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सरकार और निजी घरानों के बीच बिचौलिया की भूमिका में है आल इंडिया डिस्कॉम एसोशिएशन

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति का विरोध जारी, सभा में वक्ताओं ने बतायी अंदर की जानकारी

 

कर्मचारी बिजली निजीकरण के विरोध में 324 दिन से कर रहे हैं आंदोलन

देश में निजीकरण की मुहिम तेज करना चाहती है सरकार-संघर्ष समिति 

 वाराणासी, भदैनी मिरर। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश के बैनर तले बिजली के निजीकरण के विरोध में चल रहे आंदोलन के 324 वें दिन भी बनारस के बिजलीकर्मियों ने प्रदेश भर की तरह ही बनारस में व्यापक विरोध प्रदर्शन जारी रखा। शुक्रवार को हुई कर्मचारियों की सभा में वक्ताओ ने कहाकि यह विदित हुआ है कि 16 सितम्बर को हुई ग्रुप आफ मिनिस्टर्स ऑफ पॉवर की मीटिंग में यह सहमति बनी है कि  विद्युत वितरण निगमों के संचालन के लिए राज्य सरकारों को तीन विकल्प दिए जांय। यदि राज्य सरकार  इन तीनों विकल्पों को न माने उनको केन्द्र सरकार से मिलने वाली ग्रांट बन्द कर दी जाय।

संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि उत्तर प्रदेश में निजीकरण की प्रक्रिया व्यापक रूप से चलाई जा रही है। इसका बिजलीकर्मी विगत 11 महीनों से जोरदार विरोध कर रहे हैं। अब  इन घटनाक्रमों से उद्वेलित देश के  27 लाख बिजली कर्मचारी और इंजीनियर एकजुट होकर सामने आ गए हैं और वे निजीकरण का व्यापक  विरोध करेंगे। इस मुद्दे को लेकर राष्ट्रव्यापी आंदोलन किया जायेगा। इसका निर्णय आगामी 03 नवम्बर को मुम्बई में होने वाली नेशनल कोऑर्डिनेशन कमिटी आफ इलेक्ट्रिसिटी इंप्लाइज एंड इंजीनियर्स की मीटिंग में लिया जायेगा। संघर्ष समिति ने बताया कि ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स की इसी मीटिंग में  इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट)  बिल 2025 के मसौदे को अन्तिम रूप दिया गया था। इसे 09 अक्टूबर को विद्युत मंत्रालय ने जारी कर दिया है। संघर्ष समिति निजीकरण हेतु लाए गए इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल  2025 का प्रबल विरोध करती है और मांग करती है कि इसे तत्काल वापस लिया जाय। उन्होंने बताया कि मुम्बई में 04 एवं 05 नवम्बर को हो रही डिस्ट्रीब्यूशन यूटिलिटी मीट 2025 का मुख्य एजेंडा “विद्युत वितरण निगमों के सस्टेनेबिलिटी के लिए पीपीपी मॉडल“ है जिसका अर्थ निजीकरण ही है। समिति ने बताया कि सात राज्यों के ग्रुप आफ मिनिस्टर्स की  बैठक में हुई। इसमें चर्चा के बाद केंद्र सरकार बिजली के निजीकरण पर राज्यों को तीन विकल्प देने जा  रही है, अन्यथा की स्थिति में केंद्र सरकार की ग्रांट बंद कर दी जाएगी। 

पहला विकल्प यह है कि राज्य सरकार विद्युत वितरण निगमों की 51प्रतिशत हिस्सेदारी बेंच दे और पीपीपी मॉडल पर विद्युत वितरण कंपनियां चलाई जांय। दूसरा विकल्प है कि विद्युत वितरण कंपनियों की 26 प्रतिशत हिस्सेदारी बेच जाय और प्रबंधन बिजी कंपनी  को  सौंप दिया जाय। और तिसरा विकल्प यह है कि जो राज्य निजीकरण नहीं करना चाहते तो वह अपनी विद्युत वितरण कंपनियों को सेबी और स्टॉक एक्सचेंज में रजिस्टर कर लिस्टिंग कर दें। यह भी पता चला है कि ग्रुप आफ मिनिस्टर्स की मीटिंग में यह सहमति हुई है कि जो राज्य यह तीनों विकल्प न दें उनका केंद्र से मिलने वाली ग्रांट बंद कर दी जाए और आगे कोई आर्थिक मदद न की जाय।संघर्ष समिति  ने कहा कि बिजली संविधान की आठवीं अनुसूची में कॉन्करेंट लिस्ट पर है। इसका मतलब होता है कि बिजली के मामले में केंद्र और राज्य सरकार के बराबर के अधिकार हैं। ऐसे में चुनिंदा सात प्रांतों (उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु) की राय लेकर निजीकरण का निर्णय राज्य सरकारों के ऊपर कैसे थोपा जा सकता है ? समिति ने इस बात पर भी कड़ी आपत्ति जताई कि ऑल इंडिया डिस्कॉम एसोशिएशन जो सोसाइटी एक्ट में रजिस्टर्ड है, उसे ग्रुप आफ मिनिस्टर्स की मीटिंग में किस हैसियत से और  क्यों बुलाया जा रहा है ?

उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि आल इंडिया डिस्कॉम एसोशिएशन सरकार और निजी घरानों के बीच बिचौलिया की भूमिका में आ गई है। बताया कि मुंबई में चार और पांच नवंबर को होने वाली डिस्ट्रीब्यूशन यूटिलिटी मीट 2025 का एकमात्र एजेंडा भी यही है। अब स्पष्ट हो गया है कि इस डिस्ट्रीब्यूशन यूटिलिटी में 2025 में यही निष्कर्ष निकाला जाएगा जो ग्रुप आफ मिनिस्टर्स की मीटिंग की राय है। ऐसा लगता है कि सारे देश में निजीकरण की मुहिम बहुत तेज गति से चलाई जानी है। समिति ने कहा कि यह शर्तें निजीकरण के लिए राज्य सरकारों पर बेजा दबाव डालना एक प्रकार से ब्लैकमेल करना है। इसके विरोध में आंदोलन होगा। सभा को ई. मायाशंकर तिवारी, ई. विजय सिंह,राजेन्द्र सिंह, अंकुर पाण्डेय, अलका कुमारी, पूजा कुमारी, योगेंद्र कुमार, उमेश कुमार, रंजीत कुमार, कृपाल सिंह, शैलेन्द्र कुमार, विशाल कुमार, गुलजार अहमद आदि ने संबोधित किया।