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Saphala Ekadashi 2025: कब है सफला एकादशी, जानें व्रत तिथि, पूजा विधि और पारण का शुभ समय

पौष कृष्ण पक्ष की एकादशी पर भगवान विष्णु की उपासना से मिलती है सुख-समृद्धि; जानिए महत्व और मंत्र

 

Saphala Ekadashi 2025: हिंदू धर्म में एकादशी व्रत को भगवान श्रीहरि विष्णु की उपासना और आत्मिक शुद्धि का श्रेष्ठ माध्यम माना जाता है। हर माह आने वाली दो एकादशियों में पौष मास के कृष्ण पक्ष की सफला एकादशी का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से व्रत रखने और विष्णु पूजा करने से सुख, समृद्धि और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

दिसंबर 2025 में पड़ने वाली सफला एकादशी को लेकर श्रद्धालुओं में खास उत्साह है। आइए जानते हैं इसकी तिथि, व्रत, पारण का शुभ समय, पूजा विधि और धार्मिक महत्व।


सफला एकादशी 2025 कब है

पंचांग के अनुसार, सफला एकादशी पौष माह के कृष्ण पक्ष में आती है।

  • एकादशी तिथि प्रारंभ: 14 दिसंबर 2025, शाम 6:49 बजे
  • एकादशी तिथि समाप्त: 15 दिसंबर 2025, रात 9:19 बजे

उदयातिथि के अनुसार सफला एकादशी का व्रत 15 दिसंबर 2025 (सोमवार) को रखा जाएगा।

सफला एकादशी 2025 पारण का शुभ समय

एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि को किया जाता है।

  • पारण का शुभ समय: 16 दिसंबर 2025, सुबह 7:07 बजे से 9:11 बजे तक
  • द्वादशी तिथि समाप्त: 16 दिसंबर 2025, रात 11:57 बजे

श्रद्धालुओं को पारण निर्धारित समय के भीतर करना शुभ माना जाता है।

सफला एकादशी की पूजा विधि

  1. एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें
  2. स्वच्छ वस्त्र धारण कर घर और पूजा स्थल की सफाई करें
  3. लकड़ी के पाट पर भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण की मूर्ति/चित्र स्थापित करें
  4. देशी घी का दीपक जलाएं और तुलसी दल अर्पित करें
  5. पंचामृत और फल का भोग लगाएं
  6. हरे कृष्ण महामंत्र का 108 बार जप करें
  7. विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें
  8. दिनभर व्रत रखते हुए सात्विक आचरण का पालन करें

सफला एकादशी के प्रमुख मंत्र

  • ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
  • श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा
  • अच्युतं केशवं कृष्ण दामोदरं राम नारायणं जानकी वल्लभम्
  • राम राम रामेति रमे रमे मनोरमे, सहस्रनाम तत्तुल्यं राम नाम वरानने

सफला एकादशी का धार्मिक महत्व

शास्त्रों के अनुसार, एकादशी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय तिथि है। सफला एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति, मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। यह व्रत इंद्रियों पर संयम, मन की शुद्धि और आत्मिक संतुलन का प्रतीक माना जाता है। साथ ही, भक्त इस दिन भगवान विष्णु से अपने जाने-अनजाने किए गए दोषों के लिए क्षमा याचना करते हैं।