Basant Panchami 2025 : वाराणसी, जिसे काशी और बनारस के नाम से भी जाना जाता है, सदियों से आध्यात्मिक और धार्मिक नगरी रही है। यह नगरी विश्वप्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर के लिए जानी जाती है, लेकिन इसी धर्मभूमि पर मां सरस्वती का द्वादश रूपों वाला दुनिया का एकमात्र मंदिर भी स्थित है। यहां बसंत पंचमी के अवसर पर मां सरस्वती की आराधना के लिए छात्रों और भक्तों की भीड़ उमड़ती है। तो आइए जानते हैं कि काशी में यह मंदिर कहां स्थित है।



विद्या और बुद्धि की देवी का अनोखा मंदिर
हम जिस मंदिर की बात कर रहे हैं वह संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में स्थित मां वाग्देवी का मंदिर है, अपने आप में बेहद ही खास है। मंदिर के महंत सच्चिदानंद पांडे ने बताया कि करीब 32 साल पहले स्थापित यह मंदिर उत्तर भारत में इकलौता ऐसा मंदिर माना जाता है, जहां मां सरस्वती के द्वादश रूपों की पूजा की जाती है। यह मंदिर दक्षिण भारत की कलाकृतियों में बना हुआ कांची कोटि के शंकराचार्य द्वारा स्थापित है।


मां वाग्देवी के इस धाम में न केवल विश्वविद्यालय के छात्र, बल्कि पूरे वाराणसी और अन्य स्थानों से विद्यार्थी मां का आशीर्वाद लेने आते हैं।



कहते हैं कि इस मंदिर में मां सरस्वती के दर्शन मात्र से स्मरण शक्ति और पढ़ाई में एकाग्रता बढ़ जाती है। विद्या और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी के इस मंदिर में प्रतिदिन सुबह-शाम आरती होती है, जहां भक्ति और श्रद्धा का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।



मां सरस्वती के द्वादश रूप
इस मंदिर में स्थापित मां सरस्वती के द्वादश विग्रहों के अलग-अलग नाम और स्वरूप हैं:
- सरस्वती देवी
- कमलाक्षी देवी
- जया देवी
- विजया देवी
- सारंगी देवी
- तुम्बरी देवी
- भारती देवी
- सुमंगला देवी
- विद्याधरी देवी
- सर्वविद्या देवी
- शारदा देवी
- श्रीदेवी

मां वाग्देवी की मुख्य प्रतिमा काले रंग की है, जिसे तमिलनाडु से मंगवाया गया था। इसका गूढ़ अर्थ यह है कि जैसे माता काली ने अधर्म के खिलाफ युद्ध किया, वैसे ही मां सरस्वती शास्त्रों, वेदों और पुराणों की रक्षा के लिए ज्ञान का प्रकाश फैलाती हैं।

मंदिर की दक्षिण भारतीय स्थापत्य कला
मंदिर की स्थापत्य कला पूरी तरह से दक्षिण भारतीय शैली में निर्मित है। इसे कांचीकोटि के शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया गया था। इस मंदिर में न केवल वास्तुकला की अद्भुत छटा देखने को मिलती है, बल्कि यह विद्या, भक्ति और शास्त्रों का संगम भी है।

मंदिर के महंत सच्चिदानंद पांडे बताते हैं कि इस मंदिर में बसंत पंचमी का विशेष महत्व है। इस दिन मां सरस्वती को श्वेत वस्त्र और सफेद फूलों की माला अर्पित की जाती है। सफेद रंग ज्ञान, शुद्धता और शांति का प्रतीक माना जाता है, इसलिए मां को दूध, दही, माखन और मिश्री का भोग भी अर्पित किया जाता है।
विद्यार्थियों के लिए आस्था का केंद्र
इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां पढ़ने वाले विद्यार्थी हर परीक्षा से पहले आकर मां वाग्देवी के चरणों में मत्था टेकते हैं। उनका विश्वास है कि मां की कृपा से विद्या, एकाग्रता और स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है।
जहां विद्या है, वहीं मां सरस्वती का वास है”
वाराणसी का यह अनूठा मंदिर मां सरस्वती के द्वादश रूपों के दर्शन का सौभाग्य प्रदान करता है, जो पूरे उत्तर भारत में कहीं और देखने को नहीं मिलता। यह स्थान सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि ज्ञान और शिक्षा की साधना का प्रतीक है, जहां आने वाला हर श्रद्धालु मां वाग्देवी की कृपा से अपने जीवन में सफलता और उज्ज्वल भविष्य की कामना करता है।