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (SFIO) को सौंपी

नई दिल्ली। अनिल अंबानी के नेतृत्व वाले रिलायंस ग्रुप की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं। पहले से ही ईडी, सीबीआई और सेबी की जांचों का सामना कर रहे इस ग्रुप पर अब कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (MCA) ने भी शिकंजा कस दिया है। मंत्रालय ने समूह की कई प्रमुख कंपनियों में फंड डाइवर्जन और कंपनी कानून उल्लंघन के आरोपों की जांच गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (SFIO) को सौंप दी है।



क्या है मामला
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि, मंत्रालय की प्रारंभिक जांच में बड़े पैमाने पर फंड के दुरुपयोग और कंपनी एक्ट के उल्लंघन के संकेत मिले हैं। इसके बाद मंत्रालय ने मामले को SFIO के हवाले कर दिया है ताकि फंड फ्लो, ट्रांजेक्शन की प्रकृति और प्रबंधन की जिम्मेदारी की गहराई से जांच की जा सके।

किन कंपनियों पर जांच का फोकस
SFIO की जांच के दायरे में रिलायंस समूह की कई प्रमुख कंपनियां आई हैं —
- रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर
- रिलायंस कम्युनिकेशंस (RCOM)
- रिलायंस कमर्शियल फाइनेंस
- CLE प्राइवेट लिमिटेड
सूत्रों के मुताबिक, इन कंपनियों के बीच बड़े पैमाने पर कृत्रिम लेन-देन (Artificial Transactions) के जरिए पैसों का ट्रांसफर किया गया, ताकि असली वित्तीय स्थिति को छिपाया जा सके।

ED की बड़ी कार्रवाई -₹7,500 करोड़ की संपत्तियां जब्त
SFIO की जांच शुरू होने से पहले ही प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने रिलायंस ग्रुप की ₹7,500 करोड़ से अधिक की संपत्तियां जब्त की थीं। इनमें रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर की करीब 30 संपत्तियां और रियल एस्टेट कंपनियां जैसे-
आधार प्रॉपर्टी कंसल्टेंसी, मोहनबीर हाईटेक बिल्ड, विहान43 रियल्टी और कैंपियन प्रॉपर्टीज शामिल हैं।
ED के अनुसार, यह कार्रवाई उन बैंक धोखाधड़ी मामलों से जुड़ी है, जिनमें समूह की कंपनियों ने बैंकों से लिए गए लोन का दुरुपयोग किया था।
कर्ज में डूबा रिलायंस ग्रुप
ED की रिपोर्ट में बताया गया कि 2010 से 2012 के बीच रिलायंस कम्युनिकेशंस (RCOM) और उसकी सहयोगी कंपनियों ने भारतीय बैंकों से ₹40,000 करोड़ से अधिक का लोन लिया था।
इनमें से लगभग ₹19,694 करोड़ अब भी बकाया हैं।
कम से कम पांच बैंकों ने इन खातों को “फ्रॉड” घोषित किया है।
जांच एजेंसियों का दावा है कि इस अवधि में जुटाई गई रकम को बिजनेस विस्तार में लगाने की बजाय पुराने कर्ज चुकाने और समूह की अन्य कंपनियों में ट्रांसफर करने के लिए इस्तेमाल किया गया।
लगभग ₹13,600 करोड़ रुपये को कई लेयरों के माध्यम से अलग-अलग कंपनियों में घुमाया गया और एक हिस्सा विदेश भेजा गया — जो बैंक लोन की शर्तों का उल्लंघन है।
SFIO की जांच से बढ़ी कानूनी सख्ती की संभावना
अब जब मामला SFIO को सौंप दिया गया है, तो जांच का दायरा और गहराई दोनों बढ़ गए हैं। SFIO यह पता लगाएगा कि फंड डाइवर्जन का असली जिम्मेदार कौन था और शीर्ष प्रबंधन की इसमें कितनी भूमिका रही।
सरकारी सूत्रों का कहना है कि अगर आरोप साबित होते हैं, तो कंपनी एक्ट की धारा 447 (कॉर्पोरेट धोखाधड़ी) के तहत कठोर सजा और भारी आर्थिक दंड लगाया जा सकता है।


