Home संपादकीय मेला – जहां न न्यौता होता और न ही कोई खास

मेला – जहां न न्यौता होता और न ही कोई खास

अवनिंद्र कुमार सिंह (संपादक- भदैनी मिरर)

by Bhadaini Mirror
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महाकुंभ-2025 मेला एक अद्भुत और आध्यामिक महापर्व है. देश-विदेश से आए करोड़ों श्रद्धालु पुण्य की डुबकी लगा रहे है. मौनी अमावस्या की भोर में मची भगदड़ ने दुर्व्यवस्था को उजागर कर दिया. मौके पर मौजूद साथियों ने बताया कि शुरुआती दौर में मेला प्रशासन के हाथ-पाव फूल गए थे, उन्होंने सच पर पर्दा डालने की कोशिश की लेकिन घटना इतनी बड़ी थी कि देर से सही सरकार और प्रशासन को सच बताना ही पड़ा.

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अब बात करते है कुंभ की! महाकुंभ एक पवित्र और सनातन का महापर्व है. कुंभ समय-समय पर लगता रहता है. खासकर कुंभ का इंतजार साधु-महात्माओं को होता है. जब वह महीनों कल्पवास करते है. संगम तट पर कल्पवास की महत्ता रामचरित मानस के अयोध्या कांड में भी है. संगमु सिंहासन सुठि सोहा। छत्रु अखयबटु मुनि मनु मोहा।।चवंर जमुन अरु गंग तरंगा। देखि होहिं दुख दारिद भंगा।।

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तीर्थ राज प्रयाग का गुणगान तो गोस्वामी तुलसीदास जी महराज ने भी रामचरित मानस में की है. उनकी चौपाई माघ मकरगत रबि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई॥देव दनुज किंनर नर श्रेनीं। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनीं।।

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कहने का उद्देश्य मात्र इतना है कि प्रयागराज, त्रिवेणी और कुंभ का महत्व देश का हर सनातनी जानता है. कुंभ मेले को लेकर हर सनातनी के हृदय में आस्था और माता गंगा के प्रति अटूट विश्वास है. वह तट और भी पवित्र हो जाता है जब हमारे शंकराचार्य, अखाड़ों के महामंडलेश्वर, आचार्य, महात्माओं का मिलन होता है. एक तरफ मुक्ति प्रदान करने वाली माता गंगा और दूसरी ओर तट पर मुक्ति का मार्ग बताने वाले हमारे संत होते है. ऐसे में आम श्रद्धालु जो सनातन परंपरा के सच्चे संवाहक है वह इस मौके को कभी नहीं छोड़ेंगे.

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मेले का कैसा न्यौता !

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कुंभ इस वर्ष प्रयागराज में आयोजित है तो स्वाभाविक है, श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा के सारे प्रबंध यूपी सरकार को करनी पड़ेगी. योगी सरकार ने तैयारियों में कोई कसर भी नहीं छोड़ा है. भारी-भरकम बजट भी महाकुंभ के लिए दिया गया. इसी बीच राज्य सरकार ने महाकुंभ में आने के लिए विशेष लोगों को न्यौता भी बांट दिया. अब विचारणीय है कि क्या कभी दुर्गापूजा या विजयादशमी मेले का किसी ने निमंत्रण बांटा? शायद नहीं! सच तो यह है मेला का कोई न्यौता होता ही नहीं है.खैर, अब जिन खास लोगों को न्यौता दिया गया उन खास लोगों के लिए मेला क्षेत्र में व्यवस्थाएं भी हुई. श्रद्धालुओं की जब भीड़ बढ़ी तो मेला प्रशासन सब कुछ दुरुस्त दिखाने के लिए वीआईपी ट्रीटमेंट पर फोकस कर दिया. आम श्रद्धालु पैदल चलता जा रहा है, वहीं, बगल से हूटर लगी गाड़ियां फर्राटा भरते संगम तट तक पहुंच रहीं है. वीआईपी व्यवस्था के साथ स्नान और फिर टेंट सिटी में उनके लिए आलीशान व्यवस्था है. यह कहने का उद्देश्य मात्र इतना था कि कम से कम जहां आस्था और धर्म की बात हो वहां वीआईपी कल्चर तो बंद किया जाना चाहिए.

आम जनता ही है भव्यता

किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रमों की शोभा आम जनता ही होती है. सरकार या अफसर चाहे जितनी भी व्यवस्था कर लें देश-विदेश से भारी संख्या में वीआईपी बुला लें, लेकिन आयोजन की शोभा आम जनता ही होती है. जब पानी का सैलाब आता है तो मजबूत से मजबूत बांध भी टूट जाते है और जब आम जन का सैलाब उमड़ता है तो बड़े से बड़े बैरिकेट भी टूट जाते है. यही वजह रही मौनी अमावस्या के दिन भगदड़ की. हादसे के बाद जनता के बीच शंका बनी हुई है, आखिर हादसे में मरने वालों की संख्या को लेकर, हादसे में घायल लोगों की संख्या के बारे में! अब तक लापता हुए लोगों के बारे में सोचकर!

मेला क्षेत्र की सुरक्षा चाक-चौबंद रखने में योगी सरकार कोई कसर नहीं छोड़ी होगी. ऐसे में मेला क्षेत्र सीसीटीवी कैमरे की नजर में है. यदि सीसीटीवी कैमरे को ही देख लिया जाए तो हादसे का सही समय और वजह स्पष्ट हो जाएगी. इससे हादसे में हताहत लोगों के बारे में भी सही जानकारी सार्वजनिक हो सकती है. यह समय घटना की वजह छिपाने का नहीं, बल्कि सीख लेने का है, ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो और सरकार जिसे आम श्रद्धालु कहती है वह ऐसे अपनों को न खोए!

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