वाराणसी। भोजपुरी साहित्य के महान रचनाकार पं. हरिराम द्विवेदी की प्रथम पुण्यतिथि पर बुधवार को मोतीझील परिसर में भव्य समारोह आयोजित किया गया। इस अवसर पर पं. हरिराम द्विवेदी भोजपुरी साहित्य शोध न्यास का उद्घाटन हुआ। कार्यक्रम में दो पुस्तकों का विमोचन किया गया, जिसमें पहली पुस्तक “अंगना में पलना” में पं. द्विवेदी की कविताओं का संकलन है, जबकि दूसरी पुस्तक “जीवन एवं साहित्य कर्म : पं. हरिराम द्विवेदी” प्रयागराज की डॉ. यशी मिश्रा द्वारा लिखित है।
समारोह में प्रसिद्ध गीतकार सूर्यप्रकाश मिश्र और भोजपुरी कवि लालजी यादव ‘झगड़ू भइया’ को पं. हरिराम द्विवेदी स्मृति साहित्य सम्मान से विभूषित किया गया। दोनों साहित्यकारों ने अपनी उन रचनाओं का पाठ किया जो पं. द्विवेदी को विशेष रूप से प्रिय थीं।
उपशास्त्रीय गायिका विदुषी सुचरिता गुप्ता ने पं. द्विवेदी के प्रिय गीतों”भजन कर मनवा राम राम रघुराई और “चला चलीं गंगा नहाय आईं” की संगीतमय प्रस्तुति दी।
मुख्य अतिथि पद्मश्री डॉ. कमलाकर त्रिपाठी ने कहा, “पं. हरिराम द्विवेदी ने अपने साहित्य से जो विरासत सौंपी है, उसे विश्व साहित्य में स्थान दिलाना अब हमारा दायित्व है। ऐसे साहित्यकार बार-बार जन्म नहीं लेते। उनके सृजन को विश्व स्तर पर ले जाने के लिए हमें संगठित प्रयास करना होगा।”
विशिष्ट अतिथि राज्यमंत्री डॉ. दयाशंकर मिश्र ‘दयालु’ ने सुझाव दिया कि पं. द्विवेदी के साहित्य को संरक्षित और प्रचारित करने के लिए पुस्तकालय की स्थापना होनी चाहिए। उन्होंने हरसंभव सहयोग का आश्वासन दिया।
समारोह की अध्यक्षता लोकभूषण सम्मान से सम्मानित डॉ. जयप्रकाश मिश्र ने की। उन्होंने कहा, “पं. हरिराम द्विवेदी की भौतिक उपस्थिति भले समाप्त हो गई हो, लेकिन उनकी यशकाया हमेशा हमारे साथ रहेगी। हमें उनके साहित्य को प्रचारित करने और नई पीढ़ियों तक पहुंचाने का प्रयास करना चाहिए।”*
कार्यक्रम की शुरुआत सरस्वती वंदना से हुई, जिसे कवि मनोज द्विवेदी ‘मधुर’ ने प्रस्तुत किया। स्वागत भाषण न्यास के अध्यक्ष रामानंद तिवारी ने दिया और संचालन डॉ. रामसुधार सिंह ने किया। धन्यवाद ज्ञापन अरुण द्विवेदी ने किया।
इस अवसर पर प्रो. एस.एन. उपाध्याय, डॉ. श्रद्धानंद, अजमतगढ़ पैलेस के अशोक गुप्ता, नरोत्तम शिल्पी, डॉ. धर्मप्रकाश मिश्र, गौतम अरोड़ा ‘सरस’, विजय शंकर मिश्र, संतोष कुमार, सौरभ शुक्ला समेत साहित्य जगत से सौ से अधिक लोग उपस्थित रहे।
कार्यक्रम ने पं. हरिराम द्विवेदी की स्मृतियों और उनके साहित्य को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने का संकल्प लिया।