'काव्यार्चन' का होली मिलन समारोह : गंगा तट पर सजी कवियों की महफिल, हास्य कविताओं पर गूंजे ठहाके




वाराणसी। सुबह-ए-बनारस आनंद कानन के घाट संध्या प्रकल्प के तहत संचालित 'काव्यार्चन' परिवार ने मंगलवार को गंगा की लहरों पर बजड़े पर होली मिलन एवं साहित्यिक विमर्श का आयोजन किया। इस अनूठे साहित्यिक आयोजन में 50 से अधिक रचनाकारों ने भाग लिया।
बुढ़वा मंगल महोत्सव को लेकर हुई चर्चा

गंगा की लहरों पर बहते बजड़े पर साहित्य प्रेमियों ने जहां एक ओर हास-परिहास का आनंद लिया, वहीं 25 मार्च को सुबह-ए-बनारस के मंच पर होने वाले बुढ़वा मंगल महोत्सव के स्वरूप को लेकर गहन विचार-विमर्श किया गया।
इस अवसर पर सुबह-ए-बनारस के संस्थापक सचिव डॉ. रत्नेश वर्मा ने कहा कि संस्था का उद्देश्य सांस्कृतिक और साहित्यिक सेवा करना है। उन्होंने बताया कि बहुत ही कम समय में 'काव्यार्चन' एक समृद्ध साहित्यिक मंच के रूप में स्थापित हो चुका है। इसके दो प्रमुख अध्याय 'बहुभाषी काव्यार्चन' और 'कविकुल काव्यार्चन' भी इसके साथ जुड़े हैं। उन्होंने पारंपरिक बुढ़वा मंगल महोत्सव की गरिमा बनाए रखने और युवा पीढ़ी को इससे जोड़ने के लिए नवाचार अपनाने की बात कही।

साथ ही संस्कृत विदुषी प्रो. मनुलता शर्मा ने कहा कि काशी का सांस्कृतिक परिवेश पुरातनता और नूतनता के संतुलन से ही जीवंत बना रहता है। इसी क्रम में डॉ. अलका दुबे, प्रो.वत्सला श्रीवास्तव, राजलक्ष्मी मिश्रा, ऋतु दीक्षित, चेतन तिवारी, प्रियंका अग्निहोत्री ‘गीत’, झरना मुखर्जी, महेंद्र तिवारी ‘अलंकार’, सूर्य प्रकाश मिश्र, गिरीश पांडेय, अभिनव अरुण, डॉ. धर्मप्रकाश मिश्र, सूर्यकांत त्रिपाठी सहित कई साहित्यकारों ने महत्वपूर्ण सुझाव दिए।

होली मिलन में हास्य कविताओं से सजी महफिल
आयोजन के दूसरे सत्र में हास्य कविताओं की महफिल जमी, जहां बनारसी अंदाज में कवियों ने ठहाके लगाने पर मजबूर कर दिया। इस सत्र में पं. धर्मशील चतुर्वेदी की बनारसी बोली में लिखी हास्य कविताएं विशेष आकर्षण का केंद्र रहीं, जिसे उनके पुत्र विवेकशील चतुर्वेदी ने बेहद खास अंदाज में प्रस्तुत किया।
कंचनलता चतुर्वेदी और प्रसन्न वदन चतुर्वेदी की कविताई की जुगलबंदी ने खूब सराहना बटोरी। डॉ. नागेश शांडिल्य ने होलियाना दुर्घटनाओं पर केंद्रित क्षणिकाओं से हंसी का रंग जमाया। एड. रुद्रनाथ त्रिपाठी ‘पुंज’ के व्यंग्य बाणों ने श्रोताओं को गुदगुदाया। प्रताप शंकर दूबे की सदाबहार ग़ज़लों और बृज उत्साह की हास्य रचनाओं ने समां बांध दिया।
इसके अलावा बीना त्रिपाठी, शुभ्रा चट्टोपाध्याय, सुमन मिश्रा, मणि बेन द्विवेदी, उषा पाण्डेय ‘कनक’, सुषमा मिश्रा, मालिनी चौधरी, संगीता श्रीवास्तव, मधुलिका राय, प्रकाश श्रीवास्तव ‘मीरजापुरी’, बिनोद भूषण द्विवेदी, डॉ. शिव प्रकाश, डॉ. प्रवीण तिवारी, परमहंस तिवारी, डॉ. विंध्याचल पांडेय ‘सगुन’, हेमंत ‘निर्भीक', जयशंकर सिंह ‘जय’, राकेश अग्रहरि सहित कई रचनाकारों ने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई।
कार्यक्रम के दोनों सत्रों का संचालन अरविंद मिश्र हर्ष ने किया, जबकि ग़ज़लकार अभिनव अरुण ने धन्यवाद ज्ञापन कर इस अनूठे आयोजन का समापन किया।

