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IIT BHU के वैज्ञानिकों ने विकसित किया उभरते वायरल वेरिएंट्स में ड्रग रेजिस्टेंस की भविष्यवाणी करनेवाला कम्प्यूटेशनल फ्रेमवर्क

मुख्य रूप से कोरोना वायरस (SARS-CoV-2) पर केंद्रित है यह तकनीक 

 

फ्रेमवर्क यह समझने में मदद करेगा कि वायरस किस प्रकार दवाओं और उपचारों से बचने के लिए विकसित होते हैं 

वाराणसी, भदैनी मिरर। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (BHU) के वैज्ञानिकों ने एक उन्नत कम्प्यूटेशनल फ्रेमवर्क विकसित किया है, जो यह समझने में मदद करता है कि वायरस किस प्रकार दवाओं और उपचारों से बचने के लिए विकसित होते हैं। यह तकनीक मुख्य रूप से कोरोना वायरस (SARS-CoV-2) पर केंद्रित है, लेकिन इसका उपयोग अन्य रोगजनकों और संक्रामक बीमारियों पर भी किया जा सकता है।

इस अध्ययन का नेतृत्व स्कूल ऑफ बायोकेमिकल इंजीनियरिंग के सहायक प्रोफेसर डॉ. आदित्य कुमार पाधी ने किया और इसे प्रतिष्ठित Biophysical Journal में प्रकाशित किया गया है। यह “इंटीग्रेटेड मल्टीस्केल कम्प्यूटेशनल फ्रेमवर्क“ कई अत्याधुनिक कंप्यूटर-आधारित विधियों का संयोजन करता है। इसमें प्रोटीन डिज़ाइन, मशीन लर्निंग, हाइब्रिड QM/MM और मल्टीस्केल सिमुलेशन्स शामिल हैं। इसका उद्देश्य यह पहचानना है कि वायरस में कौन से म्यूटेशन या परिवर्तन दवाओं की प्रभावशीलता को कम कर सकते हैं। यह खोज ऐसे समय पर आई है जब भारत और विश्वभर में COVID-19 मामलों में नए वायरल वेरिएंट्स के कारण फिर से वृद्धि देखी जा रही है। चूंकि वायरस तेजी से म्यूटेट करता है। यह फ्रेमवर्क यह अनुमान लगाने में मदद कर सकता है कि भविष्य में वायरस किस प्रकार उपचारों के प्रति प्रतिरोध विकसित कर सकता है। वर्तमान अध्ययन मुख्य रूप से SARS-CoV-2 के खिलाफ उपयोग किए जाने वाले मोनोक्लोनल एंटीबॉडी सोट्रोविमैब के प्रति प्रतिरोध पर केंद्रित है। लेकिन यह फ्रेमवर्क कैंसर और मूत्र मार्ग संक्रमण (UTI) जैसी अन्य बीमारियों पर भी लागू किया जा सकता है।

लेबोरेटरी फॉर कम्प्यूटेशनल बायोलॉजी एंड बायोमॉलिक्यूलर डिज़ाइन (LCBD) की टीम ने भी SARS-CoV-2 के खिलाफ कई अन्य एंटीवायरल दवाओं और मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़ के प्रति प्रतिरोध तंत्र को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इस फ्रेमवर्क को विश्वभर के वैज्ञानिकों और चिकित्सकों के लिए निःशुल्क उपलब्ध कराने की योजना है, ताकि सीमित संसाधनों वाले क्षेत्रों को भी यह अत्याधुनिक पूर्वानुमान उपकरण उपलब्ध हो सके और वैश्विक स्तर पर ड्रग रेजिस्टेंस से लड़ने में सहायता मिल सके। यह शोध भारत की राष्ट्रीय स्वास्थ्य पहलों जैसे कि इंटीग्रेटेड डिजीज सर्विलांस प्रोग्राम (IDSP) और नेशनल प्रोग्राम ऑन कंटेनमेंट ऑफ एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR) के उद्देश्यों के अनुरूप है, जो देश की महामारी-तैयारी को मजबूत करने की दिशा में कार्य कर रहे हैं।

डॉ. आदित्य कुमार पाधी ने बताया कि हमने इस फ्रेमवर्क को एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस जैसी जटिल स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान के लिए एकीकृत कम्प्यूटेशनल विधियों का उपयोग करते हुए विकसित किया है। इसका मॉड्यूलर डिज़ाइन इसे बायोमेडिकल और हेल्थकेयर की व्यापक चुनौतियों के लिए उपयुक्त बनाता है। IIT BHU के निदेशक प्रो. अमित पात्रा ने कहाकि “इस प्रकार की उन्नत तकनीकें यह दर्शाती हैं कि IIT (BHU) जैसे भारतीय संस्थान अनुसंधान और नवाचार में वैश्विक नेतृत्व कर रहे हैं। विशेष रूप से संक्रामक बीमारियों और सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने में। यह भारत सरकार के प्रमुख कार्यक्रमों के लक्ष्यों में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है।