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वाराणसी: राहुल गांधी को कोर्ट से बड़ी राहत, सिख बयान मामले में लंबित प्रार्थना पत्र खारिज

वाराणसी की एमपी-एमएलए कोर्ट का फैसला - अमेरिका यात्रा के दौरान दिए गए बयान पर अब नहीं होगी सुनवाई, अदालत ने याचिका को किया खारिज

 

वाराणसी, भदैनी मिरर डिजिटल। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को वाराणसी की अदालत से बड़ी राहत मिली है। अमेरिका यात्रा के दौरान सिख समुदाय को लेकर दिए गए विवादित बयान से जुड़ी लंबित प्रार्थना पत्र पर एमपी-एमएलए कोर्ट ने सुनवाई के बाद मामला खारिज कर दिया है।
इस मामले में राहुल गांधी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अनुज यादव, नरेश यादव और संदीप यादव ने अदालत में पक्ष रखा।


मामला क्या था?

विगत सितंबर 2024 में राहुल गांधी ने अमेरिका यात्रा के दौरान एक कार्यक्रम में बयान दिया था कि - “भारत में सिखों के लिए माहौल अच्छा नहीं है। क्या एक सिख के रूप में पगड़ी बांधने, कड़ा पहनने और गुरुद्वारा जाने की अनुमति मिलेगी?”

इस बयान को लेकर वाराणसी के तिलमापुर, सारनाथ निवासी नागेश्वर मिश्र ने इसे देश में गृहयुद्ध भड़काने की साज़िश बताते हुए न्यायिक मजिस्ट्रेट (द्वितीय) की अदालत में वाद दाखिल किया था।

अदालतों की प्रक्रिया

मूल रूप से यह मामला पहले अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (एमपी-एमएलए) की अदालत में सुना गया था, जिसने प्राथमिक सुनवाई के बाद वाद को खारिज कर दिया था। इसके खिलाफ शिकायतकर्ता नागेश्वर मिश्र ने सत्र न्यायालय में निगरानी याचिका (Revision Petition) दाखिल की थी। सत्र न्यायालय ने इस अर्जी को स्वीकार करते हुए अवर न्यायालय को पुनः सुनवाई करने का निर्देश दिया था।

ताज़ा आदेश में अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (चतुर्थ/एमपी-एमएलए) ने सुनवाई पूरी कर लंबित प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया, जिससे राहुल गांधी को कानूनी राहत मिल गई।

 राहुल गांधी को मिली राहत क्यों अहम?

इस आदेश के साथ राहुल गांधी के खिलाफ देशद्रोह या भड़काऊ भाषण के आरोपों से जुड़ा यह मामला अब समाप्त हो गया है। राजनीतिक रूप से यह कांग्रेस नेता के लिए बड़ी राहत मानी जा रही है, खासकर तब जब वे आगामी चुनावों के मद्देनज़र लगातार जनसभाओं और विदेश यात्राओं में सक्रिय हैं।


 कानूनी विशेषज्ञों की राय

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि अदालत ने उचित रूप से देखा कि राहुल गांधी का बयान राजनीतिक आलोचना के दायरे में आता है, न कि कानूनी अपराध के दायरे में।
अदालत ने यह भी माना कि बयान में गृहयुद्ध भड़काने या हिंसा के लिए उकसाने जैसी कोई मंशा नहीं थी।