कुंभ मेलों में दशनामी नागा संप्रदाय के विभिन्न अखाड़ों के शाही स्नान की विशिष्ट परंपरा रही है। शोभायात्रा के नगर प्रवेश से ले कर स्नान तिथियों पर शाही स्नान के आयोजन तक नागा साधु कुंभ के रहस्य को भी प्रतिबिंबित करते हैं और जन आकर्षण के साथ ही लोक आस्था के केंद्र भी रहते हैं। दशनामी नागा संप्रदाय के अखाड़ों में उदासीन अखाड़े का भी महत्वपूर्ण उल्लेख अनिवार्यतः इस परंपरा का अभिन्न अंग है। ऐतिहासिक दृष्टि से उदासीन अखाड़े की स्थापना एवं परंपरा अत्यंत रुचिकर आख्यान है। गुरुनानक देव के ज्येष्ठ पुत्र श्री चंद्रदेव जी उदासीन संप्रदाय के संस्थापक हैं। यहां यह और भी उल्लेखनीय है कि उदासीन अखाड़े का मुख्य आधार वैदिक कर्मकाण्ड की प्रतिष्ठा है। यह तथ्य उस नैरेटिव का समूल खंडन करता है कि सिख पंथ की धारा सनातन वैदिक मत में किसी भी प्रकार की कथित कुरीतियों में सुधार का धार्मिक अभियान था अथवा वैदिक मत के किसी भी प्रकार से विरुद्ध था।
उदासीन परंपरा के अनुसार श्री चंद्रदेव जी एक सौ पचास वर्ष जीवित रहे और फिर अन्तर्ध्यान हो गए। दिलचस्प यह भी है कि उदासीन अखाड़े के संतों के द्वारा यह बताया जाता है कि उदासीन अखाड़े को अकाल तख्त अमृतसर की सोलह प्रतिशत आय 1980 के दशक में भिंडरावाले के समय तक बिल्कुल ऐसे ही मिलती थी जैसे उदासीन संप्रदाय के अन्य मंदिर/मठों से चढ़ावे का अंश अखाड़े में आता है। परन्तु भिंडरावाले ने तत्कालीन उदासीन प्रमुख से एकमुश्त भुगतान का एक समझौता कर यह व्यवस्था समाप्त कर दी। संलग्न फोटो में महंत जगतार मुनि पंचायती अखाड़ा नया उदासीन के पदाधिकारी हैं जो महंत आलम साहब की मजार दिखा रहे हैं।
आलम साहब जन्म से मुस्लिम थे परन्तु उदासीन संप्रदाय में वैदिक दीक्षा प्राप्त की और उन्होंने ही सनातन परंपरा के अनुयायी बन कर प्रयागराज में उदासीन आश्रम स्थापित किया। नया उदासीन अखाड़ा आश्रम प्रयागराज के परिसर में आलम साहब के चमत्कार से उत्पन्न कुआं भी है जिसका जल स्तर आश्चर्यजनक रूप से बीच शहर में मात्र चार-पांच फीट है जबकि उस इलाके का जल स्तर सामान्यतः अस्सी फुट से कम गहरा नहीं है। कहते हैं आलम साहब ने गंगा स्नान करने रोज संगम न जाने पर कुछ साधुओं द्वारा उठाए सवाल के जवाब में हंसते हुए अपने स्नान के लिए गंगा यमुना संगम को आश्रम में ही उद्घाटित कर दिया था।
महंत जगतार मुनि से मेरी भेंट 31 अक्टूबर 2018 को कुंभ 2019 के आयोजन की तैयारियों के समय हुई थी। उस समय मैं प्रयागराज जिला प्रशासन में नगर मजिस्ट्रेट के दायित्व का निर्वहन कर रहा था। तत्कालीन मंडलायुक्त प्रयागराज ने मुझे अखाड़ों से समन्वय हेतु प्रभारी प्रशासनिक अधिकारी का दायित्व भी सौंपा था। सनातन विचार एवं परंपराओं के प्रति अनुराग के स्वभाव वश अनेक साधु संतों से साक्षात्कार का यह सुअवसर बन गया। जगतार मुनि ने उस भेंट में यह भी बताया कि अब मुसलमानों का उदासीन संप्रदाय में दीक्षित होना बिल्कुल बंद हो गया है परन्तु पहले बहुत से मुसलमान आध्यात्मिक रूप से उन्नत हो कर वैराग्य और सेवा भाव से अखाड़े में आते रहे हैं। वर्तमान में उदासीन संप्रदाय तीन शाखाओं में उपविभाजित है – बड़ा उदासीन अखाड़ा, नया उदासीन अखाड़ा और निर्मल अखाड़ा। कुंभ के शाही स्नान पर्व में प्रमुख पेशवाई अखाड़ों में यह तीनों ही महत्वपूर्ण भूमिका में सम्मिलित होते हैं।