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गार्ड ऑफ ऑनर के साथ दी गई अंतिम विदाई, पंचतत्व में विलीन हुए पद्म विभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्र 

आजमगढ़ के हरिहरपुर से शुरू हुई संगीत साधना, वाराणसी को बनाया कर्मभूमि | ठुमरी, चैती, कजरी और होरी को दिया वैश्विक पहचान

 
वाराणसी/मिर्जापुर। भारतीय शास्त्रीय संगीत के महान हस्ताक्षर पद्म विभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्र का गुरुवार सुबह निधन हो गया। उन्होंने मिर्जापुर में अपनी बेटी के घर अंतिम सांस ली। दोपहर बाद उनका पार्थिव शरीर वाराणसी लाया गया, जहां मणिकर्णिका घाट पर राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। जवानों ने उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया और उनके पोते राहुल मिश्र ने मुखाग्नि दी।
वाराणसी के सुप्रसिद्ध सितार वादक पद्मश्री पंडित शिवनाथ मिश्र के पुत्र पंडित देवव्रत मिश्रा ने कहा कि “पंडित छन्नूलाल मिश्र का निधन संगीत जगत की अपूरणीय क्षति है। उन्होंने बनारस की ठुमरी और लोकधुनों को वैश्विक पहचान दिलाई।”
आजमगढ़ से वाराणसी तक का सफर
पंडित छन्नूलाल मिश्र मूल रूप से आजमगढ़ के हरिहरपुर गांव के रहने वाले थे। संगीत साधना की राह पर आगे बढ़ते हुए उन्होंने वाराणसी को अपनी कर्मस्थली बनाया और यहीं से शास्त्रीय गायन को नई ऊंचाई दी।
बनारस की गायकी को दी नई पहचान
उन्होंने वाराणसी में ठुमरी, चैती, कजरी और होली जैसे लोकगीतों को शास्त्रीय रूप देकर न केवल उन्हें देश-विदेश तक पहुंचाया बल्कि श्रोताओं के बीच लोकप्रिय भी बनाया। उनका गाया हुआ “खेले मसाने में होरी” आज भी पूरी दुनिया में मशहूर है।
वाराणसी की मशहूर शास्त्रीय गायिका डॉ. मंजू सुंदरम ने बताया कि “पंडित छन्नूलाल मिश्र बहुत ही सौम्य और स्नेही स्वभाव के धनी थे। उनका मंच पर आना ही दर्शकों को आकर्षित कर लेता था। वह गीत का अर्थ भी समझाकर श्रोताओं को भावनात्मक रूप से जोड़ लेते थे।”

पुरस्कार और सम्मान

पंडित छन्नूलाल मिश्र बनारस घराना और किराना घराना की गायकी के प्रमुख प्रतिनिधि थे।
  • वर्ष 2000 – संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
  • वर्ष 2010 – पद्म भूषण
  • वर्ष 2020 – पद्म विभूषण
इसके अलावा उन्होंने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर गायकी का परचम लहराया।
राजनीति से भी जुड़ाव
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में वह वाराणसी संसदीय सीट से भाजपा प्रत्याशी नरेंद्र मोदी के प्रस्तावक भी रहे।
अंतिम समय
पिछले तीन वर्षों से पंडित छन्नूलाल मिश्र मिर्जापुर के महंत शिवाला क्षेत्र में अपनी बेटी डॉ. नम्रता मिश्र के घर पर रह रहे थे। यहीं पर गुरुवार की सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली।
पंडित छन्नूलाल मिश्र का जाना भारतीय संगीत जगत की अपूरणीय क्षति है, जिसकी भरपाई संभव नहीं।