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वाराणसी: महंत चल्ला कृष्णा शास्त्री की पुण्य स्मृति में 22 से 28 दिसंबर तक संगीतमय रामकथा, 28 को निकलेगी शोभायात्रा

श्री चिन्तामणि गणेश मंदिर परिसर में होगा आयोजन 
 

 

सात दिवसीय कथा में नीलमणी व लक्ष्मीमणी शास्त्री करेंगी प्रवचन

शास्त्री जी के आध्यात्मिक जीवन और समाज सेवा को किया जाएगा नमन

वाराणसी, भदैनी मिरर। केदारघाट रोड स्थित श्री श्री चिन्तामणि गणेश मंदिर परिसर में इस वर्ष भी संत हृदय महंत स्वर्गीय चल्ला कृष्णा शास्त्री जी की पुण्य स्मृति में सप्त दिवसीय संगीतमय रामचरितमानस कथा का भव्य आयोजन किया जा रहा है। कथा का शुभारंभ 22 दिसंबर 2025 से 28 दिसंबर 2025 तक प्रतिदिन दोपहर 1 बजे से शाम 5 बजे तक होगा। कथा वाचन प्रसिद्ध कथा वाचिका नीलमणी शास्त्री एवं लक्ष्मीमणी शास्त्री द्वारा किया जाएगा। यह जानकारी चल्ला सुब्बाराव शास्त्री ने प्रेस कांफ्रेस कर दी। 

महंत चल्ला कृष्णा शास्त्री जी ने जीवनभर ईश्वर भक्ति, धर्म सेवा और आद्य शंकराचार्य परंपरा के प्रति गहरी निष्ठा रखी। वे श्रृंगेरी दक्षिणाम्नाय शारदापीठ के जगद्गुरू शंकराचार्य के परम् श्रद्धालु थे। इसी विशिष्ट आस्था के चलते उन्होंने श्री चिन्तामणि गणेश मंदिर प्रांगण में जगद्गुरू शंकराचार्य श्रीमद् अभिनव विद्यातीर्थ सभा मण्डप के निर्माण का संकल्प लिया था, जो वर्ष 2006-07 में पूर्ण हुआ।

सभा मंडप का उद्घाटन 14 नवंबर 2006 को श्रृंगेरी शंकराचार्य मठ के प्रशासक पद्मश्री श्री बी.आर. गौरी शंकर द्वारा किया गया था। इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए वेद शिक्षा प्रसार के उद्देश्य से वर्ष 2011 में वेद पाठशाला "चल्ला सुब्बाराव शास्त्री वेद विद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र" की स्थापना की गई। वर्तमान में यहां 40 वेदपाठी शुक्लयजुर्वेद, शामवेद, कृष्णयजुर्वेद और अथर्ववेद शाखाओं का अध्ययन करते हैं। बनारस में यह विद्यालय एक विशिष्ट आदर्श शिक्षण केंद्र के रूप में स्थापित है।

कार्यक्रम के अंतिम दिन 28 दिसंबर 2025 को अपराह्न 3 बजे मंदिर प्रांगण से एक भव्य शोभायात्रा निकाली जाएगी, जो सोनारपुरा, हरिश्चंद्र घाट रोड, हनुमान घाट, शिवाला, भेलूपुर होते हुए पुनः मंदिर परिसर में सम्पन्न होगी। शोभायात्रा के समापन पर आरती और प्रसाद वितरण किया जाएगा।
महंत चल्ला कृष्णा शास्त्री जी ने 8 जनवरी 2003 को 75 वर्ष की आयु में जल समाधि ग्रहण की थी। उनके आध्यात्मिक, सामाजिक व सांस्कृतिक योगदान को याद करने और जनमानस से जोड़ा रखने की यह वार्षिक परंपरा लगातार जारी है।