Home अध्यातम शिव महापुराण के पांचवे दिन नारद मोह और विश्वमोहिनी कथा का भक्तों ने किया श्रवण, बोले व्यास- मनुष्य का शत्रु है अभिमान

शिव महापुराण के पांचवे दिन नारद मोह और विश्वमोहिनी कथा का भक्तों ने किया श्रवण, बोले व्यास- मनुष्य का शत्रु है अभिमान

by Bhadaini Mirror
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वाराणसी, भदैनी मिरर। नौ दिवसीय शतचंडी महायज्ञ व शिव महापुराण कथा का सोमवार को पंचम दिवस रहा. अष्टभुजी मंदिर (शिवपुर) के प्रांगण में चल रहे शिव महापुराण में कथा वाचक बालव्यास पं. आयुष कृष्ण नयन जी महाराज ने नारद मोह की कथा का श्रवण करवाया. उन्होंने बताया कि मनुष्य न तो विद्वान है और न ही मूर्ख. ईश्वर जब जिसको जैसा करते हैं, वह उसी क्षण वैसा ही हो जाता है. उन्होंने कहा कि विष्णुभक्त और अत्यन्त ज्ञानी होने के बाद भी नारद जी को कामदेव से जितने का अहंकार हो गया.

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हिमालय पर्वत में एक बड़ी पवित्र गुफा में नारद जी तपस्या में लीन हो गए. इंद्र को भय हुआ कि कही यह अपनी तपस्या से इंद्रपुरी को अपने अधिकार में न ले लें. इंद्र ने नारद की तपस्या को भंग करने के लिए कामदेव को उनके पास भेज दिया. वहाँ पहुँच कर कामदेव ने अपनी माया से वसन्त ऋतु को उत्पन्न कर अपनी कला दिखाई लेकिन इसका नारद जी पर कोई असर नहीं हुआ. कामदेव को श्राप का डर सताया लेकिन नारद जी ने उन्हें माफ कर हिमालय पहुंचे और भगवान शिव को पूरा वृतांत बतलाया. भगवान शिव जान गए कि नारद को अहंकार हो गया है. भगवान शिव ने नारद जी को मना किया कि यह बात भगवान विष्णु को न बताए. लेकिन नारद को शिव जी की यह बात अच्छी नहीं लगी और वह भगवान विष्णु के पास जाकर पूरी बात बता दी.बाल व्यास ने आगे की कथा का श्रवण करवाया और बताया कैसे भगवान ने अपनी लीला से सुंदर नगर का निर्माण किया और विश्वमोहिनी स्वयंवर की कथा बताई. बाद में नारद को अपने अहंकार पर पछतावा हुआ.

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व्यासपीठ ने महराज जी ने कहा कि अभिमान मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है. अभिमान में भरकर अक्सर व्यक्ति भूल कर बैठता है, और बाद में उसे पछताना पड़ता है. उन्होंने कहा कि अभिमान और स्वाभिमान में बहुत कम फर्क होता है. जिस कार्य को मै कर सकता हूं यह स्वाभिमान है, किंतु मैं ही कर सकता हूं यह अभिमान है. स्वाभिमान जीवन में अच्छा है किंतु अभिमान मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है.

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