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वाराणसी, भदैनी मिरर। यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता अर्थात जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवताओं का वास होता है. नारियां साक्षात जगदम्बा की ही स्वरूप है. उक्त बातें अष्टभुजी मंदिर (शिवपुर) में चल रहे शिव महापुराण के षष्टम दिवस पर माता सती के जीवन का वर्णन के दौरान व्यास पीठ से कथावाचक बालव्यास आयुष कृष्ण नयन जी महाराज ने बताई.


कथाव्यास ने कहा कि सती जी का जीवन सभी विवाहित माताओं के लिए सीख है. विवाहित महिलाओं को अपने पति की बातों को मानना चाहिए. भगवान शिव के मना करने के बाद भी माता सती अपने पिता के घर गई और वहां अपने पति का अपमान सहन न कर सकी और उन्हें अपना शरीर त्यागना पड़ा. कथा व्यास ने कहा कि एक बेटी दो कुल की इज्जत होती है. उसका दो घर होता है, एक पिता का और दूसरा पति का. वह दोनों घरों का कल्याण चाहती है चाहे वह पिता का हो अथवा पति का, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि उसे दोनों ही घरों में पराया समझा जाता है.


इसके बाद कथा व्यास ने बहुत ही सुंदर शिव विवाह की मंगलमय कथा का वर्णन किया. जिसमें भगवान शिव और मां पार्वती की सुंदर झांकी ने भक्तों का मन मोह लिया. झांकी के माध्यम से भगवान शिव की बारात निकाली गई और सभी श्रोता भक्तिरस का पान करते रहे.




