शहरी दौड़ में पीछे छूटा हंसी-ठिठोली कर चंदा जुटान
गली-मोहल्लों में अब कम ही दिखती है बच्चों की टोली

Updated: Mar 12, 2025, 09:49 IST

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चंदा जुटान की जगह अब दबंगई से उगाही का चलन
विशेष प्रतिनिधि/वाराणसी। मस्ती और हंसी-ठिठोली के त्योहार होली में बनारस की आबोहवा अलग ही होती है। बूढ़े-जवान, पुरुष और महिलाओं के साथ ही बच्चे खासे उत्साहित रहते हैं। हालांकि बुजुर्ग परेशान हैं कि यह सार्वजनिक उत्सव भी अब व्यक्तिगत तैयारियों के साथ मनाया जाने लगा है। होली की विलुप्त होती परंपराओं में चंदा जुटाने के तरीके भी शामिल हो गए हैं। अब तक कई स्थानों पर चंदे के लिए दबंगई भी की जाती है।

बमुश्किल एक दशक पहले तक गलियों और चौराहों पर बच्चों की टोली होली का चंदा मांगती दिख जाती थी। चंदा जुटाने के कई और तरीके भी थे जिनमें धागे से बंधा नोट सबसे मजेदार होता था। पारदर्शी धागे से बंधा सड़क पर गिरा नोट लोगों का ध्यान खींचता था। जैसे ही उसे उठाने के लिए कोई झुका, धागे का दूसरा सिरा पकड़े लड़का हरकत में आ जाता था। नोट के पीछे भागते व्यक्ति को बच्चे घेर लेते और चंदा लेकर ही छोड़ते थे। कई बार मोहल्ले के बुजुर्ग मनोरंजन के लिए जानबूझकर ऐसे नोट उठाने की चेष्टा करते थे। हास्य कवि बद्री विशाल बताते हैं कि इसी तरह सड़क पर पर्स गिराने, भोंपू बजाकर परेशान करने और हवा में गमछा टांगकर चंदा वसूलने का खेल भी बच्चे खेलते थे।

मोहल्लों में नहीं दिखती चुहलबाजी
कुछ साल पहले की बात है। कई दिन पहले से ही होली का हुड़दंग शुरू हो जाता था। मोहल्लों में बच्चे वाहन चालकों को रोककर अबीर लगाते थे और होलिका का चंदा मांगते थे। न देने पर हो-हल्ला करते और चंदा ले ही लेते थे। अब यह कि जगह-जगह होलिकाएं सज गई हैं, चार दिन बाद धुरड्डी है। लेकिन बच्चों का हुड़दंग नहीं दिख रहा है। अब होली मिलन समारोहों का क्रेज है। सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों, उद्योग-व्यापार मंडलों, संस्थाओं की ओर से होली के एक सप्ताह बाद तक समारोह होते हैं। इस समय बनारस में 250 से ज्यादा होली मिलन समारोह होते हैं। कुछ तो काफी बड़े स्तर पर होते हैं। बैंक्वेट हॉल, मैरिज लॉन बुक किये जाते हैं और शादी विवाह समारोहों जितना तामझाम किया जाता है। होली मिलन समाराहों में सबसे बड़ा आकर्षण ब्रज की होली, फूलों की होली, फाग के गीत, चैती, कजरी के आयोजन होते हैं। बनारस में कई आयोजनों में सफेद कुर्ता पायजामा और टोपी का प्रचलन है। इन समाराहों में बनारस का खानपान खूब झलकता है। ठंडई, चाट, तरह-तरह की मिठाइयां, पान आकर्षण होते हैं।


पुराने इलाकों में दिखती है परिपाटी
शहर के पुराने मोहल्लों में होली का चंदा वसूलने की परिपाटी अब भी कभी-कभी दिख जाती है। नगवां, सोनारपुरा, जंगमबाड़ी, चौक, नारियल बाजार आदि इलाकों में बच्चे अब भी वाहन चालकों को घेरे दिख जाते हैं। कुछ मोहल्लों में हुरियारे ढोल बजाकर घर-घर से चंदा जुटाते हैं।




