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श्रीसंकटमोचन संगीत समारोह शबाब पर : राग, बंदिशों और भजनों ने समा बांधा

भजन ‘चलो रे मन गंगा जमुना तीर’ सुन झूम उठे श्रोता

 

उच्चकोटि के कलाकारों और रसिक श्रोताओं का अद्भुत है संगम 

वाराणसी, भदैनी मिरर। श्रीसंकटमोचन संगीत समारोह अपने शबाब पर है। शास्त्रीय संगीत के मर्मज्ञ रसिक श्रोताओं और उच्चकोटि के कलाकारों का अद्भुद संगम इस समारोह में देखने को मिल रहा है। जानकारों को तो शास्त्रीय संगीत की अतल गहराईयों में बार-बार उतरने का मौका तो मिल ही रहा है, वहीं संगीत के छात्रों को भी बहुत कुछ यह समारोह सीखा और दिखा भी रहा है। ऐसे में समारोह की पंचम निशा यानी रविवार की रात की शुरुआत प्रयागराज के ऋषि मिश्रा के ख्याल गायन से हुई। उन्होंने राग शुद्ध कल्याण की अवतारणा की। उन्होंने विलंबित ख्याल में ‘शिव शंकरा’ बंदिश सुनाने के बाद द्रुत तीन में ‘मन में विराजे राम’ और एक ताल ‘जय प्यारे हनुमान’ बंदिशें पेश कीं। समापन भजन ‘चलो रे मन गंगा जमुना तीर’ से की। समारोह की परंपरा के अनुसार उन्हें ठीक साढ़े सात बजे मंच प्रदान कर दिया गया, लेकिन साज मिलाने में लगे अत्यधिक समय के कारण पहला ही कार्यक्रम आघे घंटे विलंबित हो गया। जबकि उन्हें कुल 45 मिनट का समय दिया गया था। देर से शुरू करने के बाद भी उन्होंने करीब 50 मिनट गायन किया। इसके चलते सूची में प्रथम स्थान पर तय नयनिका घोष के कथक का कार्यक्रम तब शुरू हो सका जब उसके समाप्त होने का समय निर्धारित था। 
नृत्य के जरिए हुई सीताहनुमान संवाद की प्रस्तुति
दूसरी प्रस्तुति में लखनऊ घराने की कथक नृत्यांगना नयनिका घोष ने अपनी प्रस्तुति अपने गुरुजन पद्मविभूषण पं. बिरजू महाराज एवं पं. विजयशंकर को समर्पित की। भगवान श्रीराम की नृत्यमय वंदना से आरंभ करने के बाद उन्होंने श्रीराम चरित मानस के सुंदरकांड में सीता-हनुमान संवाद प्रसंग को नृत्य के माध्यम से अभिव्यक्ति दी। परंपरागत कथक के अंतर्गत उन्होंने तीन ताल में उठान, आमद, परन, रेला, चक्करदार परन, फरमाईशी परन, घुंघरुओं का चलन दिखाया। इसके बाद उन्होंने पं. बिंदादीन महाराज की ठुमरी ‘मुझे छेड़ो न नंद के सुनहु छैल’ पर भावनृत्य से अपनी प्रस्तुति को विराम दिया। उनके साथ तबला पर उस्ताद अकरम खां, पखावज पर महावीर गंगानी, सितार पर रईस खां ने संगत की। बोलपढ़ंत मयूख भट्टाचार्य और गायन समीउल्ला खां ने किया।
इससे पहले श्रीसंकटमोचन संगीत समारोह की चतुर्थ निशा यानी शनिवार की प्रस्तुति डागर घराने के खलीफा गायक उस्ताद वसीफुद्दीन डागर की रही। इससे पहले की प्रस्तुतियां भदैनी मिरर के चैनल में शनिवार की रात ही प्रसारित की जा चुकी हैं।
उस्ताद वसीफुद्दीन के अलाप ने विशेष माहौल बना दिया
उधर, डागर घराने के खलीफा गायक ने अपने घराने की परंपरा के अनुरूप ही राग चंद्रकौश की अवतारणा की। आलाप के दौरान ही उन्होंने विशेष माहौल बना दिया। इससे पहले कि आलाप पूरा होता ध्वनि संयोजक के कारण थोड़ी दिक्कत के चलते बीच में कुछ मिनटों के लिए गायन रोक कर उन्हें ध्वनि व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए आग्रह करना पड़ा। हालांकि इस बाधा से गायन में कोई अंतर नहीं पड़ा। उन्होंने पुनः वहीं से शुरुआत की जहां से छोड़ा था। इस प्रस्तुति में उनके साथ पखावज पर संकट मोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र ने प्रभावकारी संगत से श्रोताओं को अपने खास हुनर का परिचय दिया।