Ravidas Jayanti : हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी माघ पूर्णिमा के दिन संत रविदास जयंती मनाई जा रही है। उनकी शिक्षाएं और रचनाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं। उन्हीं की कही एक प्रसिद्ध कहावत ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ गहरी आध्यात्मिक सीख देती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस कहावत में कठौती की तुलना गंगा से क्यों की गई? इसके पीछे एक बेहद रोचक कहानी छिपी है।
![Ad Image](https://bhadainimirror.com///wp-content/uploads/2024/11/ad8.jpg)
![Ad Image](https://bhadainimirror.com///wp-content/uploads/2024/11/Navnita.ad777.jpg.png)
कैसे बनी यह कहावत?
एक दिन संत रविदास अपनी झोपड़ी में प्रभु का स्मरण कर रहे थे, तभी एक ब्राह्मण अपने जूते ठीक कराने उनके पास आया। रविदास जी ने पूछा, “कहां जा रहे हो?” ब्राह्मण ने उत्तर दिया, “गंगा स्नान करने जा रहा हूं।”
![Ad Image](https://bhadainimirror.com///wp-content/uploads/2024/11/ad3.jpg)
![Ad Image](https://bhadainimirror.com///wp-content/uploads/2024/11/ad6.jpg)
जूता ठीक करने के बाद ब्राह्मण ने रविदास जी को मजदूरी के रूप में कुछ मुद्रा दी, लेकिन उन्होंने लेने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, “इसे मेरी ओर से गंगा को चढ़ा देना।”
![Ad Image](https://bhadainimirror.com///wp-content/uploads/2024/11/bhadainimirror.jpg)
![Ad Image](https://bhadainimirror.com///wp-content/uploads/2024/11/ad4.jpg)
![Ad Image](https://bhadainimirror.com///wp-content/uploads/2024/11/ad2.jpg)
गंगा ने दिया ब्राह्मण को उपहार
जब ब्राह्मण गंगा स्नान कर चुका, तो उसने गंगा मैया से कहा, “हे गंगे! संत रविदास की यह भेंट स्वीकार करो।” तभी गंगा से एक हाथ प्रकट हुआ और मुद्रा लेकर बदले में एक सोने का कंगन दे दिया।
![Ad Image](https://bhadainimirror.com///wp-content/uploads/2024/11/ad5.jpg)
![Ad Image](https://bhadainimirror.com///wp-content/uploads/2024/11/ad1.jpg)
ब्राह्मण कंगन लेकर वापस लौट रहा था, तभी उसके मन में विचार आया कि रविदास जी को यह कैसे पता चलेगा कि गंगा ने क्या दिया? उसने लालच में आकर कंगन राजा को भेंट कर दिया और बदले में उपहार प्राप्त कर लिया।
![Ad Image](https://bhadainimirror.com///wp-content/uploads/2024/11/ad91.jpg)
राजा की रानी ने मांगा दूसरा कंगन
राजा ने जब यह सुंदर कंगन अपनी रानी को दिया, तो रानी अत्यंत प्रसन्न हुई और राजा से कहा, “मुझे ऐसा ही दूसरा कंगन चाहिए।”
राजा ने ब्राह्मण को बुलाकर आदेश दिया, “ऐसा ही दूसरा कंगन लाकर दो, वरना दंड भुगतने के लिए तैयार रहो।” अब ब्राह्मण घबरा गया, क्योंकि दूसरा कंगन लाना उसके बस की बात नहीं थी।
रविदास जी की कठौती से प्रकट हुआ दूसरा कंगन
डरा हुआ ब्राह्मण फिर से संत रविदास के पास पहुंचा और सारी बात बता दी। रविदास जी मुस्कराए और बोले, “तुमने बिना बताए कंगन राजा को दे दिया, फिर भी चिंता मत करो।”
इसके बाद रविदास जी ने अपनी कठौती से जल छिड़का। अचानक उसी कठौती में एक और वैसा ही कंगन प्रकट हो गया। उन्होंने वह कंगन ब्राह्मण को दे दिया, जिसे उसने राजा को सौंप दिया।
कहावत का संदेश
यहीं से कहावत ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ प्रचलित हुई। इसका अर्थ है कि यदि मन पवित्र और नीयत सही हो, तो ईश्वर स्वयं सहायता के लिए आ जाते हैं। गंगा स्नान से अधिक जरूरी है मन की शुद्धता और सच्ची भक्ति। संत रविदास की यह सीख आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी तब थी।