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नागरी प्रचारिणी सभा का 133वां स्थापना दिवस: ओपन माइक में देशभर के युवाओं ने दिखाई रचनात्मक प्रतिभा 

राज्यसभा उपसभापति डॉ. हरिवंश ने दिया हिंदी पत्रकारिता पर व्याख्यान, आधुनिकता और परंपरा के संगम में खिला बनारस

 
वाराणसी, भदैनी मिरर।
नागरी प्रचारिणी सभा के 133वें स्थापना दिवस पर बनारस में एक अद्भुत संगम देखने को मिला—जहाँ एक ओर परंपरा की जड़ें गहराती दिखीं, वहीं दूसरी ओर आधुनिक रचनात्मकता की शाखाएं फैलीं। यह अवसर केवल स्मरण का नहीं, बल्कि विचार, अभिव्यक्ति और सांस्कृतिक समृद्धि का उत्सव बन गया।
कार्यक्रम की शुरुआत ओपन माइक "मैं कवि हूँ पाया है प्रकाश" से हुई, जिसमें देशभर के विभिन्न राज्यों और शहरों से आए सौ से अधिक युवाओं ने कविता, कहानी, गीत और नृत्य के माध्यम से अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया।
इस रचनात्मक स्पर्धा में आयुष कुमार को प्रथम, विनोद कुमार 'हंस' को द्वितीय, और अंजलि राय व आर्यन को संयुक्त रूप से तृतीय पुरस्कार प्रदान किया गया। प्रवीण और कुमारी अदिति को सांत्वना पुरस्कार दिया गया। निर्णायक मंडल में अरविंद मिश्र, सुशांत कुमार शर्मा और विशाल कृष्ण शामिल रहे।
डॉ. हरिवंश ने पत्रकारिता की दिशा और दशा पर दृष्टि पर दिया व्याख्यान
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता राज्यसभा के उपसभापति डॉ. हरिवंश ने “दो सौ वर्षों की देहरी पर हिंदी पत्रकारिता का भविष्य” विषय पर व्याख्यान दिया।
उन्होंने कहा कि -"हिंदी पत्रकारिता कोई पेशा नहीं, वह एक मिशन है। आज़ादी की नींव में इसके संघर्ष की गाथा लिखी गई है। बाबू विष्णु पराड़कर और बाबू शिवप्रसाद गुप्त जैसे पुरोधा इसी काशी की मिट्टी से निकले। आज तकनीक का दौर है और मीडिया को मनुष्य और मशीन के बीच संवाद का पुल बनना होगा।"
डॉ. हरिवंश ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, वैज्ञानिक उपलब्धियों और मीडिया की जिम्मेदारियों पर भी विचार रखे। उन्होंने कहा कि भारत एक बड़ी आर्थिक शक्ति है और पत्रकारिता को चाहिए कि वह राष्ट्र की उन्नति की गाथा जन-जन तक पहुँचाए।
नाट्य पाठ और सुरों का संगम
इसके बाद प्रख्यात लेखिका सुमन केशरी ने अपने दो प्रसिद्ध नाटकों गांधारी और हिडिंबा से अंश पाठ किया, जिसकी अध्यक्षता डॉ. अनुराधा बनर्जी ने की। भावनात्मक ऊँचाई और नाटकीय उतार-चढ़ावों से यह सत्र गहराई में उतर गया।
कार्यक्रम की समापन संध्या में बनारस घराने के स्तंभ पद्मभूषण पंडित साजन मिश्र ने राग मेघ की बंदिश “कैसे धीर धरूँ” प्रस्तुत की। उनका साथ दिया स्वरांश मिश्र ने गायन में, पं. धर्मनाथ मिश्र ने संवादिनी पर और अभिषेक मिश्र ने तबले पर। बनारस की आत्मा को छू जाने वाला यह संगीत प्रस्तुति दर्शकों के मन में देर तक गूंजता रहा।