वाराणसी, भदैनी मिरर। काशीपुराधिपति बाबा विश्वनाथ के महाप्रासाद की मरमरी अंगनाई शनिवार को उस समय पैजनियों की रुनझुन से गूंज उठी जब बम-बम की जयकारों के बीच बाबा की वामांगिनी रानी गौरा ने नववधू के रूप में विश्वनाथ दरबार की स्वर्ण देहरी लांघ कर बाबा और पुत्र गणपति के साथ सुनहरे भवन में प्रवेश किया.
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गौरा रंगभरी एकादशी के दिन भव्य शोभयात्रा के साथ मायके से अपनी ससुराल पहुंची थी. इसके पूर्व महंत कुलपति तिवारी के आवास टेढ़ी नीम से गौने की भव्य बरात निकली. इस मंगल अवसर से अभिभूत बाबा के गण और भक्तों ने फागुनी मौसम के मिजाज के अनुसार जमकर अबीर-गुलाल उड़ाया और बाबा के साथ ही मगनमन इस अवसर का आनन्द उठाया. ऐसी उमंग ऐसा उल्लास की शब्दों में बांध पाना असंभव है. लगा मानों वसन्त खुद इंद्रधनुषी रंगों की सौगात लिये काशी में उतर आया हो. बरात की भव्यता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बारात को महंत आवास से श्री काशी विश्वनाथ मंदिर तक पहुंचने में घंटों लग गये.
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इस बीच अबीर-गुलाल की विपुल वर्षा से इस मार्ग पर अबीर-गुलाल की मखमली कालीन बिछ गयी. रजत पालकी पर विराजे बाबा विश्वनाथ महारानी गौरा और पुत्र गणेश की सुशोभित और अलंकृत झांकी देखने के लिए पूरा बनारस विश्वनाथ धाम में उमड़ आया. बाबा के द्विरागमन की तैयारियां बुधवार सुबह भोर से ही शुरू हो चुकी थी. पूजन-अर्चन, अभिषेक-श्रृंगार, राग-भोग आदि अनुष्ठानों के अनुसार सिंदूरदान और वर-वधू के नेत्रों में काजर पारने जैसे लोकाचार शाम पांच बजे तक पूरी श्रद्धा के साथ निभाए गये.
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सायं साढ़े पांच बजे वाद्ययंत्रों की गूंज और दर्जनों डमरूओं की गड़गड़ाहट के बीच शोभायात्रा की शुरूआत हुई. विश्वनाथ दरबार तक पहुंचने तक मंदिर और आसपास के गलियां अबीर-गुलाल से रंगे भक्तों की भीड़ से पट गयी थी. हर-हर महादेव का उद्घोष पूरे क्षेत्रों को आहलादित कर रहा था. वर-वधू प्रवेश के बाद मंदिर के गर्भगृह में बाबा और माता गौरा के साथ पुत्र विनायक के रजत विग्रहों की झांकी सजाई गयी. नियमित आरतियों के साथ रंगभरी एकादशी की विशेष आरती शिव परिवार को समर्पित की गयी. झांकी की दर्शन के लिए देर रात तक भक्तों का तांता लगा रहा.
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अब भंग तरंग क कइसन मनाही
यह तो रही बाबा के गौने की बात। अब बात रंगपर्व होली के श्रीगणेश की। परंपरा के अनुसार बाबा के साथ फाग खेलने का इस अवसर में भी एक तरह से विनय के भाव समाहित थे। काशी में यह रिवाज रहा है कि रंगभरी एकादशी को बाबा के संग अबीर-गुलाल खेलकर काशीवासी रंगपर्व होली के शुभारंभ की उनसे आज्ञा लेते है। सही मायनों में काशी में होली के हुड़दंग की शुरूआत भी इसी दिन से होती है। यह मान लिया जाता है कि ‘बाबा के अंग लगल जब रंग त भंग तरंग क कइसन मनाही।’ मतलब अड़भंगी बाबा विश्वनाथ की नगरी के लोग अब होली का मूड बना चुके है। आज से रंग भी छलकेंगे और विजया की तरंग में मनभावन बोली-ठिठोली का सिलसिला भी चार दिन तक बेखटक चलेगा। होली के नाम पर गुस्ताखियां माफ! आइये रंग पर्व की मस्ती में डूब जाये हम और आप…।
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