समझौता वार्ता : वित्तमंत्री से हुए समझौते का पालन करे पावर कारपोरेशन
पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष से संघर्ष समिति की हुई बैठक
निजीकरण का प्रयोग कई जगह रहा विफल, अब इसे यूपी पर न थोपा जाय
पीपीटी प्रेजेन्टेशन के जरिए संघर्ष समिति ने सुधार के रखे प्रस्ताव
उत्पीड़नात्मक कार्यवाहियां समाप्त करने हेतु 14 मई को अगली बैठक
वाराणसी, भदैनी मिरर। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के घटक संघटन के पदाधिकारियों की पॉवर कारपोरेशन के चेयरमैन डॉ. आशीष गोयल और शीर्ष प्रबन्धन के साथ सोमवार को लम्बी वार्ता हुई। इसमें संघर्ष समिति ने एक घण्टे से अधिक के पीपीटी प्रेजेन्टेशन के जरिए बताया कि निजीकरण का प्रयोग आगरा, ग्रेटर नोएडा और उड़ीसा में पूरी तरफ विफल हो चुका है। अतः निजीकरण के इस विफल प्रयोग को उप्र की गरीब जनता पर न थोपा जाय।
मीडिया सचिव अंकुर पाण्डेय ने बताया कि बनारस से लखनऊ वार्ता में विद्युत मज़दूर पंचायत के अतिरिक्त महामंत्री ओपी सिंह अध्यक्ष पावर कारपोरेशन और प्रबन्ध निदेशक पावर कारपोरेशन के साथ संघर्ष समिति की बैठक में शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने कर्मचारी हितों और निजीकरण को लेकर अपनी बातों को निष्पक्षता से रखा। कहा कि 6 अक्टूबर 2020 को वित्त मंत्री सुरेश खन्ना एवं तत्कालीन ऊर्जा मंत्री श्रीकान्त शर्मा के साथ हुए समझौते का पालन किया जाय। बिजलीकर्मियों को विश्वास में लेकर विद्युत वितरण निगमों की मौजूदा व्यवस्था में ही सुधार कार्यक्रम चलाये जाय। इसके लिए संघर्ष समिति ने वित्त मंत्री के सामने रखे गये सुधार प्रस्ताव को प्रबन्धन को देते हुए कहा कि निजीकरण का निर्णय वापस लेकर इस प्रस्ताव पर प्रबन्धन को तत्काल आगे वार्ता शुरू करनी चाहिए। समिति ने यह भी कहा कि वार्ता का समुचित वातावरण बनाया जाय और आन्दोलन के कारण उत्पीड़नात्मक कार्यवाहियां तत्काल वापस ली जाय।
समिति सुधार प्रस्ताव की वित्त मंत्री ने की थी सराहना
संघर्ष समिति ने कहा कि वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने वार्ता के दौरान संघर्ष समिति द्वारा दिये गये सुधार प्रस्ताव की सराहना करते हुए यह निर्देश दिया था कि संघर्ष समिति के साथ प्रस्ताव पर वार्ता कर सुधार के लिए उनका सहयोग लिया जाय। वार्ता में उपस्थित तत्कालीन मुख्य सचिव आर के तिवारी ने भी संघर्ष समिति के प्रस्ताव की प्रशंसा की थी। लेकिन यह अत्यन्त दुर्भाग्य का विषय है कि आज तक उसके बाद एक बार भी सुधार प्रस्ताव पर वार्ता नहीं की गयी। पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का एकतरफा निर्णय थोप दिया गया। यह बिजली कर्मियों को कदापि स्वीकार नहीं है। संघर्ष समिति ने यह भी कहा कि अब समय आ गया है कि प्रबन्धन सुधार प्रस्ताव पर बिजलीकर्मियों का सहयोग लेकर सुधार करें और निजीकरण का निर्णय वापस ले।
हुआ था समझौता बिजलीकर्मियों को विश्वास में लिये बिना नही होगा निजीकरण
संघर्ष समिति ने प्रेजेन्टेशन के जरिए प्रबन्धन को बताया कि 5 अप्रैल 2018 और 6 अक्टूबर 2020 को मंत्रियों के साथ हुए समझौते में स्पष्ट लिखा है कि बिजली कर्मियों को विश्वास में लिये बिना उप्र में ऊर्जा क्षेत्र में कहीं पर भी किसी भी प्रकार का निजीकरण नहीं किया जायेगा। इसका पालन होना चाहिए। समिति ने 19 मार्च 2023 को ऊर्जा मंत्री द्वारा की गयी घोषणा के अनुपालन में आन्दोलन दौरान उत्पीड़नात्मक कार्यवाहियां वापस लेने की मांग की। पॉवर कारपोरेशन प्रबन्धन ने उत्पीड़नात्मक कार्यवाहियों के वापस लेने पर 14 मई को पुनः बैठक करने को कहा है। प्रबन्धन ने संघर्ष समिति द्वारा दिये गये पीपीटी प्रेजेन्टेशन की सराहना की और कहा कि इसका विस्तृत अध्ययन कर आगे वार्ता की जायेगी।
सरकारी विभागों का बकाया घाटे के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति कें पीपीटी प्रेजेन्टेशन में ऊर्जा निगमों में घाटे के लिए अनेक बिन्दु गिनाये गये। मुख्यतया बहुत मंहगे बिजली खरीद करार और सरकारी विभागों के राजस्व बकाया घाटे के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार ठहराया गया। प्रेजेन्टेशन के अनुसार विद्युत उत्पादन निगम से विद्युत वितरण निगमों को रू 4.17 प्रति यूनिट की दर से बिजली मिल रही है। सेण्ट्रल सेक्टर से औसतन रू 4.78 प्रति यूनिट की दर से बिजली मिलती है। निजी घरानों से रू 5.45 प्रति यूनिट की दर से और शॉर्ट टर्म पॉवर परचेज के माध्यम से रू 7.31 प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीदी जा रही है। अन्य माध्यमों से रू 14.204 प्रति यूनिट की दर तक बिजली खरीदी जा रही है। बताया गया कि उपरोक्त मंहगे बिजली क्रय करारों से विद्युत वितरण निगमों को उत्पादन निगम की तुलना में लगभग रू 9521 करोड़ का अधिक भुगतान करना पड़ रहा है। प्रेजेन्टेशन के जरिये यह भी बताया गया कि ऐसे कई बिजली क्रय करार हैं, जिनसे वर्ष 2024-25 में एक यूनिट भी बिजली नहीं खरीदी गयी किन्तु लगभग रू 6761 करोड़ का भुगतान करना पड़ा।
बहुत मंहगे बिजली खरीद करार रद्द कर दिये जांय
इस प्रकार मात्र मंहगे बिजली क्रय करारों के चलते विद्युत वितरण निगमों को कुल लगभग रू 16282 करोड़ रूपये का अतिरिक्त भुगतान करना पड़ रहा है। यह घाटे का एक सबसे बड़ा कारण है, जिसकी सारी जिम्मेदारी प्रबन्धन की है। प्रेजेन्टेशन में यह बताया गया कि वर्तमान में सरकारी विभागों पर लगभग रू 14 हजार करोड़ बिजली राजस्व का बकाया है। यह धनराशि सभी विद्युत वितरण कम्पनियों के पॉवर कारपोरेशन द्वारा दर्शाये गये वार्षिक घाटे से कहीं अधिक है। संघर्ष समिति ने कहा कि यदि बहुत मंहगे बिजली खरीद करार रद्द कर दिये जांय और सरकारी विभागों का बिजली राजस्व का बकाया मिल जाये तो विद्युत वितरण निगम मुनाफे में आ जायेंगे। घाटे के नाम पर किसी निजीकरण की आवश्यकता नहीं होगी।
निजीकरण पॉवर कारपोरेशन के लिए घाटे का सौदा
संघर्ष समिति ने राजस्व वसूली में कानून व्यवस्था को सबसे बड़ी बाधा बताया। संघर्ष समिति ने कहा कि राजस्व वसूली के दौरान मार-पीट होने पर पॉवर कारपोरेशन के शीर्ष प्रबन्धन और जिला प्रशासन से अधिकांशतया समय पर मदद नहीं मिलती। संघर्ष समिति ने बिजली के इन्फ्रास्ट्रचर से कई हजार करोड़ रूपये की नॉन टैरिफ आय के कई सुझाव दिये। उदाहरण के तौर पर सब स्टेशनों पर चार्जिंग स्टेशन की स्थापना, खम्भों पर टेण्डर के जरिये नॉन टैरिफ इनकम, अनुपयोगी जमीनों पर लीज के माध्यम से वाणिज्यिक गतिविधियां, बैटरी स्टोरेज की स्थापना और अनुपयोगी जमीनों और छतों पर सोलर पैनल की स्थापना आदि कई सुझाव दिये गये। समिति ने उप्र में आगरा और ग्रेटर नोएडा में चल रहे निजीकरण के प्रयोग को आकड़े के जरिए यह साबित कर दिया कि निजीकरण पॉवर कारपोरेशन के लिए घाटे का सौदा है। आगरा में निजीकरण से पॉवर कारपोरेशन को प्रति वर्ष लगभग एक हजार करोड़ रूपये का नुकसान हो रहा है। वार्ता में प्रबन्धन की ओर से पावॅर कारपोरेशन के चेयरमैन डॉ. आशीष गोयल, प्रबन्ध निदेशक पंकज कुमार, निदेशक कमलेश बहादुर सिंह, निदेशक जीडी द्विवेदी और प्रबन्धन के अन्य लोग रहे।