दिल्ली, भदैनी मिरर। हमारे बीच देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) नहीं है. 26 सितंबर 1932 में जन्में मनमोहन सिंह ने 26 दिसंबर को एम्स में रात्रि 9:51 बजे अंतिम सांस ली. उनका जीवन सादगी, शालीनता और गंभीरता से भरा रहा. 92 वर्ष की अवस्था में अलविदा कहने वाले मनमोहन सिंह को आर्थिक क्रांति का जनक कहा जाता है. यही कारण है कि बड़े-बड़े नेताओं ने यूपीए सरकार पर लाख टिप्पणियां की लेकिन मनमोहन सिंह को लेकर व्यक्तिगत टिप्पणी करने से बचते रहे.
लगभग 33 साल तक राज्यसभा के सांसद रहे मनमोहन सिंह जब पीएम बने तो भी राज्यसभा से ही चुनकर आए थे. वह जीवन में एक बार ही चुनाव लड़ा. वर्ष 1999 में पहली बार मनमोहन सिंह राजनीतिक मैदान में कूदे. उन्होंने मुस्लिम और सिख की 50 फीसदी वाली आबादी के क्षेत्र दक्षिण दिल्ली की लोकसभा सीट चुनी. इसके पहले वह नरसिम्हा राव की सरकार में वित्त मंत्री थे. उनकी सोनिया गांधी से भी अच्छी बनती थी. बतौर वित्त मंत्री उन्होंने देश को बेहतर ढंग से चलाया था. उन्हें लगा कि कांग्रेस कार्यकर्ता, जनता उन्हें हर हाल में जीत दर्ज करवा देगी.
दक्षिणी दिल्ली सीट से जब कांग्रेस ने मनमोहन सिंह को उतारा तो उनके सामने बीजेपी ने वरिष्ठ नेता वीके मल्होत्रा को टिकट दे दिया. मनमोहन सिंह के सामने मल्होत्रा की पहचान राष्ट्रव्यापी तो नहीं थी लेकिन उन्होंने अपना राजनीतिक सफर जनसंघ से किया था. स्थिति यह रही कि मनमोहन सिंह को करीब 30 हजार वोटों से हार का सामना करना पड़ा. इस चुनाव में वीके मल्होत्रा को 261230 वोट मिले तो मनमोहन सिंह को 231231 लोगों ने अपना मत दिया. इस चुनाव के बाद मनमोहन सिंह को लगा कि शुरु होने से पहले ही उनका चुनावी कैरियर समाप्त हो गया है. लेकिन उन्होंने फिर पीछे पलटकर नहीं देखा. उन्होंने उसके बाद कभी चुनाव नहीं लड़ा और राज्यसभा से सांसद चुने जाते रहे.
पार्टी को लौटाया था 7 लाख
मनमोहन सिंह की पहचान राष्ट्रव्यापी हो चुकी थी. वह महान अर्थशास्त्री के रुप में तो जाने ही जाते थे, इसके साथ ही बतौर वित्त मंत्री उनका कार्यकाल शानदार रहा. इस चुनाव को लड़ने के लिए कांग्रेस पार्टी से 20 लाख रूपये मिले थे. इसके अलावा चुनाव के लिए कई फाइनेंसर और चंदा देने वाले भी खड़े थे. लेकिन मनमोहन सिंह ने अपने जीवन में मर्यादा की जो सीमा अपने लिए खींची उसको कभी पार नहीं किया. इसी दौरान पार्टी के नेता ने आकर उनसे कहा कि कार्यकर्ताओं के खाने-पीने से लेकर कार्यालय खोलने के खर्च को कैसे मैनेज किया जाएगा. जिसके बाद उन्होंने पुरानी व्यवस्था को अपनाया और चंदा इक्कठा किया. चुनाव में शिकस्त मिलने के बाद पार्टी के बचे 7 लाख रूपये मनमोहन सिंह ने पार्टी को लौटा दिया था.