प्रयागराज। महाकुंभ में देश-विदेश से आए करोड़ों श्रद्धालु गंगा और यमुना में आस्था की डुबकी लगा रहे हैं, लेकिन एक चौंकाने वाली रिपोर्ट ने नदी के पानी की स्वच्छता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की ओर से सौंपी गई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि प्रयागराज के अधिकांश घाटों पर जल की गुणवत्ता स्नान के मानकों पर खरी नहीं उतर रही है।
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गंदगी का खतरनाक स्तर, फीकल कोलीफॉर्म की अधिकता
रिपोर्ट के अनुसार, नदी के पानी में फीकल कोलीफॉर्म (Faecal Coliform) का स्तर चिंताजनक रूप से अधिक पाया गया है। यह बैक्टीरिया आमतौर पर सीवेज प्रदूषण का संकेत देता है और इसका बढ़ा हुआ स्तर पानी की अशुद्धता को दर्शाता है। CPCB के अनुसार, किसी भी स्नान योग्य जल में फीकल कोलीफॉर्म की अधिकतम सीमा 2,500 यूनिट प्रति 100 मिलीलीटर होनी चाहिए, लेकिन महाकुंभ के दौरान प्रयागराज के घाटों पर यह मानक कई गुना अधिक दर्ज किया गया।
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इस रिपोर्ट को लेकर NGT की बेंच, जिसमें चेयरपर्सन जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव, जस्टिस सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए. सेंथिल वेल शामिल थे, उन्होंने इस पर गंभीर चिंता व्यक्त की है।
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UPPCB की लापरवाही उजागर
NGT ने यह भी पाया कि उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (UPPCB) ने गंगा और यमुना में गिरने वाले सीवेज को रोकने के लिए उठाए गए ठोस कदमों की कोई विस्तृत रिपोर्ट पेश नहीं की। बोर्ड ने केवल पानी की जांच रिपोर्ट के साथ एक संक्षिप्त पत्र भेजा, जो अधूरी जानकारी थी। इस पर NGT ने UPPCB को कड़ी फटकार लगाई और राज्य के अधिकारियों को 19 फरवरी को होने वाली अगली सुनवाई में वर्चुअली पेश होने का निर्देश दिया।
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श्रद्धालुओं के स्वास्थ्य पर खतरा
हर साल लाखों श्रद्धालु महाकुंभ में गंगा और यमुना के पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं। लेकिन यदि पानी की गुणवत्ता इतनी खराब है, तो इससे त्वचा संक्रमण, पेट संबंधी बीमारियां और जलजनित रोगों का खतरा बढ़ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदूषित जल में स्नान करने से डायरिया, टाइफाइड और अन्य संक्रमण फैल सकते हैं।
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सरकार की तैयारियों पर सवाल
महाकुंभ की तैयारियों के लिए सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, फिर भी जल की स्वच्छता को लेकर इतनी बड़ी लापरवाही क्यों? क्या श्रद्धालुओं की सेहत के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है? NGT की रिपोर्ट ने प्रशासन की तैयारियों की पोल खोल दी है। अब देखना होगा कि राज्य सरकार और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इस गंभीर समस्या को हल करने के लिए क्या ठोस कदम उठाते हैं।