गुरु बनाना क्यों जरूरी है? प्रेमानंद महाराज ने गुरु पूर्णिमा पर बताया गुरु चुनने का सही तरीका
गुरु बदलना अपराध है या नहीं? बिना दीक्षा के भजन का क्या फल? प्रेमानंद जी महाराज ने दिए शास्त्रीय उत्तर, जानिए गुरु-शिष्य संबंध की गहराई
वृंदावन/वाराणसी। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर जब देशभर के मंदिरों और आश्रमों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी है, ऐसे में मन में यह प्रश्न भी उठते हैं कि क्या गुरु बनाना जरूरी है, कैसे गुरु चुनें, और क्या बिना दीक्षा के साधना संभव है। इन तमाम सवालों का उत्तर वृंदावन के संत श्री प्रेमानंद जी महाराज ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया पर दिया है।
गुरु बनाना क्यों जरूरी है?
महाराज कहते हैं — प्रभावित होकर नहीं, प्रार्थना करके गुरु चुनें। गुण, रूप, विद्वत्ता या प्रवचन सुनकर किसी को गुरु नहीं बनाना चाहिए। पहले भगवान को ही गुरु मानें और उनसे प्रार्थना करें: "हे कृष्ण, आप ही मेरे गुरु बनें या मुझे मेरे सच्चे गुरु से मिलवा दें।" इस प्रार्थना से प्रभु आपको वहां पहुंचा देंगे जहां आपका संशय भी समाप्त हो जाएगा।
गुरु कैसे होने चाहिए?
- वेद-शास्त्रों का ज्ञाता हो
- स्वयं परब्रह्म की अनुभूति कर चुका हो
- केवल ज्ञान या केवल अनुभव से मार्ग अधूरा रहता है
- श्रेष्ठ गुरु वही हैं जिनमें दोनों हों — ज्ञान और अनुभव
क्या गुरु बदले जा सकते हैं?
प्रेमानंद जी के अनुसार: "यदि कोई नई प्रेरणा भीतर से मिले, तो समझिए गुरु ने ही रूप बदला है, बदले नहीं।" गुरु बदलने का अर्थ गुरु का अपराध नहीं है यदि आप भजन में उन्नति चाहते हैं।
क्या गुरु बदलना अपराध है?
भजन में उन्नति न हो तो आगे बढ़ना अपराध नहीं होता। जहां रुक जाना है अपराध — माया तभी दंड देती है। उद्देश्य भगवद् प्राप्ति होनी चाहिए, न कि गुरु की संख्या बढ़ाना
क्या बिना गुरु बनाए पूजा-पाठ कर सकते हैं?
हां, लेकिन फल यह होता है कि आपको सही गुरु की प्राप्ति होती है। गुरु के बिना की गई भक्ति भी व्यर्थ नहीं जाती। जब भगवान देखते हैं कि साधक तैयार है, वे स्वयं गुरु के रूप में मार्गदर्शन करते हैं।
अगर घर वाले गुरु बनाने से रोकते हैं?
"आंतरिक जप और चिंतन कोई नहीं रोक सकता।" राधा-राधा या जो नाम प्रिय हो, उसे मन में जपते रहें। यही अंदर का भजन आपको आगे का रास्ता दिखाएगा।
क्या आप शिष्य बनने लायक हैं?
गुरु बाहर से कठोर, भीतर से कोमल होते हैं। जैसे कुम्हार घड़े को बाहर से पीटता है, वैसे ही गुरु शिष्य को दृढ़ बनाते हैं। जो प्रतिकूलता न सह सके, वह सच्चा शिष्य नहीं बन सकता।
गुरु से संबंध कैसा हो?
जब गुरु डांटें तो समझिए कृपा दृष्टि है। जब सम्मान मिले, तब आत्ममंथन करें कि कोई अपराध तो नहीं। सच्चा शिष्य डांट और तिरस्कार में भी प्रेम देखता है।
गुरु का अपराध क्या होता है?
अपराध से गुरु साधारण लगने लगते हैं। यदि कभी अपराध हो जाए तो तुरंत क्षमा मांगें। गुरु की अवहेलना माया को आमंत्रण है। गुरु के नहीं रहने पर उनके दिए नाम या मंत्र का ही जप करें। उनके उपदेशों को ही मार्ग मानें। सत्संग से अपने प्रश्नों के उत्तर लें। एक बार समर्पण हो गया तो वह जीवन भर चलता है।
शिष्य का कर्तव्य क्या है?
गुरु द्वारा दिए नाम का लगातार जप करें। मन, वाणी और कर्म से समर्पण करें। गुरु को परब्रह्म मानें — वही अंततः प्रभु तक पहुंचाते हैं।
क्या बिना दीक्षा के नाम सिद्ध नहीं होता?
स्वयं जप से फल यह होता है कि आपको गुरु की प्राप्ति होती है। गुरु के मुख से मिले मंत्र में विशेष शक्ति होती है। जब गुरु नाम की दीक्षा दें, तब उसका प्रभाव और फल अत्यधिक होता है।